Tuesday, January 29, 2013

माइकल आगस्तीन की कविताएँ


जर्मन कवि माइकल आगस्तीन (1953) रेडियो रेमेन के लिए एक पाक्षिक कविता कार्यक्रम की मेजबानी और साप्ताहिक रेडियो डाक्यूमेंट्री का सम्पादन करते हैं. उनकी कविताएँ तथा रेखाचित्र दुनिया भर की कई साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं और कई कविता संग्रहों के साथ-साथ उनकी कई आडियो बुक्स भी प्रकाशित हो चुकी हैं. उनकी किताबों के अनुवाद अर्जेंटीना, पोलैंड, आयरलैण्ड, इंग्लैण्ड, इटली और ग्रीस में प्रकाशित हो चुके हैं. वे खुद भी कविताओं तथा नाटकों के अनुवाद में सक्रिय रहे हैं तथा कई अंतर्राष्ट्रीय कविता महोत्सवों में कविता पाठ कर चुके हैं. 1984 में आयोवा विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय लेखन कार्यक्रम के सदस्य रहे आगस्तीन को कई पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है. फिलहाल वे रेमेन में अपनी पत्नी सुजाता भट्ट और पुत्री जेनी के साथ रहते हैं. उनकी कवयित्री पत्नी सुजाता भट्ट भारतीय मूल की हैं और उनकी कविताओं, लघु कथाओं तथा लघु नाटिकाओं का अंग्रेजी अनुवाद उन्होंने ही किया है जो 'Mickle makes Muckle' के नाम से प्रकाशित है. 

आगस्तीन की कविता, 'कविताओं के बारे में कुछ सवाल' से कुछ अंश आप इस ब्लॉग पर पहले पढ़ चुके हैं. आज प्रस्तुत है इनकी दूसरी क़िस्त. आपसे यह बताते हुए भी बड़ी प्रसन्नता हो रही है कि कवि आगस्तीन ने इस नाचीज को अपनी कविताओं, लघुकथाओं तथा लघु नाटिकाओं के अनुवाद की अनुमति प्रदान कर दी है. 













कविताओं के बारे में कुछ सवाल : माइकल आगस्तीन 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

कौन से शब्द 
आज तक 
नजर नहीं आए हैं 
किसी कविता में? 
 :: :: ::

अगर 
कोई कविता-संग्रह 
रखा जाए तराजू पर 
और वह वजन बताए 300 ग्राम, 
तो यह वजन 
कागज़ का होगा 
या कविताओं का?
 :: :: ::

क्या उड़ जाती हैं कविताएँ 
अगर खुली छोड़ दी जाए किताब 
लंबे समय तक? 
 :: :: ::

क्या कविताएँ इन्कार कर सकती हैं 
गवाही देने से? 
 :: :: ::

कौन सी चीज याद रखती हैं 
यादगार कविताएँ? 
 :: :: ::

क्या डूबते हुए लोगों को 
फेंक कर पकड़ानी चाहिए कविताएँ? 
 :: :: ::

क्या संकटग्रस्त इलाकों में 
तैनात किया जाना चाहिए 
कविताओं को? 
 :: :: ::

Monday, January 28, 2013

शान हिल की कुछ और ट्विटर कहानियां


शान हिल की कुछ और ट्विटर कहानियां...  


ट्विटर कहानियां : शान हिल  
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

सूज़ी को ठीक-ठीक यह नहीं पता था कि वह ट्रे को क्यों पसंद करती है. न तो उसके पास बहुत पैसे थे और न ही वह देखने में खूबसूरत था. शायद इस बात की कोई अहमियत रही हो कि वह उसे प्यार करता था. 
:: :: :: 

मेरे अकेलेपन का यही इलाज रह गया था कि मैं कोई रोबोट पत्नी ब्याह लाऊँ. फिर एक बार नींद खुलने पर मैंने बिस्तर खाली पाया और देखा कि वह रेफ्रीजरेटर से लिपटी खड़ी है. 
:: :: :: 

मैरी से मेरी मुलाक़ात किराने की एक दूकान में हुई. वह मुझे देख कर मुस्कराई और मैं फ़ौरन ही उसके प्रेम में गिरफ्तार हो गया. इस लाल झंडी पर मैं नहीं गौर कर पाया कि वह एक ही जूती पहने हुए है. 
:: :: :: 

"दमकल गाड़ी!" पांच साल का बच्चा बिली चिल्लाया. उसकी माँ ने उसे बताया था कि उसके पिता एक फायरमैन थे. बड़ा होने के बाद अपने पिता से मिलने की उम्मीद में वह आग लगाया करता है. 
:: :: :: 

मैंने हजारों बार दीवार पर "आई लव यू" लिखा मगर तुम एक रूमानी उपन्यास पढ़ने में इस कदर डूबी थी कि जान ही न पाई मैं रूममेट से बढ़कर कुछ होना चाहता था. 
:: :: :: 

अब तक आपको पता चल चुका होगा कि आपके ब्रेक काम नहीं कर रहे. मुझे अफ़सोस है. मुझे अलविदा कहना नहीं आता इसलिए सोचा कि यह हम दोनों ही के लिए आसान रहेगा. 
:: :: :: 

"हाय, मेरा नाम रिक है. मैं एक लेखक हूँ." "हाय रिक," सभी लोगों ने कहा. "तीन दिन से मैंने कुछ नहीं लिखा है." मेरे इस संयम को सराहते हुए सब ताली बजाने लगे. 
 :: :: :: 

तुम्हारे सामने खड़ा हो मैं तुम्हें बंदूकधारियों से बचाए हुए था. लेकिन करीब आती गोली पर मैंने तुम्हारा नाम लिखा देखा और बगल हट गया. 
:: :: :: 

Saturday, January 26, 2013

डोरोथी पार्कर : सामाजिक टिप्पणी


अमेरिकी कवयित्री डोरोथी पार्कर (1893 -- 1967) की एक कविता...  


सामाजिक टिप्पणी : डोरोथी पार्कर 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मोहतरमा, यदि आप मिलें किसी से 
बहुत चौकस हों जिसके तौर-तरीके,  
जो बड़बड़ाता रहता हो कि उसकी बीवी 
ध्रुवतारा है उसकी ज़िंदगी की, 
जो भरोसा दिलाता रहे आपको 
कि उसने कभी नहीं की बेवफाई, 
कि किसी और से कभी नहीं किया प्यार... 

मोहतरमा, भाग लीजिए उसके पास से!  
                :: :: :: 

Thursday, January 24, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : मैं मार दिया जाऊंगा


अफ़ज़ाल अहमद सय्यद की एक और कविता...     

मैं मार दिया जाऊंगा : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल) 

अफ़सोस कि 
बहुत सा वक़्त 
उन हाथों को हमवार बनाने में ज़ाया हो गया 
जो एक दिन मेरा गला घोंट देंगे 

ज़ान जीने की बाल्कनी के नीचे 
मौसीक़ी फ़रोश 
और कबाब भूनने वाले 
मुझे बताते हैं 
मुझे एक दिन यहीं खड़ा करके मार दिया जाएगा 
मेरी कब्र बेशिनाख्त रह जाएगी 

उसी इमारत की पहली मंजिल पर 
और उससे अगली मंजिलों पर ख़ुदा का 
मगर मेरे साथ एक दरिया है 
जिसको अभी सीढ़ियों पर चढ़ना नहीं आता 

मुझे सुअरों के बाड़े में सुला दिया गया 
जबकि जिस मुआवज़े पर 
मेज़बान मुझे अपनी बीबी के बिस्तर में सुला देता 
वह मेरी जेब में मौजूद था 

अफ़सोस कि 
मेरी नींदें 
मेरी रातों पर ज़ाया हो गईं 
अफ़सोस कि 
मैंने जॉन डन के गिरते हुए सितारे को पकड़ लिया 
अफ़सोस कि 
अफ़सोस करने में बहुत सा वक़्त ज़ाया हो गया 
इतना वक़्त कि 
ईंटों से एक मकान बनाया जा सकता था 
नज्मों से एक मज्मूआ छापा जा सकता था 
एक औरत से एक बच्चा पैदा किया जा सकता था 

अफ़सोस कि 
मेरा बच्चा एक औरत के बटन में ज़ाया हो गया 
जबकि मुझे मारा जाना चाहिए था 
जबकि 
जल्द या बदीर 
मैं मार दिया जाऊंगा 
मैं मार दिया जाऊंगा 
जैसे कि तादेऊष रूजेविच की नज्मों के 
किरदारों को मार दिया जाना चाहिए  
                 :: :: :: 

ज़ाया  :  नष्ट, बरबाद 
ज़ान जीने की बाल्कनी  :  फ्रेंच उपन्यासकार, कवि और नाटककार Jean Genet के नाटक बाल्कनी का सन्दर्भ 
दांते का जहन्नम  :  इतालवी महाकवि दांते एलीगियरी की 'डिवाइन कामेडी' के पहले अध्याय इन्फर्नो का सन्दर्भ 
जॉन डन का गिरता हुआ सितारा  :  ब्रिटिश कवि एवं व्यंग्यकार जॉन डन के गीत 'गो एण्ड कैच अ फालिंग स्टार' का सन्दर्भ 
नज्मों का मज्मूआ  :  कविता संग्रह 

Tuesday, January 22, 2013

ई बी व्हाईट : प्राकृतिक इतिहास

अमेरिकी लेखक ई. बी. व्हाईट (1899 -- 1985) ने कहा है, "एक बार आप मकड़ों को देखना शुरू कर दें तो आपके पास कुछ और करने के लिए समय नहीं रह जाता". यहाँ प्रस्तुत कविता उन्होंने 1929 में अपनी शादी के कुछ हफ़्तों बाद टोरंटो के किंग एडवर्ड्स होटल से अपनी पत्नी को भेजी थी.   


प्राकृतिक इतिहास : ई बी व्हाईट 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

टहनी से गिरता हुआ मकड़ा 
एक डोर खोलता जाता है अपनी हिकमत की; 
एक महीन, जाना-समझा औजार 
चढ़ाई में इस्तेमाल करने के लिए. 

और अधर से होती 
शांत उतराई की इस पूरी यात्रा में 
सच्चे दिल से वह बना डालता है एक सीढ़ी 
सफ़र की शुरूआत की जगह तक. 

इसी तरह मैं निकला बाहर, जैसे निकलते हैं मकड़े 
एक सच निरखता हुआ मकड़े के जाले में 
तुमसे जोड़े रहा एक रेशमी धागा 
अपने लौटने के लिए. 
            :: :: :: 

Monday, January 21, 2013

माइकल आगस्तीन : बूट स्ट्रेचर

जर्मन कवि माइकल आगस्तीन (1953) की 'कविताओं के बारे में कुछ सवाल' की पहली क़िस्त आप यहाँ पढ़ चुके हैं. उसकी अगली क़िस्त के पहले उनकी यह युद्ध विरोधी कविता...  


बूट स्ट्रेचर : माइकल आगस्तीन 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

और वह जूता, जिसे फैलाया गया था एक सांचे से? 
क्या हुआ उसके साथ? 
अच्छा, वह पड़ा हुआ है आवश्तेथ की 
समर भूमि पर, वहीं पड़ा हुआ है वह 
आवश्तेथ में. 
और वह पैर, जो अटका हुआ था उस जूते में, 
जिसे फैलाया गया था एक सांचे से, 
कहाँ है वह पैर? 
अभी तक अटका हुआ उसी जूते में 
जो पड़ा हुआ है आवश्तेथ की समर भूमि पर, 
वहीं अटका हुआ है वह पैर. 
और वह इंसान कहाँ है 
जिसका पैर अटका हुआ है उस जूते में 
जिसे फैलाया गया था एक सांचे से, 
और जो अब भी पड़ा हुआ है 
आवश्तेथ की समर भूमि पर? 
वह धरती के नीचे है 
जहाँ पास में ही पैदा होते हैं शलजम. 
वहां अटका हुआ है वह इंसान! 
(और वह सिर्फ एक जूता पहने हुए है.) 
                 :: :: :: 
बूट स्ट्रेचर : जूतों को सही आकार में रखने या उन्हें फैलाने के लिए उनके अंदर रखा जाने वाला एक उपकरण. 

Friday, January 18, 2013

शान हिल की ट्विटर कहानियां


टेक्सास में रहने वाले शान हिल ट्विटर के 140 अक्षरों में समा सकने लायक छोटी कहानियां लिखते हैं. 'वेरी शार्ट स्टोरी' नामक उनके ट्विटर हैंडल को एक लाख चालीस हजार से अधिक लोग फालो करते हैं. वहीं से कुछ कहानियां... 












ट्विटर कहानियां : शान हिल  
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मेरा लिखा हर शब्द मुझे पन्ने पर थोड़ा सा और टपका जाता है. कुछ दिनों में मैं किताब हो जाऊंगा, किताब मेरी जगह ले लेगी और कहानी कह दी जाएगी. 
:: :: ::

एलिसा से मैं समुद्र तट पर मिला. कार के पास लाकर उसे पोंछा. फिर भी जब किसी जादू के जोर से उसके पैर नहीं नुमाया हुए तो मेरी दिलचस्पी जाती रही और मैंने उसे एक्वेरियम में डाल दिया. 
:: :: ::

मेरी पत्नी ने घर के सामने एक बलूत का पेड़ लगाया. छ महीने बाद मैंने उसे काट डाला. मुझे यह ठीक नहीं लगा कि उसकी उम्र हमारी शादी की उम्र से ज्यादा हो. 
:: :: :: 

जैसे-जैसे साल बीतते गए मेरी पत्नी के गहनों का संग्रह बड़ा ही होता गया. मेरी हर गलती के लिए एक थान. यही है हमारे सफल दाम्पत्य का राज. 
:: :: :: 

नियति होना कोई आसान काम नहीं है. मुझे बहुत काम करना पड़ता है. कितनी चीजें तय करनी होती हैं लोगों के लिए. कभी-कभी मैं छुट्टी ले लेती हूँ और चीजों को अपने आप होने देती हूँ. 
:: :: :: 

कीथ को लगा कि उसकी धड़कन नहीं चल रही है. चिंतित होकर वह डाक्टर को दिखाने गया. डाक्टर ने उसकी मेमोरी साफ़ कर उसे रीबूट कर दिया. 
:: :: :: 

मशीन ने मेरी ज़िंदगी आसान कर दी है. मेरे सारे फैसले वह लेती है. क्या खाना है, कब सोना है, क्या करना है वगैरह-वगैरह. तुम्हारे ग्रह पर लोग उसे माँ-बाप कहते हैं. 
:: :: :: 

Wednesday, January 16, 2013

माइकल आगस्तीन : कविताओं के बारे में कुछ सवाल

आज मिलते हैं जर्मन कवि माइकल आगस्तीन (1954) से. आगस्तीन ने कविताओं के बारे में कुछ सवाल' उठाए हैं. ये सवाल बड़े मौजूं हैं और फिलहाल यहाँ उनकी पहली क़िस्त प्रस्तुत की जा रही है. जर्मन से अंग्रेजी अनुवाद उनकी पत्नी, भारतीय कवयित्री सुजाता भट्ट ने किया है... 
कविताओं के बारे में कुछ सवाल : माइकल आगस्तीन 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

कितनी लागत आती है 
एक कविता को 
पैदा करने में? 
 :: :: :: 

कौन सी कविता 
अपने रचयिता के बारे में ज्यादा बताती है: 
उसकी पहली या उसकी आखिरी कविता? 
 :: :: :: 

प्रति माह कितनी कविताओं की जरूरत पड़ती है 
चार लोगों के 
एक औसत परिवार को 
गुजारा चलाने के लिए? 
 :: :: :: 

क्या होता है 
कविता का 
विलोम? 
 :: :: :: 

क्या कविताएँ 
जान फूंक सकती हैं मुर्दों में? 
 :: :: :: 

क्या स्व-परागण से 
फलती-फूलती हैं फूलों से सम्बंधित कविताएँ 
या उन्हें जरूरत पड़ती है हमेशा 
भौरों से सम्बंधित किसी कविता की? 
 :: :: :: 

क्या प्रेम कविताएँ 
बंधी होती हैं किसी एक से 
या अंतरणीय होती हैं वे
 :: :: :: 

कितने दिन 
ज़िंदा रह सकता है 
कोई इंसान 
कविताओं के बिना? 
 :: :: :: 

Saturday, January 12, 2013

येहूदा हालेवी : शराब के बगैर प्याले

येहूदा हालेवी (1075 -- 1141) की एक कविता...  













शराब के बगैर प्याले : येहूदा हालेवी 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मामूली चीज होते हैं शराब के बगैर प्याले 
जैसे जमीन पर फेंका हुआ कोई बर्तन, 
पर रस से छलछलाते, चमकते हैं वे 
जैसे शरीर और आत्मा. 
           :: :: :: 

Thursday, January 10, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : अगर उन्हें मालूम हो जाए

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...   














अगर उन्हें मालूम हो जाए : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यान्तरण : मनोज पटेल) 

वह ज़िंदगी को डराते हैं 
मौत को रिश्वत देते हैं 
और उसकी आँख पर पट्टी बाँध देते हैं 

वह हमें तोहफ़े में ख़ंजर भेजते हैं 
और उम्मीद रखते हैं 
हम ख़ुद को हलाक कर लेंगे 

वह चिड़ियाघर में 
शेर के पिंजरे की जाली को कमज़ोर रखते हैं 
और जब हम वहां सैर करने जाते हैं 
उस दिन वह शेर का रातिब बंद कर देते हैं 
जब चाँद टूटा-फूटा नहीं होता 
वह हमें एक जज़ीरे की सैर को बुलाते हैं 
जहाँ न मारे जाने की ज़मानत का कागज़ 
वह कश्ती में इधर-उधर कर देते हैं 

अगर उन्हें मालूम हो जाए 
वह अच्छे क़ातिल नहीं 
तो वह कांपने लगें 
और उनकी नौकरियाँ छिन जाएं 

वह हमारे मारे जाने का ख़्वाब देखते हैं 
और ताबीर की किताबों को जला देते हैं 

वह हमारे नाम की कब्र खोदते हैं 
और उसमें लूट का माल छिपा देते हैं 

अगर उन्हें मालूम भी हो जाए 
कि हमें कैसे मारा जा सकता है 

फिर भी वह हमें नहीं मार सकते 
               :: :: ::
Afzal Ahmed Syed (افضال احمد سيد)
रातिब  :  प्रतिदिन की ख़ुराक 
जज़ीरा  :  द्वीप, टापू 
ताबीर  :  ख़्वाब का मतलब 

Monday, January 7, 2013

ईयावगेनी बनीमोविच की कविता

1954 में जन्मे ईयावगेनी बनीमोविच मास्को में रहते हैं. कविताएँ लिखने के अतिरिक्त वे एक स्तंभकार और राजनीतिक भी हैं तथा मास्को सिटी डूमा के सदस्य रह चुके हैं. यहाँ प्रस्तुत है उनकी एक कविता...   


बहाना और सफाई : ईयावगेनी बनीमोविच 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मैं कोई कवि नहीं हूँ, 
जीते-जागते कवि जैसी कोई चीज सच में होती है क्या 

मैं एक स्कूल टीचर हूँ 
गणित पढ़ाता हूँ,  
कम्प्यूटर साइंस,  
नैतिक शास्त्र और गृहस्थ जीवन का मनोविज्ञान भी 

इस सबसे बढ़कर रोज लौट आता हूँ घर 
अपनी बीवी के पास 

जैसा कि रूमानी झुकाव वाले एक पायलट ने कभी कहा था,  
प्रेम तब नहीं होता जब दो लोग एक-दूसरे को देखते रहें 
बल्कि तब होता है जब वे दोनों देखा करें एक ही दिशा में 

यह हमारे बारे में ही है 

दस बरसों से मैं और मेरी बीवी 
एक ही दिशा में देखते रहे हैं 

टेलीविजन की तरफ 

आठ सालों से हमारा बेटा भी उसी तरफ देख रहा है 

मैं कोई कवि नहीं हूँ,  
ऊपर बताए गए 
चौबीसों घंटे के पक्के सबूत में कोई सुराख तो नहीं है न 

गलतफहमियों और संयोगों का मेल,  
जो यदा-कदा पत्र-पत्रिकाओं में 
मेरी कविताओं के प्रकाशन में फलित होता है,  
मुझे अपना गुनाह क़ुबूल करने के लिए मजबूर करता है 

मैं कविता तभी लिखता हूँ जब वह अपरिहार्य हो जाए 
जब मैं निगरानी करता होता हूँ कक्षा की आंतरिक परीक्षाओं की 
तमाम पब्लिक स्कूल सुधारों के बावजूद 
कुछ विद्यार्थी अब भी करते हैं नक़ल 

इसे रोकने के लिए 

मुझे मजबूरन बैठना होता है गर्दन उचका कर 
आँखें फैलाए और सतर्क 
निर्निमेष निगाहें, फर्श के ठीक ऊपर किसी जगह पर टिकी हुईं 

यह मुद्रा अनिवार्य रूप से 
ले जाती है कविता रचने की ओर 

जो कोई भी चाहे जांच सकता है इसे 

मेरी कविताएँ छोटी होती हैं 
क्योंकि 45 मिनट से अधिक की नहीं होतीं कक्षा की आंतरिक परीक्षाएं 

मैं कोई कवि नहीं हूँ, 

और शायद 
इसीलिए दिलचस्प हूँ मैं 
               :: :: :: 
व्लादिमिर मायकोवस्की की आत्मकथा 'आई माइसेल्फ़' में एक वाक्य आता है "मैं एक कवि हूँ और इसीलिए मैं दिलचस्प हूँ."  

Saturday, January 5, 2013

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : मैं कुछ न कुछ बच जाता था

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...   


मैं कुछ न कुछ बच जाता था : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यान्तरण : मनोज पटेल) 

मुझे फ़ाक़ों से तक़्सीम किया गया 
मैं कुछ न कुछ बच गया 

मुझे तौहीन से तक़्सीम किया गया 
मैं कुछ न कुछ बच गया 

मुझे नाइंसाफ़ी से तक़्सीम किया गया 
मैं कुछ न कुछ बच गया 

मुझे मौत से तक़्सीम किया गया 
मैं पूरा पूरा तक़्सीम हो गया 
               :: :: ::
तक़्सीम करना : भाग देना, विभाजित करना 

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...