tag:blogger.com,1999:blog-5137039081218727964.post5650440418701998414..comments2024-03-19T13:02:39.405+05:30Comments on पढ़ते-पढ़ते: महमूद दरवेश की दो कविताएँमनोज पटेलhttp://www.blogger.com/profile/18240856473748797655noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-5137039081218727964.post-37767780252319119982011-04-09T19:21:52.459+05:302011-04-09T19:21:52.459+05:30तुमने मेरी ढलान और ऊपर क्यू उठा दी ....की मेरे ही ...तुमने मेरी ढलान और ऊपर क्यू उठा दी ....की मेरे ही ऊपर गिर जाये मेरे घोड़े ?...मेने चाह था तुम्हे ले चलना इस धरती के छोर तक .......!!!!!! दमिश्क में एक और दमिश्क .......कितना गलत .......था ....??????वाह सिने में उठती कई लहरों (सकारात्मक /नकरात्मक )को महसूस कर ढालने का एक और नायब शाब्दिक कोष .....सुन्दर सजाया है दरवेश जी ने ....शुक्रिया मनोज जी ...आज देर से आना हुआ ....अन्ना की सेवा में लगा था ...हाहाह शुक्रिया दोस्त !!!!!Nirmal PaneriTravel Trade Servicehttps://www.blogger.com/profile/11770735608575168790noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5137039081218727964.post-14125318894457336132011-04-09T17:23:13.202+05:302011-04-09T17:23:13.202+05:30मैं उस अजनबी को नहीं जानता ..कविता का दर्शन बहुत अ...मैं उस अजनबी को नहीं जानता ..कविता का दर्शन बहुत अच्छा लगा ..और दमिश्क में एक और दमिश्क मैं ये पंक्तियाँ खास पसंद आयीं ..<br /><br />मुझे देखने के लिए तुम खंजर की तरफ क्यूं झुके ?<br />तुमने मेरी ढलान और ऊपर क्यूं उठा दी <br />कि मेरे ही ऊपर गिर जाएं मेरे घोड़े ? <br /><br />धन्यवाद इनका अनुवाद शेयर करने के लिए ,... सादरडॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिhttps://www.blogger.com/profile/08478064367045773177noreply@blogger.com