(पिछले सप्ताह मिस्र के तहरीर चौक पर पुलिस की गोली से सोशलिस्ट एक्टिविस्ट शाइमा अल-सबा की मृत्यु हो गई. वे एक कवयित्री भी थीं. प्रस्तुत है उनकी एक कविता…)
पर्स में रखा एक खत : शाइमा अल-सबा
(अनुवाद : मनोज पटेल)
पूरे यकीन से तो नहीं कह सकती, सचमुच
वह एक पर्स ही तो था
मगर खो जाने के बाद एक दिक्कत खड़ी हो गई
कि बिना उसके कैसे करूँ दुनिया का सामना
इसलिए
क्योंकि सड़कें हम दोनों को साथ-साथ ही पहचानती थीं
दुकानें उसे जानती थीं मुझसे भी ज्यादा
आखिर वही तो देता था पैसे
पहचानता था मेरे पसीने की गंध और पसंद करता था उसे
जानता था तमाम बसों को
और उनके ड्राइवरों से अपने अलग ताल्लुक थे उसके
याद रहते थे उसे टिकट के दाम
और हमेशा पूरे छुट्टे पैसे होते थे उसके पास
जब एक बार मैंने वह परफ्यूम खरीदा जो उसे नहीं था पसंद
तो उसने गिरा दिया सारा का सारा
और मुझे नहीं करने दिया उसका इस्तेमाल
और हाँ
मेरे घर के सारे लोगों को वह करता था प्यार
और हमेशा साथ रखता था उन सबकी एक तस्वीर
जिन्हें प्यार करता था वह
कैसा लग रहा होगा उसे इस वक़्त
शायद डर?
या नाराज़ किसी अनजान शख्स के पसीने की बू से
नई-नई सड़कों से चिढ़ा हुआ?
और गर वह गया होगा किसी ऐसे स्टोर में
जहाँ हम जाया करते थे साथ-साथ
क्या उन्हीं चीजों को पसंद किया होगा उसने?
बहरहाल, घर की चाभियाँ हैं उसके पास
और मुझे इंतज़ार है उसका
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कमाल की अभिव्यक्ति है ..खोए हुए पर्स के बहाने अतीत में झांकने का सबब.........अलग सी लगी
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता। एक पर्स बडे मेटाफ़र में बदल जाता है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता। एक पर्स बडे मेटाफ़र में बदल जाता है।
ReplyDeleteबहुत अभिनव प्रयोग...हमसफर न हुआ कोई पर्स हो गया...
ReplyDeleteपढ़ कर एक टीस सी उभर आई
ReplyDeletebahut badhiya kavita....
ReplyDeleteकमाल की बेहतरीन कविता / वाह
ReplyDeleteबहुत खूब। रचना मन को छू गई।
ReplyDeleteGood blog. Padhkar khushi hoti hai. Saadhuvaad.
ReplyDeleteManoj Ji kamaal krte hain aap!! Dhanyavaad!!
ReplyDelete- Kamal Jeet Choudhary
बहुत अच्छा संकलन और अच्छे अनुवाद ! आभार मनोज भाई !
ReplyDeleteकमाल का अनुवाद....
ReplyDeleteअति सुन्दर Seetamni. blogspot. in
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता.....
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in