Saturday, June 29, 2013

लिंडा पास्तन की कविता

अमेरिका की कवयित्री लिंडा पास्तन (27 मई, 1932) की एक कविता... 

दुनिया में कहीं न कहीं : लिंडा पास्तन 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

दुनिया में कहीं न कहीं 
कुछ न कुछ घट रहा है ऐसा 
जो खरामा-खरामा पहुँच ही जाएगा यहाँ तक. 

सर्द हवाएँ चली आएंगी कैमेलिया के पौधों को 
बर्बाद करने, या शायद गर्मी का प्रकोप 
उन्हें झुलसाने के लिए. 

बिना कागजात, बिना पासपोर्ट आ जाएगा कोई वायरस 
और धर दबोचेगा मुझे जब मैं मिला रही होऊँगी किसी से हाथ 
या चूम रही होऊँगी कोई गाल. 

कहीं न कहीं शुरू हो चुका है कोई छोटा सा झगड़ा 
गरमा-गरमी वाले कुछ शब्दों ने 
लगा दी है आग, 

और आने लगी है 
धुएँ की बू; 
बू जंग की. 

जहाँ भी मैं जाती हूँ खटखटा कर देखती हूँ लकड़ी -- 
मेजों को या पेड़ के तनों को. 
बार-बार धोती हूँ अपने हाथ, 

नजर दौड़ाती हूँ अखबारों पर 
और बनाती हूँ ऐसे चेतावनी कोड 
जो मेरे या मेरे पति की जन्मतिथि नहीं होते. 

मगर कहीं न कहीं, कुछ न कुछ घट रहा है ऐसा 
जिसके खिलाफ नहीं है कोई तैयारी, सिर्फ वही दोनों 
बुढ़ाते साज़िशकर्ता, उम्मीद और किस्मत. 
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Thursday, June 27, 2013

जॉर्ज कार्लिन : उसने कहा था

जार्ज कार्लिन (12 मई, 1937 -- 22 जून 2008) अमेरिकी हास्य अभिनेता और व्यंग्यकार थे. अपने कामेडी एल्बमों के लिए उन्होंने पांच ग्रैमी अवार्ड जीते थे. 2008 में उन्हें मार्क ट्वेन पुरस्कार से नवाजा गया. 

उसने कहा था : जार्ज कार्लिन 
(प्रस्तुति/अनुवाद : मनोज पटेल) 
 
कुल मिलाकर साहित्य सच को छुपाने का एक औजार है. 
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कामिक्सों में बाईं तरफ वाला इंसान हमेशा पहले बोलता है. 
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जिस समय आप जोर से ब्रेक लगाते हैं, उस समय आपकी जिंदगी आपके पैर के हाथ में होती है 
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क्या आपने कभी गौर किया है कि आपसे धीमे गाड़ी चला रहा शख्स बेवकूफ होता है और आपसे तेज चला रहा शख्स पागल? 
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तुम बंदर को अपनी पीठ से उतार ले गए हो तो इसका यह मतलब नहीं कि सर्कस शहर से जा चुका है. 
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बीती रात मैंने एक अच्छे फेमिली रेस्टोरेंट में खाना खाया. हर मेज पर कोई न कोई बहस छिड़ी थी. 
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वह परिपूर्ण कैसे हो सकता है? उसकी बनाई हर चीज तो मर जाती है. 
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हवाई जहाज के दुर्घटनाग्रस्त होने पर जब ब्लैक बाक्स को कभी कोई नुकसान नहीं पहुँचता तो पूरा हवाई जहाज उसी चीज से क्यों नहीं बनाया जाता? 
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हर कोई एक ही भाषा में मुस्कराता है. 
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घर आपका सामान रखने की एक जगह भर होता है जबकि आप और सामान लाने के लिए बाहर गए रहते हैं. 
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बुढ़ापे की एक सबसे अच्छी बात यह है कि आप हर तरह के सामाजिक दायित्वों से सिर्फ यह कहकर छुट्टी पा सकते हैं कि मैं बहुत थक गया हूँ. 
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नास्तिकता एक नान-'प्राफेट' आर्गनाइजेशन है. 
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सातवें आसमान की चर्चा ज्यादा होती है, मगर असल में छठवाँ आसमान सस्ता, कम भीड़-भाड़ और मनमोहक नज़ारे वाला है. 
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लोग इसे अमेरिकन ड्रीम इसलिए कहते हैं क्योंकि इस पर विश्वास करने के लिए नींद में होना जरूरी है. 
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"नो कमेन्ट" एक कमेन्ट है. 
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यदि कोई व्यक्ति हमेशा मुस्कराता रहता है तो शायद वह कोई ऐसी चीज बेच रहा है जो काम नहीं करती. 
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धर्म जूते की एक जोड़ी की तरह होता है... आप अपने नाप का ले लीजिए मगर मुझे अपना जूता पहनाने की कोशिश मत करिए. 
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कुछ लोग गिलास को आधा भरा देखते हैं और कुछ लोग आधा खाली. मैं उसे एक ऐसे गिलास के रूप में देखता हूँ जो अपनी जरूरत से दुगने आकार का है. 
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किसी को एक मछली दे दीजिए तो वह उसे एक दिन खाएगा. उसे मछली पकड़ना सिखा दीजिए तो वह एक नाव में बैठकर सारा दिन बीयर पीता रहेगा. 
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क्या किसी रेस्टोरेंट में स्मोकिंग सेक्शन बनाना उसी तरह नहीं है जैसे किसी स्विमिंग पूल में मूतने का सेक्शन बनाना? 
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Tuesday, June 25, 2013

हाल सिरोविट्ज़ की कविता

हाल सिरोविट्ज़ की एक और कविता...   
एक असंतुलन को सही करना : हाल सिरोविट्ज़ 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 
 
मैं विज्ञापनों की कभी नहीं सुनता, पिता जी ने कहा. 
उनका इरादा मुझे ऐसा कुछ बेचने की कोशिश करना होता है 
जिसकी मुझे जरूरत नहीं होती. अगर मुझे उसकी जरूरत हो 
तो मैं जानना चाहूँगा कि वह जरूरत मुझसे पैदा हुई है, न कि 
दूसरों से. मैं नहीं चाहता कि मेरे पास ऐसा ढेर सारा कबाड़ जमा हो जाए 
जिसे फेंकने के सिवा और कोई चारा न हो. इस घर की आधी चीजें 
इस्तेमाल में नहीं आतीं. असल में हमें सिर्फ रोटी, कपड़ा, छत 
और हाँ, एक-दूसरे की जरूरत होती है. तुम्हें मेरी जरूरत है. 
है ना? तुम्हारी माँ मुझे बात करने का ज्यादा मौका नहीं देतीं. 
मुझसे सिर्फ सुनने की अपेक्षा की जाती है. मैं तुमसे 
बात करने में समर्थ हूँ, मगर मुझे ख़ुशी होगी 
अगर कभी-कभार तुम भी बोल दिया करो कुछ. 
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Thursday, June 20, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की कविता

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...   










आग लगने के वक़्त : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल) 
 
हर रात एक आदमी 
तुम्हारे बिस्तर और तुम्हारे हाफ़िजे से चला जाता है 
जब दरवाजे पर शोर होता है 
मेरी तलाश में 
मुझे क़त्ल करने के लिए 

गिरे हुए बोसों को उठाकर 
तुम अपने ख़्वाब से बाहर चली जाती हो 

मैं ज़मीन पर चाक से निशान लगाता हूँ 
तुम्हारे ख़्वाब में आए हुए आदमी को 
इस निशान में ले जाता हूँ 

जब आधा दरवाजा कट चुका होता है 
तुम लौटकर आ जाती हो 
अपनी एड़ी से 
चाक के निशान 
और ख़्वाब में आए हुए आदमी को 
मिटाने के लिए 

मैं आखिरी मंज़िल पर था 
जब तुम्हारे मकान को आग लग गई 
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हाफ़िजे  :  याददाश्त, स्मृति 
बोसों  :  चुम्बनों 

Tuesday, June 18, 2013

एन पोर्टर : जाड़े की सांझ

एन पोर्टर (Anne Porter) की एक कविता...   
जाड़े की सांझ : एन पोर्टर 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 
 
जाड़े की किसी साफ़ सांझ 
दूज का चाँद 

और बलूत के ठूँठ पर लगा 
गिलहरी का गोल घोंसला 

बराबर के ग्रह होते हैं. 
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Sunday, June 16, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : सुर्ख़ पत्तों का एक दरख़्त

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...   
सुर्ख़ पत्तों का एक दरख़्त : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल) 
 
नहीं देखा होगा तुमने अपने आपको छत से लगे हुए आईने में 
सुर्ख़ पत्तों से भरे एक दरख़्त के नीचे 

नहीं बढ़ाई होंगी तुमने अपनी उंगलियाँ 
दरख़्त से पत्ते और अपने बदन से लिबास उतारने के लिए 

"आदमी दरख़्त से ज्यादा ख़ूबसूरत है" 
नहीं कहा होगा किसी ने तुम्हें चूमकर 
दरख़्त को टुकड़े टुकड़े करने के बाद 

नहीं उठाया होगा तुमने लकड़ी का गट्ठर 
नहीं जाना होगा तुमने कटी हुई शाख़ में पानी का वजन 

"आग दरख़्त से ज्यादा ख़ूबसूरत है" 
नहीं कहा होगा किसी ने अलाव के क़रीब तुम्हें अपने सीने से लगाकर 

नहीं दिया होगा तुम्हें किसी ने अपना दिल 
सुर्ख़ पत्तों का एक दरख़्त 
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Wednesday, June 12, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : मेरे पार्लर में क़दम रखो

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...   
मेरे पार्लर में क़दम रखो : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल) 
 
मेरे पार्लर में क़दम रखो 
मौत मुझे कहती है 

उसके बदन में 
मैं अपनी महबूबाओं को 
बरहना देखता हूँ 
उसकी रान पर बहते हुए 
अपने इंज़ाल को पहचान लेता हूँ 
उसको मेरी उस नज्म का हमल है 
जो मैं नहीं कह सका 
उसको एक जाल का हमल है 
जिससे मैं एक सितारा पकड़ना चाहता था 

मेरे पार्लर में क़दम रखो 
मौत मुझे कहती है 
और नहीं जानती 
अब मेरे पास उसे देने के लिए कुछ नहीं 
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बरहना  :  नग्न 
रान  :  जाँघ 
इंज़ाल  :  वीर्य 
हमल  :  गर्भ 

Saturday, June 8, 2013

मार्क स्ट्रैंड की कविता

मार्क स्ट्रैंड की एक और कविता... 

यहाँ से तुम हमेशा वहाँ पहुँच सकते हो  :  मार्क स्ट्रैंड  
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

एक मुसाफ़िर उस देश को लौटा जहाँ से कई साल पहले वह निकला था. जहाज से बाहर कदम रखते ही उसने गौर किया कि सब कुछ कितना अलग था. कभी वहाँ तमाम इमारतें हुआ करती थीं मगर अब बहुत कम रह गई थीं और उनमें से हर एक को मरम्मत की दरकार थी. उस पार्क में जहाँ वह बचपन में खेला करता था, धूल से भरी धूप की छड़ें पेड़ों की पीली पत्तियों और पौधों से बनाई गईं कुम्हलाई बाड़ों से टकरा रही थीं. कचरे की खाली थैलियां घास में बिखरी हुई थीं. हवा भारी थी. वह एक बेंच पर बैठ गया और अपने बगल बैठी औरत से बताने लगा कि वह काफी समय से बाहर था, और पूछा कि वह किस मौसम में लौट कर आया है. औरत ने जवाब दिया कि यही एक ही बचा था, वही जिस पर वे सभी राजी हुए थे. 
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Thursday, June 6, 2013

शान हिल की ट्विटर कहानियाँ

शान हिल की कुछ और ट्विटर कहानियां... 

शान हिल की ट्विटर कहानियाँ  
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मेरे मम्मी-डैडी ने मुझे नाक से कीबोर्ड खटखटाते देख लिया. मम्मी रोने लगीं. डैडी ने यह महसूस कर मेरे हाथों की हथकड़ियाँ खोल दीं कि लेखक होने का कोई इलाज नहीं है. 
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मुझे गुस्से को काबू करना सिखाने वाली कक्षाएं पसंद नहीं हैं. मुझे कोई परेशानी नहीं है. जब मैंने तुम्हें बस के सामने धक्का दिया तो मैं गुस्से में नहीं था. बात बस इतनी है कि तुम मुझे पसंद नहीं. 
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तुम्हें पकड़ने के लिए मैं हवाईजहाज से कूद पड़ा. नीचे गिरते समय मुझे लगा कि अगर तुम मुझसे दूर जाने की इतनी ही ख्वाहिशमंद थी, तो मुझे तुम्हें जाने देना चाहिए. 
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माता-पिता छोटी-छोटी डेस्कों के सामने बैठे हुए थे. बच्चों ने भूली हुई मस्ती का पाठ पढ़ाकर उन्हें फिर से इंसानों में बदल दिया. 
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इक-दूजे के लिए बने वे दोनों अगल-बगल ही रहते हैं मगर कभी एक-दूसरे से मिल नहीं पाएंगे. वे अलग-अलग दुनियाओं में रहते हैं. लड़के की दुनिया फेसबुक है और लड़की की ट्विटर. 
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Twitter Stories in Hindi

Wednesday, June 5, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : बर्फ़ानी चिड़ियों का क़त्ल

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...   
बर्फ़ानी चिड़ियों का क़त्ल : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल) 
 
यह बर्फ़ानी चिड़ियों के क़त्ल की कहानी है 
मगर मैं इसे तुम्हारे जिस्म से शुरू करूँगा 

तुम्हारा जिस्म जंगली जौ था 
जो फ़रोख्त हो गया, चुरा लिया गया या तबाह हो गया 

पहाड़ी बकरियों की ऊन और देवदार के रेशों से बुना लिबास 
मैंने 
कच्चे चमड़े की ढाल और तुम्हारी उँगलियों में मक्नातीस की अंगूठी पर 
ज़िंदा रहने का हलफ़ उठाने के दिन पहना था 

प्यालानुमा आईनों में 
मुख्तलिफ़ रंगों की रेत से बनी एक तस्वीर थी 

"यह मैं हूँ" 
तुमने कहा 
और आईनों से धुआँ निकलने लगा 

तुमने दुनिया की क़दीमतरीन ज़बान में दुआ मांगी 
जो एक गीत और झूठ 
दोनों तरह सुनी गई 
काश तुमने अपने जिस्म को इस कदर दहकाया न होता 

ख़ुदा का आग से पहले का दिन 
हमारे विसाल का दिन था 

जल्द उग आने वाली फसल का ज़माना था 
एक अजनबी ख़ुदा की शबीहें 
पानी को मैला किए जा रही थीं 

जब मैं एक ख़्वाब से दस्तबरदार हुआ 
और अपनी ज़िंदगी के एक हिस्से को 
पानी में घुलते हुए देखा 

क़ब्रिस्तान का दरवाजा 
सिंदूर से सुर्ख़ कर दिया गया था 
और उसके बाद का रास्ता 
हड्डियों से बने मछली पकड़ने के काँटों 
और अदने मोतियों से भरा था 
तुम्हारे जिस्म के सिवा मेरे पास कोई जाल न था 
जिससे डूबती हुई ज़िंदगी को पकड़ सकता 

मैंने तुमसे कहा 
मुझे अपने बालों की दो लटें दो 
और मेरी माँ को उनसे कमान की डोर बटने में मदद 

तुम्हारे इन्कार के बाद 
मेरे मारे जाने की कहानी है 

जो मैं टोकरियाँ बुनने वाली लड़कियों की पलकों और नाखूनों से शुरू करूँगा 
जिन्हें एक तवील क़हत ने 
अपनी टोकरियों में बर्फ़ानी चिड़ियों को क़त्ल कर देने पर मजबूर कर दिया था 
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बर्फ़ानी  :  बर्फ़ की 
फ़रोख्त  :  बिकना 
मक्नातीस  :  चुम्बक 
हलफ़  :  शपथ 
मुख्तलिफ़  :  अलग-अलग 
क़दीमतरीन  :  सबसे पुरानी 
विसाल  :  मिलन 
शबीहें  :  तस्वीरें 
दस्तबरदार  :  विरक्त 
अदने  :  साधारण 
तवील  : दीर्घावधि, लम्बी 
क़हत  :  अकाल 

Saturday, June 1, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : ज़िंदा रहना एक मिकानिकी अजीयत है

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...   














ज़िंदा रहना एक मिकानिकी अजीयत है : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यन्तरण : मनोज पटेल) 
 
ज़िंदा रहना एक मिकानिकी अजीयत है 
हम समझ सकते हैं 
अपनी शर्मगाहों को गहरा काटकर 
मर जाने वाली लड़कियाँ  
क्यों कोई अलविदाई ख़त नहीं छोड़तीं 
और बच्चों की हड्डियां 
कैसे 
दरख़्त की सब्ज़ टहनी की तरह मुड़ जाती हैं 

यह दरख़्त पाकिस्तान में हर जगह पाया जाता है 

हम जानते हैं 
ज़ियाफ़त की किस मेज पर 
सेबों को हमारे मुल्क के परचम से चमकाया जा रहा है 
मगर 
गवाह चार किस्म के होते हैं 
और फैसला हमेशा साफ़ हुरूफ़ों में लिखा जाता है 

हम उस लड़की की तरह नहीं 
जो रजामंदी देने का मतलब नहीं समझती 
और मलिका की काली ब्रेजियर्स 
और तीन हजार जूतियों को 
चूमने से मुतनफ़्फ़िर है 

हमें दिया गया ज़हर 
हमारे जिस्म से आंसुओं के जरिए ख़ारिज नहीं होगा 

वैनेशियन ब्लाइंड से झाँककर 
हम देख सकते हैं 
आबी भेड़िए किस तरह 
हमारी औरतों को हामिला कर रहे हैं 
और हमारी मुसावातें 
कहाँ हल हो रही हैं 

फिर भी हमारी जिम्मेदारी है 
उस शख्स को,  
जो अपनी उंगलियों के सिरों से 
नज़र न आने वाले धागे निकालने की कोशिश कर रहा है, 
बता दें 
ज़िंदा रहना एक तस्सुवराती अजीयत भी है 
                    :: :: :: 

मिकानिकी  :  यांत्रिक, संवेदनाहीन  
अजीयत  :  यातना 
शर्मगाह  :  जननांग, भग 
सब्ज़  :  हरी 
ज़ियाफ़त  :  अतिथि पूजा, मेहमाननवाज़ी 
हुरूफ़ों  :  अक्षरों 
मुतनफ़्फ़िर  :  नफरत करने वाली, गैररजामंद 
आबी भेड़िए  :  समुद्री भेड़िए 
हामिला  :  गर्भवती 
मुसावातें  :  समीकरण  
तस्स्वुराती  :  काल्पनिक 
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