Thursday, November 1, 2012

बोर्हेस की एक लघुकथा

होर्हे लुईस बोर्हेस की एक लघुकथा...  












दन्तकथा : होर्हे लुईस बोर्हेस 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

हाबिल की मृत्यु के बाद एक दिन अचानक कैन और हाबिल की मुलाक़ात हो गई. वे रेगिस्तान से होकर गुजर रहे थे और दोनों ने एक-दूसरे को दूर से ही पहचान लिया क्योंकि दोनों ही काफी लम्बे थे. दोनों भाईयों ने जमीन पर बैठकर आग जलाई और खाना खाया. शाम घिरना शुरू होने पर जैसा कि थके-मांदे लोग करते हैं, वे चुपचाप बैठे रहे. आसमान में एक तारा टिमटिमाया, हालांकि उसे अभी तक कोई नाम नहीं दिया गया था. आग की रोशनी में कैन ने देखा कि हाबिल के माथे पर पत्थर की चोट का निशान था, उसके हाथ से वह कौर गिर गया जिसे वह अपने मुंह तक ले जा रहा था और उसने अपने भाई से उसे माफ़ कर देने के लिए कहा. 

"मुझे मारने वाले तुम थे, या मैंने तुम्हें मारा था?" हाबिल ने जवाब दिया. "मुझे कुछ याद नहीं है, हम यहाँ एक साथ हैं, पहले की तरह." 

"अब मैं समझ गया कि तुमने सचमुच मुझे माफ़ कर दिया है," कैन ने कहा, "क्योंकि भूलना, माफ़ करना होता है. मैं भी भूलने की कोशिश करूंगा." 

"हाँ," हाबिल ने धीरे से कहा. "जब तक पछतावा रहता है, गुनाह भी रहता है." 
                                                               :: :: ::   

4 comments:

  1. "जब तक पछतावा रहता है, गुनाह भी रहता है !"

    बहुत अच्छी कहानी ! आभार प्रस्तुति के लिए !

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  2. बहुत सुन्दर बोध कथा..

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  3. बाइबल की कथा का पुनर्लेखन.भाई द्वारा भाई की हत्या ओर मरणोपरांत फिर ऐका इसे मार्मिक बना देता है.

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