Wednesday, February 27, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : अगर मैं लौटकर न आ सका

अफजाल अहमद सैयद की एक और कविता...        


अगर मैं लौटकर न आ सका : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यान्तरण : मनोज पटेल) 

मैं अंधे चीतों 
रंगीन मछलियों 
और तेज़ बादलों को पकड़ता हूँ 

अंधे चीते 
कुंद कुदालों से खुदे गड्ढों में, 
रंगीन मछलियाँ 
रेशम की डोरियों से बुने जाल में, 
और तेज़ बादल 
मक़्नातीस से पकड़े जाते हैं 

यह मेरा कुआं है 
यह मेरा तंदूर है 
और यह मेरी कब्र है 
इन सबको मैंने ख़ुद खोदा है 

जिसे अपनी ज़ंजीर ख़ुद काटनी होती है 
अपनी आरी ख़ुद उगाता है 
मुझे अपना समंदर ख़ुद काटना है 
मैं अपनी कश्ती ख़ुद हासिल करूंगा 

मेरी कश्ती किसी साहिल पर रंग होने के बाद सूख रही है 
किसी ग़ार में रुकी है 
किसी दरख़्त में कैद है 
या कहीं नहीं है 

मगर मेरे पास एक बीज है 
जिसका नाम मेरा दिल है 
मेरे पास थोड़ी सी ज़मीन है 
जिसका नाम मुहब्बत है 

मैं दिल का दरख़्त बनाऊंगा 
और एक दिन 
उसे काटकर 
एक कश्ती बनाकर निकल जाऊंगा 

अगर मैं लौटकर न आ सका 
मेरी रंगीन मछलियों को मेरे कुएं में, 
मेरे अंधे चीतों को 
मेरे तंदूर में, 
और मेरे तेज़ बादलों को 
मेरी कब्र में रख देना 

जो मैंने बहुत गहरी खोदी है 
               :: :: :: 

मक़्नातीस  :  चुम्बक 
ग़ार  :  गुफा 

Monday, February 25, 2013

माइकल आगस्तीन की दो कविताएँ

माइकल आगस्तीन (1953) की दो कविताएँ...  








माइकल आगस्तीन की दो कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

शहर का बाहरी हिस्सा, शाम लगभग 7:00 बजे 

शादीशुदा जोड़े 
सिटकिनी लगाकर बंद कर लेते हैं 
अपने अलग-थलग खड़े घरों को. 

बाहर 
धुंधलाई शाम में 
घात लगाए बैठे हैं तलाक के वकील. 
                  :: :: :: 

समुद्र में समाधि 

हवा के एक झोंके ने  
पलट दिया है नाव को
डूब गया है 
मातम करने वालों का पूरा झुण्ड. 

सिर्फ अस्थिकलश 
तैर रहा है. 
                  :: :: :: 

Thursday, February 21, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक कविता

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद की एक और कविता...   

एक ज़बान से मुताल्लिक़ इब्तिदाई ख़ाका : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यान्तरण : मनोज पटेल) 

तुम्हारी ज़बान हर सतर में मुख़ालिफ़ सिम्त से शुरू होती है. लफ़्जों का तलफ़्फ़ुज दिन से रात में मुख्तलिफ़ हो जाता है और उनके इमला मौसमों के साथ तब्दील हो जाते हैं. किसी ख़ास दिन कोई नया हर्फ़ दाख़िल होता है और किसी दिन कोई मानूस हर्फ़ ख़ारिज हो जाता है. अब्जद की शक़्ल तुम्हारे लिबास के साथ बदल जाती है. तुम उन लफ़्जों को जोड़ने की कोशिश नहीं करतीं जो तुम्हारी बेएहतियाती से तुम्हारे क़दमों के नीचे आकर टूट गए क्योंकि तुम्हारी ज़बान दुनिया की सबसे ज़्यादा पुरमाया है. तुम्हारे पास पहले, दूसरे और किसी भी बोसे के लिए अलग-अलग लफ़्ज मौजूद हैं. अगर तुम किसी बात पर रो पड़ो तो दुनिया भर में तुम्हारी ज़बान में लिखी हुई किताबें भीग जाती हैं. 
                                                                   :: :: :: 

सतर  :  पंक्ति 
मुख़ालिफ़  :  प्रतिकूल 
सिम्त  :  दिशा, छोर 
तलफ़्फ़ुज  :  उच्चारण 
मुख्तलिफ़  :  अलग, पृथक 
इमला  :  अक्षर विन्यास 
हर्फ़  :  अक्षर 
मानूस  :  हिला-मिला, अंतरंग  
अब्जद  :  वर्णमाला 
पुरमाया  :  समृद्ध 

Monday, February 18, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : हमें हमारे ख़्वाबों में मार दिया जाता है

अफजाल अहमद सैयद की एक और कविता...      


हमें हमारे ख़्वाबों में मार दिया जाता है : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यान्तरण : मनोज पटेल) 

हमें हमारे ख़्वाबों में मार दिया जाता है 
पहले बारिश होती है 
फिर कीचड़ फैल जाती है 
फिर हमें मार दिया जाता है 

उन अस्लहों से 
जिनका निशाना 
ताज़ीरात की किताब में 
हमेशा के लिए दुरुस्त बना दिया गया है 

हम अपने ख़्वाब में लैंप रूम की तरफ जाते हैं 
जिसमें बैठे हुए चोर 
अपने दांतों से कुतरी हुई रात का टुकड़ा 
हमारे आगे फेंक देते हैं 
जिसे हम चबाते हैं 
और जाग जाते हैं 

हमारे ख़्वाब हमें कहते हैं 
उस दरख़्त को पानी दो 
उसमें तुम्हारी रात है 

हमारे ख़्वाब हमें कहते हैं 
उस समंदर में उतर जाओ 
उसकी तह में एक जहाज़ डूब गया है 
जिसमें तुम्हारी रात सफ़र कर रही थी 

हमारी रात चोरी हो गई है 
सय्यारों के किसी और निजाम के लिए 

फूलों की नुमाइश के दरवाज़े पर खड़ी हुई लड़की पूछती है 
तुम्हारी रात कहाँ है? 
और बारिश होने लगती है 
समंदर उलट पलट हो जाता है 
और मुझे खींचकर चांदमारी के मैदान की तरफ ले जाया जाता है  

बग्घी में जाती हुई लड़की गर्दन बाहर निकालकर मुझे देखती है 
और बारिश में भीग जाती है 
अगर मेरे दोनों हाथ 
मेरी पुश्त पर बंधे हुए न होते 
तो मैं उसे अलविदा कहता 
कल मैंने ख़्वाब में उस लड़की का बोसा लिया था 
सिर्फ़ एक बोसा 
और बारिश होने लगती है 

बारिश होने लगती है 
यहाँ तक कि चांदमारी की आधी दीवार पानी में डूब जाती है 
भीगी हुई रस्सी 
हमारे हाथों को और सख्त़ी से जकड़ देती है 

हम बारिश में नंगे पाँव 
इस तरह चलते हैं 
जैसे ज़मीन नंगे पाँव चलने वालों के लिए बनी हो 

बारिश हो रही है 
हम भीग रहे हैं 
अब हम यह कपड़े कभी नहीं बदलेंगे 

हमारे ख़्वाब हमें कहते हैं 
तुम्हारे पास दूसरा जोड़ा तो होगा 

दूसरे जोड़े के लिए 
अपने घर 
या किसी और के घर नक़ब लगानी होगी 
और हमारे दोनों हाथ पीछे बंधे हुए हैं 

हमारे ख़्वाब हमें कहते हैं 
तुमने बरसाती क्यों नहीं खरीदी 

अब 
जब चांदमारी की दीवार सामने नज़र आने लगी है 
हमारे ख़्वाब हमें कहते हैं 
तुमने बरसाती क्यों नहीं खरीदी 

हम अपने ख़्वाबों से कहते हैं 
अब बारिश बहुत तेज हो गई है 
जाओ 
और जाकर 
बरसातियों की दूकान के सायबान में सो रहो 

बरसाती में मलबूस एक शख्स 
भीगे हुए रजिस्टर में मेरा नाम पुकारता है 
कोई मुझे धक्का देकर आगे कर देता है 

अब मुझे मार दिया जाएगा 
इतनी बारिश में 
मुझे मार दिया जाएगा 

मैं उतनी देर में कोई ख़्वाब देखना चाहता हूँ 

आतिशदान के पास बैठी हुई लड़की से 
कोई कहता है 
तुमने बग्घी की खिड़कियाँ बंद रखी होतीं 

मैं उतनी देर में कोई ख़्वाब देखना चाहता हूँ 

कोई उसे 
ख़ूबसूरत सी शाल में लपेटकर कहता है 
तुम्हें इतनी बारिश में बाहर नहीं निकलना चाहिए था 
                        :: :: :: 

सय्यारों  :  सितारों 
नक़ब  :  सेंध 
पुश्त  :  पीठ 
सायबान  : छज्जा, आड़ 

Saturday, February 16, 2013

माइकल आगस्तीन : इंटरसिटी

माइकल आगस्तीन (1953) की एक लघुनाटिका...   














इंटरसिटी : माइकल आगस्तीन 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

समय : 20 मिनट विलम्ब से 
स्थान : बाज़िल और फ्रैंकफर्ट के बीच 

ट्रेन के एक डिब्बे में दो महानुभाव बैठे हुए हैं. कम उम्र वाला शख्स एक किताब में डूबा हुआ है. अधिक उम्र वाला व्यक्ति खिड़की के बाहर देखता है 

अधिक उम्र वाला  काश तुम्हें पता होता कि तुम कितना कुछ गँवा रहे हो! 

कम उम्र वाला  खलल से खीझते हुए  क्या मतलब है आपका? 

अधिक उम्र वाला  वह सब जो तुम गँवा रहे हो! अगर तुम्हें एहसास होता! 

कम उम्र वाला  मैं पढ़ रहा हूँ. 

अधिक उम्र वाला  बिल्कुल ठीक! और साथ ही साथ तुम वास्तविकता का बहुत कुछ गँवा भी रहे हो. 

कम उम्र वाला  बकवास! 

अधिक उम्र वाला  उकसाता हुआ  तुम्हारी किताब में ऐसा क्या ख़ास है, ज़रा बताओ तो? 

कम उम्र वाला  यह ट्रेन के एक डिब्बे में बैठे दो लोगों की कहानी है जिनमें से एक नौजवान है और दूसरा बुजुर्ग. नौजवान आदमी एक किताब पढ़ता होता है कि तभी खिड़की से बाहर देखता अधिक उम्र वाला व्यक्ति यह दावा करता है कि वह वास्तविकता का बहुत कुछ गँवा रहा है. इस पर कम उम्र वाला किताब की कहानी को संक्षेप में बुजुर्गवार को सुनाता है जो क्रोधित होकर चिल्लाते हैं: तुमने मुझे बेवकूफ समझ रखा है क्या! 

अधिक उम्र वाला  क्रोधित होकर  तुमने मुझे बेवकूफ समझ रखा है क्या! 

 कम उम्र वाला   बिना विचलित हुए  एक मिनट, एक मिनट -- उसके बाद इसमें लिखा हुआ है कि इसके पहले कि कम उम्र वाला अपनी किताब फिर से पढ़ना शुरू कर पाता, अचानक पर्दा गिरता है...    

अचानक 
                                                              पर्दा गिरता है 
                                                                   :: :: ::

Thursday, February 14, 2013

लेविस कैरोल की कविता

लेविस कैरोल की एक कविता... 


एक जोड़ : लेविस कैरोल 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

तुम्हें दे तो दिया सब  
अब और कहाँ से लाऊँ, 
अलबत्ता तुम्हें थोड़ा ही मिला हो शायद: 
दो आधे, तीन तिहाई, और चार चौथाई 
कुल इतना ही तो दिया था तुम्हें.  
            :: :: :: 

Tuesday, February 12, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : हमें भूल जाना चाहिए


अफजाल अहमद सय्यद की एक और कविता...   

हमें भूल जाना चाहिए : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल) 

उस ईंट को भूल जाना चाहिए 
जिसके नीचे हमारे घर की चाभी है 
जो एक ख़्वाब में टूट गया 

हमें भूल जाना चाहिए 
उस बोसे को 
जो मछली के कांटे की तरह हमारे गले में फंस गया 
और नहीं निकलता 

उस ज़र्द रंग को भूल जाना चाहिए 
जो सूरजमुखी से अलहदा कर दिया गया 
जब हम अपनी दोपहर का बयान कर रहे थे 

हमें भूल जाना चाहिए 
उस आदमी को 
जो अपने फ़ाक़े पर 
लोहे की चादरें बिछाता है 

उस लड़की को भूल जाना चाहिए 
जो वक़्त को 
दवाओं की शीशियों में बंद करती है 

हमें भूल जाना चाहिए 
उस मलवे से 
जिसका नाम दिल है 
किसी को ज़िंदा निकाला जा सकता है 

हमें कुछ लफ़्जों को बिल्कुल भूल जाना चाहिए 
मसलन 
बनीनौए इंसान 
            :: :: :: 

ज़र्द  :  पीला 
बनीनौए इंसान  :  मानव जाति  

Friday, February 8, 2013

एमिली डिकिन्सन की कविता


अमेरिकी कवयित्री एमिली डिकिन्सन की एक कविता...  




बहुत सतर्क होने की जरूरत होती है शल्य चिकित्सकों को : एमिली डिकिन्सन 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

बहुत सतर्क होने की जरूरत होती है शल्य चिकित्सकों को 
जब वे उठाते हैं नश्तर! 
उनके बारीक चीरों के नीचे 
धड़कती है मुजरिम -- ज़िंदगी 
              :: :: :: 

Tuesday, February 5, 2013

रुथ फेनलाईट : हैण्डबैग

अमेरिकी कवयित्री रुथ फेनलाईट (1931) की एक कविता... 


हैण्डबैग : रुथ फेनलाईट 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मेरी माँ का पुराना हैण्डबैग, 
उन चिट्ठियों से ठुंसा हुआ 
जिन्हें वह साथ रखे रही पूरे युद्ध भर.  
गंध मेरी माँ के हैण्डबैग की : पेपरमिंट 
और लिपस्टिक और फेस पाउडर. 
उन चिट्ठियों की हालत, नरम 
और किनारों पर कटी-फटी हुई, खोली गईं,  
पढ़ी गईं, और फिर से मोड़ी गईं कितनी बार. 
चिट्ठियाँ मेरे पिता की. चमड़े 
और पाउडर की गंध, तभी से  
जिनका मतलब है स्त्रीत्व,  
और प्यार, और पीड़ा, और युद्ध. 
                   :: :: :: 

Monday, February 4, 2013

एमिली डिकिन्सन : चलो हम भूल जाएँ उसे


अमेरिकी कवयित्री एमिली डिकिन्सन की एक कविता...  













ऐ दिल, चलो हम भूल जाएँ उसे : एमिली डिकिन्सन 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

ऐ दिल, चलो हम भूल जाएँ उसे! 
भूल जाओ तुम भी, और मैं भी भूल जाऊँ आज रात! 
तुम वह गरमाहट भूल जाना जो उसने दी, 
और मैं भूल जाऊँगी रोशनी. 

भूलने के बाद बता देना मुझे बराए मेहरबानी, 
ताकि मैं भी मद्धिम कर सकूं अपने ख़याल; 
ज़रा जल्दी करना! क्या पता जो तुम रह गए पीछे, 
तो मैं याद करने लगूँ फिर से उसे. 
                    :: :: :: 

Sunday, February 3, 2013

ट्विटर कहानियां


शान हिल की कुछ और ट्विटर कहानियां... 


ट्विटर कहानियां : शान हिल  
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

शि..शी...! ये मैं हूँ... मेरा मतलब तुम हो, भावी जीवन से. फ़िक्र मत करो. बेगुनाह होने पर भी तुम्हें सजा मिलेगी मगर जेल में तुम्हारी मुलाक़ात अपने सच्चे प्यार से होगी. 
:: :: :: 

मार्क के पाँव सूजकर दुगने आकार के हो गए थे. उसकी हेल्थ इंश्योरेंस कम्पनी ने हमदर्दी दिखाते हुए उसके पास बड़ी नाप के जूते भेज दिए. 
:: :: :: 

डेव ने दुनिया की सबसे अच्छी कहानी लिखी और दौड़ा हुआ अपने प्रकाशक के पास जा पहुंचा. कहानी पढ़कर उसने कहा, "इसमें तो 150 कैरेक्टर्स हैं, बेकार है यह." 
:: :: :: 

केविन ने अपने फेसबुक स्टेटस में तंज कसा, "मेरा दिन तुमसे बढ़िया है." उसे यह पता नहीं था कि पृथ्वी को अन्य लोगों से पहले ही खाली कराया जा चुका है. 
:: :: :: 

Saturday, February 2, 2013

लारेंस फरलंगएरी : खुशी का नुस्खा

अमेरिकी कवि, पेंटर और प्रकाशक लारेंस फरलंगएरी (1919) की एक कविता...   


ख़बारुस्क या किसी भी जगह पर खुशी का नुस्खा : लारेंस फरलंगएरी 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

दरख्तों वाली एक शानदार सड़क,  
धूप में एक बढ़िया कैफ़े 
और बहुत छोटे-छोटे प्यालों में कड़क ब्लैक काफ़ी. 

एक पुरुष या स्त्री, जिसे मुहब्बत हो आपसे 
कोई जरूरी नहीं कि बहुत ख़ूबसूरत ही. 

एक अच्छा सा दिन. 
             :: :: :: 
ख़बारुस्क : मास्को से लगभग 5000 मील और चीन की सीमा से महज 20 मील दूर रूस के पूर्वी छोर पर बसा एक शहर. 

Friday, February 1, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : कौन शायर रह सकता है

अफजाल अहमद सय्यद की एक और कविता...   


कौन शायर रह सकता है : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यान्तरण : मनोज पटेल) 

लफ़्ज अपनी जगह से आगे निकल जाते हैं 
और ज़िंदगी का निजाम तोड़ देते हैं 

अपने जैसे लफ़्जों का गढ़ बना लेते हैं 
और टूट जाते हैं 
उनके टूटे हुए किनारों पर 
नज्में मरने लगती हैं 
लफ़्ज अपनी साख्त और तक़दीर में 
कमजोर हो जाते हैं 
मामूली शिकस्त उनको ख़त्म कर देती है 
उनमें 
टूट कर जुड़ जाने से मुहब्बत नहीं रह जाती 
इन लफ़्जों से 
बदसूरत और बेतरतीब नज्में बनने लगती हैं 

सफ़्फ़ाकी से काट दिए जाने के बाद 
उनकी जगह लेने को 
एक और खेप आ जाती है 

नज्मों को मर जाने से बचाने के लिए 
हर रोज इन लफ़्जों को जुदा करना पड़ता है 
और इन जैसे लफ़्जों के हमले से पहले 
नए लफ़्ज पहुंचाने पड़ते हैं 

जो ऐसा कर सकता है 
शायर रह सकता है 
            :: :: :: 

निजाम  :  व्यवस्था 
साख्त  :  बनावट, गढ़ंत 
सफ़्फ़ाकी से  :  निर्दयतापूर्वक 
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...