Thursday, March 31, 2011

महमूद दरवेश : एक छोटा सा काफीघर, जो प्यार है


महमूद दरवेश के गद्य और कवितायेँ आप कई बार इस ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं. आज फिर से उनका एक गद्यांश, और एक कविता. गद्यांश का शीर्षक अनुवादक की ओर से...














गद्यांश  क्या तुम ज़िंदा हो ? 

एक ख्वाब से दूसरा ख्वाब पैदा होता है :

-- क्या तुम ठीक हो ? मेरा मतलब है कि क्या तुम ज़िंदा हो ?

-- तुम्हें कैसे पता चला कि बस इसी पल मैं सोने के लिए तुम्हारी गोद में अपना सर रख रहा था ?

-- क्योंकि जब तुम मेरे पेट में हिलने-डुलने लगे तो तुमने मुझे जगा दिया था. मैं समझ गयी थी कि मैं तुम्हारा ताबूत हूँ. क्या तुम ज़िंदा हो ? क्या तुम मुझे सुन सकते हो ? 

-- क्या ऐसा अक्सर होता है, कि तुम एक ख्वाब से दुसरे ख्वाब में जागते होवो, जो खुद ख्वाब की ताबीर होता हो ?

-- यह देखो, यह तुम्हारे साथ हो रहा है और मेरे भी साथ. क्या तुम ज़िंदा हो ?

-- लगभग.

-- और क्या शैतान ने तुम पर अपना जादू चला दिया है ? 

-- मुझे नहीं पता, लेकिन अपने वक़्त पर मौत की गुंजाइश है.

-- पूरी तरह से मत मरना.

-- मैं कोशिश करूंगा.

-- मरो ही मत, एकदम से.

-- मैं कोशिश करूंगा. 

-- मुझे बताओ, यह सब कब हुआ था ? मेरा मतलब है, हम कब मिले ? कब बिछड़े ? 

-- तेरह साल पहले.

-- क्या हम कई बार मिले थे ?

-- दो बार : एक बार बारिश में, और फिर दूसरी बार भी बारिश में ही. तीसरी बार, हम कभी मिले ही नहीं. मैं चला गया और तुम्हें भूल गया. कुछ समय पहले मुझे याद आया. मुझे याद आया कि मैं तुम्हें भूल गया था. मैं ख्वाब देख रहा था. 

-- ऐसा मेरे साथ भी होता है. मैं भी ख्वाब देख रही थी. मैंने स्वीडन के एक दोस्त से तुम्हारा फोन नंबर हासिल किया जो तुमसे बेरुत में मिला था. मैनें तुम्हें शब्बखैर कहा था ! न मरने वाली बात मत भूलना. मैं अब भी तुम्हें चाहती हूँ. और जब तुम दुबारा ज़िंदा हो जाओ तो मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे फोन करना. वक़्त कैसे गुजर जाता है ! तेरह साल ! नहीं. यह सब पिछली रात ही तो घटित हुआ था. शब्बखैर !   
                                               * * *                 

कविता    एक छोटा सा काफीघर, जो प्यार है  

जैसे एक छोटा सा काफीघर, अजनबियों से भरी सड़क पर -- 
यही तो है प्यार... सबके लिए खुले हुए इसके दरवाजे. 
उस काफीघर की तरह जो फैलता-सिकुड़ता है
मौसम के हिसाब से :
अगर भारी बरसात हो रही हो, तो बढ़ जाते हैं इसके ग्राहक,
और अगर अच्छा मौसम हो, तो इने-गिने और ऊबे हुए होते हैं वे...
मैं हूँ यहाँ, अजनबी, कोने में बैठा हुआ.
(तुम्हारी आँखों का रंग क्या है ? तुम्हारा नाम क्या है ?
मैं तुम्हें कैसे पुकारूं जबकि तुम बगल से गुजर रही हो,
जबकि मैं तुम्हारे इंतज़ार में बैठा हुआ हूँ ?)
एक छोटा सा काफीघर, जो प्यार है. 
मैं दो प्यालों में शराब लाने के लिए कहता हूँ 
और अपनी और तुम्हारी तंदरुस्ती के नाम पीता हूँ.
मैं दो टोपियाँ साथ लेकर चल रहा हूँ 
और एक छाता. अब बारिश होने लगी है.
पहले से भी ज्यादा बारिश होने लगी है,
और तुम भीतर नहीं आती. 
आखिरकार मैं खुद से कहता हूँ : शायद जिसका मैं इंतज़ार कर रहा था 
वह मेरा इंतज़ार कर रही थी, या किसी और आदमी का,
या हम दोनों का इंतज़ार कर रही थी, और उसे / मुझे ढूंढ़ न सकी. 
वह कहेगी : मैं यहाँ इंतज़ार कर रही हूँ तुम्हारा.
(तुम्हारी आँखों का रंग क्या है ? तुम्हारा नाम क्या है ?
तुम्हें किस किस्म की शराब पसंद है ? मैं तुम्हें कैसे पुकारूं जब 
तुम बगल से गुजर रहे होवो ?)
            एक छोटा सा काफीघर, जो प्यार है... 
                    * *
(अनुवाद : मनोज पटेल)
Mahmoud Darwish ke hindi anuvad  

Wednesday, March 30, 2011

माइआ अंजालो : जब सोचती हूँ अपने बारे में


नस्ली भेद-भाव और उनसे संघर्ष, प्रसिद्द अश्वेत अमेरिकी कवियत्री माइआ अंजालो (Maya Angelou) के लेखन का प्रमुख विषय रहा है. उनका कहना है कि मैं एक अश्वेत स्त्री होने की वजह से ही लिखती हूँ, एक ऎसी अश्वेत स्त्री जो अपने लोगों की बातें गौर से सुनती है. 











जब सोचती हूँ अपने बारे में : माइआ अंजालो

जब सोचती हूँ अपने बारे में,
तो तकरीबन मर ही जाती हूँ हँसते-हँसते,
कितना बड़ा मजाक रही है मेरी ज़िंदगी,
जैसे ऐसा नृत्य जिसमें सिर्फ कदमताल ही की गयी, 
या कोई गाना जिसे बस बोल दिया गया हो सपाट, 
इतना अधिक हंसती हूँ मैं, कि साँसे रुकने लगती हैं मेरी 
जब सोचती हूँ अपने बारे में. 

साठ साल इन लोगों की दुनिया में, और 
लड़की कहकर पुकारती है मुझे वह बच्ची जिसके लिए काम करती हूँ मैं,  
और मैं " जी मैम - जी मैम " कहा करती हूँ नौकरी की खातिर.
इतनी स्वाभिमानी कि झुकना मुश्किल,
इतनी गरीब कि तोड़ना मुश्किल, 
हँसते-हँसते पेट में बल पड़ जाते हैं मेरे,
जब सोचती हूँ अपने बारे में.  

मेरे लोग मुझे अलग कर सकते हैं अपनी तरफ से, 
इतना अधिक हँसी मैं कि मर ही गयी तकरीबन,
झूठी लगती हैं कहानियां जो सुनाते हैं वे,
फल उगाए उन्होंने,
लेकिन खाए सिर्फ छिलके,
हंसती हूँ जब तक कि रोने न लगूँ मैं,
जब सोचती हूँ अपने लोगों के बारे में. 

(अनुवाद : मनोज पटेल) 
Maya Angelou Poems in Hindi Translation   

Monday, March 28, 2011

यासूनारी कावाबाता की दो "अंजुलि भर कहानियां"


( यासूनारी कावाबाता का जन्म 1899 में जापान के एक प्रतिष्ठित चिकित्सक परिवार में हुआ था. चार वर्ष की उम्र में वह अनाथ हो गए जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनके दादा-दादी ने किया. पंद्रह वर्ष की उम्र तक वे अपने सभी नजदीकी रिश्तेदार खो चुके थे. 1924 में स्नातक होने के पूर्व ही विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित उनकी रचनाओं ने लोगों का ध्यान खींचा. कावाबाता ने स्वीकार किया है कि उनके लेखन पर अल्पायु में ही अनाथ हो जाने और दूसरे विश्व युद्ध का सबसे ज्यादा असर रहा है. अपने उपन्यास Snow Country के लिए मशहूर कावाबाता को 1968 में साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला. यह सम्मान प्राप्त करने वाले वह पहले जापानी लेखक बने. 1972 में इस महान लेखक ने आत्महत्या कर लिया. उनकी एक अन्य कहानी छाता का मेरा अनुवाद आप नई बात पर पढ़ चुके हैं. )


तस्वीर 

हालांकि ऐसा कहना बहुत खराब है, लेकिन यकीनन अपनी बदसूरती की वजह से ही वह एक कवि बन गया था. इस कवि ने मुझे यह बताया :

"मुझे तस्वीरों से नफरत है और शायद ही कभी मैनें तस्वीर उतरवाने के बारे में सोचा हो. कोई चार-पांच साल पहले एक लड़की के साथ अपनी मंगनी के समय ऐसा मौक़ा आया था. वह मुझे बहुत प्रिय थी ; मुझे भरोसा नहीं कि ऎसी कोई औरत फिर से मेरी ज़िंदगी में आए. अब तो वे तस्वीरें मेरे लिए एक खूबसूरत याद बन कर रह गई हैं. 

"खैर, पिछले साल एक पत्रिका मेरी तस्वीर छापना चाहती थी. मैनें अपनी मंगेतर और उसकी बहन के साथ की अपनी एक तस्वीर में से अपनी तस्वीर काटकर उस पत्रिका को भेज दिया. अभी हाल में किसी अखबार का एक पत्रकार मेरी तस्वीर मांगने आया. मैंने एक पल को सोचा और आखिरकार अपनी मंगेतर के साथ की अपनी तस्वीर को आधी काटकर उसे दे दिया. मैनें उससे हर हालत में तस्वीर लौटाने को कहा लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं फिर कभी उसे वापस पाऊंगा. बहरहाल यह कोई मुद्दा नहीं है. 

"मैं भले ही कह रहा हूँ कि यह कोई मुद्दा नहीं है, लेकिन फिर भी जब मैनें इस आधी तस्वीर को, जिसमें मेरी मंगेतर अकेली रह गई है, देखा तो चौंक गया. क्या यह वही लड़की थी ? मैं तुम्हें उसके बारे में बताता हूँ.    

"इस तस्वीर में दिख रही लड़की खूबसूरत और हंसमुख थी. उस वक़्त वह सत्रह की थी और मुहब्बत में गिरफ्तार भी. लेकिन जब मैनें अपने हाथ में पकड़ी इस तस्वीर को देखा तो वही लड़की मुझे खुद से कटी-कटी सी नजर आई. मैनें महसूस किया कि वह कितनी नीरस थी. और इस क्षण के पहले तक यही तस्वीर मुझे अब तक देखी सभी तस्वीरों में सबसे अच्छी लगा करती थी...... मानो एक पल में मैं एक लम्बे ख्वाब से जाग उठा. मेरा बेशकीमती खजाना लुट गया. और इसलिए..... "

कवि अब और धीमी आवाज़ में बोल रहा था. 

"अगर वह अखबार में मेरी तस्वीर देखेगी तो यकीनन उसे भी ऐसा ही लगेगा. उसे शर्म आएगी कि उसने मेरे जैसे किसी शख्स से कैसे एक पल के लिए भी प्यार किया. 

"बहरहाल यही है कुल किस्सा. 

"मगर फिर यह भी सोचता हूँ कि अगर अखबार साथ-साथ हम दोनों की तस्वीर छापता, जैसी कि वह थी, तो क्या यह सोचकर कि मैं कितना भला आदमी था वह दौड़ती हुई मेरे पास वापस चली आती ?" 


समुद्रतटीय कस्बा 

यह समुद्रतटीय कस्बा भी बड़ा दिलचस्प है.

इज्जतदार गृहणियां और लड़कियाँ सराय में आती हैं और जब तक कोई मेहमान वहां ठहरता है उनमें से एक औरत रात भर उसके साथ रहती है. सुबह उठने से लेकर दोपहर के खाने और घूमने तक वह उसके साथ ही रहती है. वे उसी तरह रहते हैं गोया कोई जोड़ा हनीमून पर आया हो. 

फिर भी यदि वह यह कहे कि वह उसे गरम पानी के सोते वाली पास की दूसरी सराय में ले चलना चाहता है, औरत अपना सर इन्कार में हिलाते हुए सोचने लगेगी. बहरहाल अगर वह यह भी कहने पर आ गया कि वह इसी कस्बे में एक मकान किराए पर ले लेगा, वह, यदि वह एक जवान औरत हुई, खुशी-खुशी भरसक यही कहेगी कि, "मैं तुम्हारी बीवी बनने के लिए तैयार हूँ अगरचे यह ज्यादा वक़्त के लिए न हो. यह साल या छः महीने लंबा खिंचने वाला न हो." 

उस सुबह वह आदमी नाव से अपनी रवानगी की तैयारी में जल्दी-जल्दी अपना सामान बाँध रहा था. अचानक इस काम में उसकी मदद कर रही औरत ने कहा, "क्या तुम मेरे लिए एक ख़त नहीं लिख दोगे ?"

"क्या ? अब ?"

"हाँ अब मैं तुम्हारी बीवी नहीं रही इसलिए इसमें कोई हर्ज नहीं. तुम जितने दिन यहाँ रहे मैं तुम्हारे साथ-साथ रही. नहीं क्या ? मैनें कुछ गलत नहीं किया. मगर अब तो मैं तुम्हारी बीवी नहीं रही."

"ऎसी बात है-ऎसी बात है क्या ?" उसने उसके लिए किसी मर्द के नाम ख़त लिखा. जाहिर तौर पर वह उसी की तरह कोई और आदमी था जिसने इस औरत के साथ सराय में आधा महीना बिताया था. 

"क्या तुम मुझे भी ख़त नहीं भेजोगी ? ऎसी ही किसी सुबह जब कोई और आदमी इसी तरह नाव पकड़ने जा रहा होगा ? जब तुम उसकी भी बीवी नहीं रह जाओगी ?"

(अनुवाद : मनोज पटेल)
Yasunari Kawabata story in Hindi

Saturday, March 26, 2011

निज़ार कब्बानी : बल्कीस के जूड़े के लिए बारह गुलाब

पढ़ते-पढ़ते के दोस्तों के लिए आज निजार कब्बानी की यह कविता. इस सन्दर्भ के साथ कि निजार कब्बानी की दूसरी पत्नी का नाम बल्कीस अल रवी था, जिनसे उनकी मुलाक़ात बग़दाद के एक कवि सम्मलेन में हुई थी. बल्कीस की असामयिक मृत्यु बेरुत में एक आतंकवादी हमले में हुई थी. अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद निजार कब्बानी ने अपना दुःख इस कविता के माध्यम से व्यक्त किया था. उन्होंने फिर शादी नहीं की. 
















बल्कीस के जूड़े के लिए बारह गुलाब 

 1. 
मुझे पता था कि मार दी जाएगी वह 
और वह जानती थी कि मारा जाऊंगा मैं भी 
सच साबित हुईं दोनों भविष्यवाणियाँ 
किसी तितली की तरह दब गई वह 
अज्ञानता के युग के मलबे के नीचे 
और मैं दबोचा गया..... एक ऐसे समय के क्रूर पंजों में  
जो निगल जाता था कविताएँ 
स्त्रियों की आँखें 
और गुलाब आजादी के 

2. 
मुझे पता था कि मार दी जाएगी वह 
एक भद्दे समय में थी वह खूबसूरत 
शुद्ध थी वह एक दूषित समय में 
मतान्ध लोगों के समय में थी वह शरीफ 
एक दुर्लभ मोती सी थी वह 
बनावटी मोतियों के ढेर के बीच 
एक अनूठी स्त्री 
बनावटी स्त्रियों के झुण्ड में 

3. 
मुझे पता था कि मार दी जाएगी वह 
क्योंकि शफ्फाक थीं उसकी आँखें जवाहरात की दो नदियों की तरह 
और बग़दाद के मव्वल अलाप सी लम्बी थीं जुल्फें उसकी 
इस वतन का धीरज 
बर्दाश्त नहीं कर पाया हरियाली की सघनता 
नहीं सह पाया बल्कीस की आँखों में जुटे 
ताड़ के लाखों पेड़ों का नजारा 

4. 
मुझे पता था कि मार दी जाएगी वह 
क्योंकि इस प्रायद्वीप के घेरे से भी बड़ा था 
उसके स्वाभिमान का घेरा 
गंवारा नहीं था उसकी धरोहर को 
रहना इस पतनोन्मुख समय में 
उसका चमकीला स्वभाव नहीं देता था उसे इजाज़त 
रहने को अंधेरों में 

5. 
अपने स्वाभिमान की प्रबलता में 
उसे लगा कि बहुत छोटी है यह पृथ्वी उसके लिए 
तो उसने बांधा अपना सामान 
और चली गई दबे पाँव 
बिना बताए किसी को.......

6. 
यह डर नहीं था उसे कि उसका वतन मार डालेगा उसे 
वह तो डरती थी कि खुद को मार डालेगा वतन उसका

7. 
कविता से भरे एक बादल की तरह 
मेरी नोटबुक पर बरसाया उसने 
शराब....शहद..... और गौरैयों को 
बरसाए सुर्ख माणिक 
और मेरे जज्बातों पर छिड़के 
समुद्री सफ़र.... और परिंदे 
और चाँद चमेली के 
उसके जाने के बाद ही 
शुरूआत हुई प्यास के युग की 
ख़त्म हो आया युग पानी का 

8. 
हमेशा लगता था मुझे कि विदा हो रही है वह 
उसकी आँखों में हमेशा मौजूद होते थे जलयान 
   बने हुए रवाना होने के लिए 
उसकी बरौनियों पे दुबके हवाईजहाज  
तैयार रहा करते थे उड़ान भरने के वास्ते.
उसके हैंडबैग में - तभी से जबसे शादी की मैनें उससे -
एक पासपोर्ट हुआ करता था....... और टिकट एक हवाईजहाज का 
और वीजा ऐसे देशों का जहां कभी नहीं गई वह 
जब पूछा करता था उससे मैं :
कि क्यों अपने हैंडबैग में रखती हो ये कागजात सब ?
तो जवाब होता था उसका :
क्योंकि इन्द्रधनुष से तय है मुलाक़ात मेरी 

9. 
जब सौंपा उन्होंने उसका हैंडबैग मुझे 
जो मिला था उन्हें मलबे में से 
और देखा मैनें उसका पासपोर्ट 
टिकट हवाईजहाज का 
और प्रवेश वीजा 
जान गया कि बल्कीस अल रवी से नहीं 
शादी की थी मैनें 
एक इन्द्रधनुष से......

10. 
जब गुजर जाती है कोई खूबसूरत स्त्री 
पृथ्वी खो देती है संतुलन अपना 
सौ साल के मातम का एलान करता है चंद्रमा 
और बेरोजगार हो जाती है कविता 

11. 
बल्कीस अल-रवी
बल्कीस अल-रवी
बल्कीस अल-रवी
उसके नाम के इस आरोह-अवरोह को किया करता था मैं प्यार 
संभाले रखता था इसकी झंकार 
डरता था इससे जोड़ने में अपना नाम 
कि कहीं मटमैला न कर दूँ झील का पानी 
और बिगड़ न जाए तराने की लय-ताल कहीं 

12. 
इस स्त्री को नहीं बदा था रहना कुछ दिन और 
न ही वह चाहती ही थी कुछ दिन और रहना ज़िंदा 
सगी रही वह शमाओं और लालटेनों की 
और किसी कवितामय क्षण की तरह 
भक से उड़ जाना था उसे अंतिम पंक्ति से पहले.....

(अनुवाद : मनोज पटेल)
Nizar Qabbani Poem for his wife  

Friday, March 25, 2011

महमूद दरवेश : वह तुम्हें प्यार नहीं करती


महमूद दरवेश की कविताओं और गद्य के मेरे अनुवाद आप इस ब्लॉग के साथ-साथ, समालोचन पर भी पढ़ चुके हैं. आज उनकी एक और कविता... 











वह तुम्हें प्यार नहीं करती : महमूद दरवेश 

वह तुम्हें प्यार नहीं करती.
तुम्हारे रूपक रोमांचित करते हैं उसे. 
प्रिय कवि हो तुम उसके.
लेकिन बस इतना ही. 

नदी की लयबद्ध उछालें, 
रोमांच से भर देती हैं उसे.
इसलिए नदी बन जाओ उसे रोमांचित करने के लिए ! 
रोमांच से भर देता है उसे 
तुम्हारे छंदों में 
बिजली और उसकी गड़गड़ाहट का संयोग...
चू पड़ते हैं उसके वक्ष 
एक अक्षर पर.
इसलिए पहला अक्षर बन जाओ वर्णमाला का 
उसे उत्तेजित करने के लिए ! 
वह उत्तेजित हो उठती है चीजों की उन्नति से,
किसी भी चीज से रोशनी तक,
रोशनी से घंटियों की टिन-टिन तक,
घंटियों की टिन-टिन से एहसास तक.
इसलिए उसका कोई एहसास बन जाओ, उसे उत्तेजित करने के लिए. 

वह उत्तेजित हो उठती है 
अपनी रात और अपने वक्षों के बीच संघर्ष से. 
(प्रिय, तुमने मुझे बहुत कष्ट दिए हैं.
ऐ नदी, उड़ेलती हुई मेरे कमरे के बाहर 
अपनी उग्र कामुकता. 
प्रिय, मैं मार डालूंगी तुम्हें, 
अगर तुमने मुझे नहीं दिया लालसा का वरदान.)

एक फ़रिश्ते बनो,
उसे अपने रूपकों से प्रभावित करने के लिए नहीं,
बल्कि इसलिए कि वह तुम्हें क़त्ल कर सके 
अपने स्त्रीत्व के प्रतिशोध में 
और बच निकल सके तुम्हारे रूपकों के जाल से.

शायद वह तुम्हें प्रेम करने के लिए ही आयी है
क्योंकि तुमने उसे बिठा दिया ऊपर आसमान में,
जबकि तुम कोई और ही इंसान बन बैठे,
उसके आसमान में सबसे ऊंचा सिंहासन हथियाते हुए.
और वहां, नक्षत्रों में 
चीजें सब गड़बड़ा गयीं,  
मीन और कन्या राशियों के बीच. 

(अनुवाद : मनोज पटेल) 
Mahmoud Darwish Poems in Hindi  

Wednesday, March 23, 2011

सादी यूसुफ़ : रोजमर्रा के काम


सादी यूसुफ़ का परिचय और उनकी एक कविता आप इस ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं. आज उनकी एक और कविता. कुछ दिनों पहले मैनें सादी यूसुफ़ की हमवतन कवि, दून्या मिखाइल की कविताएँ पोस्ट की थीं, जिसमें एक कविता में एक बच्चे के लिए युद्ध का मतलब वह बटन है जिससे बत्ती बुझाई जाती है.  सादी यूसुफ़ की इस कविता में भी युद्ध को, ऐसे ही सिहरा देने वाले ब्योरों के माध्यम से देखा गया है...
















रोजमर्रा के काम 
(1982 में  इजराइल द्वारा बेरुत की घेरेबंदी के दौरान लिखे गए एक सिलसिले से) 

हमला 
कमरा कांपता है 
दूर हो रहे विस्फोटों से.
परदा कांपता है. 
और फिर दिल भी कांपता है.
क्यों हो तुम इतनी सारी कंपकंपियों के बीच ? 

पानी  
भरत पक्षी पीता है, 
सितारा पीता है,
समुन्दर पीता है,
और चिड़िया 
और घर के पौधे
और साबरा के बच्चे पीते हैं 
एक बम विस्फोट का धुंआ. 

एक कमरा 
कुछ नहीं है इसमें, सिवाय 
एक किताबों की आलमारी,
एक चारपाई,
और एक पोस्टर के.
एक लड़ाकू विमान उड़ता है ऊपर,
हवा में उठा लेता है चारपाई 
और आखिरी किताब को 
और राकेट से फाड़ देता है 
पोस्टर का एक हिस्सा.

बिजली 
अचानक हमें याद आती हैं गाँव की रातें 
और बगीचे 
और आठ बजे ही जाना बिस्तर पर.
अचानक हम सीख जाते हैं सुबह का इस्तेमाल. 
हम सुनते हैं मुअज्ज़िन की अज़ान 
और मुर्गे की बांग 
और शांत गाँव. 

किधर 
किधर जाता है यह लड़का 
इस अजीब सी शाम को ? 
एक पानी की बोतल और एक ग्रेनेड 
टंके हुए उसकी चौड़ी बेल्ट पर 
और हथियार जो कभी अलग नहीं होता उससे ?
क्या वह समुन्दर की तरफ जा रहा है ?

आह, यह अजीब लड़का ! 

रेडियो 
कचरे के मैदान हों या महल 
रेडियो रहता है हमारे साथ हर जगह 
अगल-बगल आगे बढ़ाए जाते चाय के प्यालों,
और यहाँ-वहां होते विस्फोटों के बीच. 
थोड़ा गा सकते हैं हम.
और रख सकते हैं थोड़ी उम्मीद.
बचा रहता है हमारा रेडियो 
क़यामत के दिन के बिगुल की तरह.  

राशन 
इनसे हम क्या खरीदने जा रहे हैं ?
क्या एक ही कमीज रहना काफी नहीं है,
या एक ही पुरानी जींस, 
आधी पावरोटी और चीज होना, 
और चहारदीवारी के पीछे से तोड़े गए फूल होना ही काफी नहीं है ?
इनसे हम क्या खरीदने जा रहे हैं ? 
शायद एकता का एक पल. 

तोपखाना 
बिजली कड़कती है सुबह-सुबह 
और समुन्दर घेर लेता है शहर को धुंए की तरह. 
बिजली कड़कती है सुबह-सुबह 
और डर जाती है एक चिड़िया.
हवाईजहाज आ गए क्या ?

सूनी इमारत में 
खामोशी से गिरता है एक पौधा 
और बर्तन सिहरते हैं. 

                                                बेरुत, जून-अगस्त / 1982 

(अनुवाद : मनोज पटेल)     
Poems in Hindi Translation  

Tuesday, March 22, 2011

वेरा पावलोवा की तीन कविताएँ

वेरा पावलोवा की कविताएँ आप इस ब्लॉग पर पढ़ते रहे हैं. आज उनकी तीन और कविताएँ...














शादी के इकरारनामे का एक मसौदा 
...अगर जरूरत पड़ी तो, किताबें इस तरह बांटी जाएंगी : 
तुम्हें मिलेंगे विषम, और मैं पाऊंगी सम पन्ने ; 
"किताबों" का मतलब उन किताबों से होगा जिन्हें हम 
साथ-साथ
जोर से बोलकर पढ़ा करते थे,
जब एक चुम्बन के लिए बीच में रोक देते थे अपना यह पढ़ना,
और आधे घंटे बाद उठाते थे फिर से किताब...   
                         * *
2
एक वजन मेरी पीठ पर, 
एक रोशनी मेरी कोख में.
कुछ और ठहरो मेरे भीतर,
जमा लो जड़ें. 
जब तुम सवार होते हो मेरे ऊपर,
विजयी और गर्वित महसूस करती हूँ,
जैसे बचाए ले चल रही होऊँ तुम्हें 
चौतरफा घिरे एक शहर से बाहर. 
                         * *
एक नाजुक सतह पर बहुत कोमलता से 
लिखी हुई हैं मेरी सबसे सुन्दर पंक्तियाँ :
मेरी जीभ की नोक से तुम्हारे तालू पर,
तुम्हारी छाती पर बहुत छोटे अक्षरों में,
तुम्हारे पेट पर...
लेकिन, प्रिय, मैनें लिखा है उन्हें, बहुत   
आहिस्ता-आहिस्ता !
क्या अपने होठों से मिटा सकती हूँ मैं 
तुम्हारा विस्मयादिबोधक चिन्ह ? 
                         * *

(अनुवाद : मनोज पटेल)
Vera Pavlova poems in Hindi translation  



Monday, March 21, 2011

सादी यूसुफ़ : कविता


इस ब्लॉग पर आप महमूद दरवेश की कविताएँ पढ़ते रहे हैं. ईराक में जन्में सादी यूसुफ़ का जीवन भी उन्हीं की तरह निर्वासन में बीता है और वे भी निर्वासन संबंधी कविताओं के लिए प्रसिद्ध हैं. 1934 में बसरा में जन्म, किन्तु 1979 में सद्दाम हुसैन के सत्ता में आने के बाद से वे सीरिया, लेबनान, ट्यूनीशिया, यमन, साइप्रस, यूगोस्लाविया, फ्रांस और जार्डन से होते हुए फिलहाल लन्दन में रह रहे हैं. कविताओं की तीस और गद्य की सात किताबें प्रकाशित. बहुत सा अनुवाद कार्य भी. 











कविता : सादी यूसुफ़ 

किसने तोड़ दिया इन आईनों को 
और फेंक दिया उन्हें 
किरच दर किरच  
टहनियों के बीच ?
और अब...
क्या हमें अल अख्दर से कहना चाहिए कि वह आकर देखे इसे ?
रंग सारे छितरा गए हैं इधर-उधर 
अक्स अटक कर रह गया है उनमें 
और आँखों में हो रही है जलन.
अल अख्दर को बटोरना ही होगा इन आईनों को 
अपनी हथेली पर 
मिलाना होगा इन टुकड़ों को एक-दूसरे से 
जिस भी तरह वह चाहे 
और बचानी ही होगी 
टहनियों की स्मृति. 
                                           बतना, 26/03/1980 

(अनुवाद : मनोज पटेल)
 سعدي يوسف

Friday, March 18, 2011

जोसे सारामागो : किसी मनुष्य की हत्या का नुस्खा


आप इस ब्लॉग पर जोसे सारामागो के कुछ कोट्स और महमूद दरवेश से सम्बंधित उनका गद्यांश पढ़ चुके हैं. आज प्रस्तुत है उनके गद्य की एक और बानगी, 'किसी मनुष्य की हत्या का नुस्खा'. 











किसी मनुष्य की हत्या का नुस्खा : जोसे सारामागो 


प्रचलित आकार-प्रकार के अनुसार, दो-चार दर्जन किलो मांस, हड्डियां और खून लीजिए. इन्हें उचित तालमेल के साथ सर, धड़ एवं अन्य अंगों में व्यवस्थित करके, कल-पुर्जों और नसों एवं तंत्रिकाओं के एक संजाल से भर दीजिए. यह कार्य, निर्माता के दोषों से बचने का ध्यान रखते हुए करिए, अन्यथा जिनका परिणाम असामान्य डील-डौल हो सकता है. चमड़ी के रंग का तनिक भी महत्व नहीं होता. 

इस पेचीदा कार्य से निर्मित उत्पाद को मनुष्य का नाम दीजिए. अक्षांश, मौसम, उम्र, और मनोदशा के अनुसार गर्म या ठंडा परोसिए. यदि आप अपने इन नमूनों को बाज़ार में उतारना चाहते हों तो उनमें कुछ ऐसे गुणों को भी बिठा दीजिए जो उसे आम माल से अलग कर सकें : साहस, बुद्धिमत्ता, संवेदनशीलता, चरित्र, न्यायप्रियता, दयालुता, अपने पड़ोसियों और दूर रहने वालों के लिए सम्मान. दोयम दर्जे के उत्पादों में तमाम नकारात्मक गुणों के साथ-साथ, इन सकारात्मक गुणों में से एकाध गुण ही, कम या ज्यादा मात्रा में, पाए जाएंगे, और उनमें नकारात्मक गुण ही हावी रहेंगे. विनम्रता का तकाजा है कि हम पूर्णतः सकारात्मक या पूर्णतः नकारात्मक उत्पादों को व्यवहार्य न मानें. हर हाल में, ध्यान रहे कि इन सभी मामलों में चमड़ी के रंग का तनिक भी महत्व नहीं है. 

लेकिन किसी मनुष्य को उसी की तरह कारखाने से निकले एवं समाज कही जाने वाली इमारत में रहने वाले अपने साथियों से अलगाने के लिए, एक व्यक्तिगत लेबल द्वारा ही वर्गीकृत किया जाता है. वह इस इमारत के किसी एक या अन्य तल पर जगह लेगा, किन्तु कदाचित ही उसे सीढ़ियों से ऊपर जाने की इजाजत होगी. नीचे जाने की अनुमति रहती है और समय-समय पर इसे सुगम भी बनाया जाता है. इमारत के तलों पर ढेर सारे घर होते हैं जिन्हें कभी सामाजिक हैसियत के अनुसार और कभी पेशे के अनुसार आवंटित किया जाता है. आदत, प्रथा, एवं पूर्वाग्रह कही जाने वाली धारा में ही गति मिलती है. इस धारा के खिलाफ तैरना खतरनाक है, हालांकि कुछ मनुष्य जीवन भर यही करते रहते हैं.  इन मनुष्यों में, जिनके शरीर में लगभग पूर्णता की हद तक पहुंचे गुण मौजूद होते हैं, या जिन्होनें जानबूझ कर इन गुणों का चुनाव किया होता है, उनकी चमड़ी के रंग के आधार पर कोई भी भेद नहीं किया जा सकता. इनमें से कुछ गोरे हैं और कुछ काले, कुछ पीले हैं और कुछ भूरे. इनमें कुछ ताम्बई रंग वाले भी हैं, किन्तु ये लगभग लुप्तप्राय प्रजाति है.   

मनुष्य की अंतिम नियति, जैसा कि हम दुनिया की शुरूआत से ही जानते रहे हैं, मृत्यु है. ठीक-ठीक अपने क्षण में, मृत्यु सभी के लिए एक समान होती है. इसके ठीक पहले के क्षण सभी के लिए एक समान नहीं होते. कोई साधारण ढंग से मर सकता है, जैसे कोई सोते-सोते ही मर जाए ; कोई उन बीमारियों में से किसी एक के चंगुल में आकर मर सकता है जिन्हें शिष्टाचारपूर्वक निर्मम कहा जाता है ; कोई यातना शिविर में यातना की वजह से मर सकता है ; कोई नाभिकीय विकिरण के कारण मर सकता है ; कोई जगुआर चलाते हुए या उसके नीचे आकर मर सकता है ; किसी दोपहर, कोई राइफल की गोली से भी मर सकता है जबकि अभी दिन है और आप सोच भी नहीं सकते कि मौत नजदीक खड़ी है. लेकिन किसी मनुष्य की चमड़ी के रंग का कोई महत्व नहीं होता. 

मार्टिन लूथर किंग हममें से किसी की तरह ही एक मनुष्य थे. उनमें बहुत सी अच्छाईयां थीं जिनके बारे में हम जानते हैं, और निसंदेह कुछ दोष भी जो किसी भी तरह उनकी अच्छाइयों को कम नहीं करते. उनके जिम्मे बहुत सा काम था - और वे उन्हें अंजाम दे रहे थे. वे आदत, प्रथा एवं पूर्वाग्रह की धाराओं के खिलाफ संघर्ष करने में गले तक डूबे थे. जब तक कि राइफल की एक गोली ने हम जैसे अन्यमनस्क लोगों को फिर से याद नहीं दिला दिया कि किसी मनुष्य की चमड़ी का रंग सचमुच बहुत महत्वपूर्ण होता है. 

(अनुवाद : मनोज पटेल)
Jose Saramago Hindi Anuvad 

Wednesday, March 16, 2011

तुमने घोड़े को अकेला क्यों छोड़ दिया


महमूद दरवेश के गद्य 'एक मामूली दुःख का रोजनामचा' के बाद आज दरवेश की यह महत्वपूर्ण कविता. इस कविता में आयी पंक्ति 'तुमने घोड़े को अकेला क्यों छोड़ दिया ?', महमूद दरवेश के एक कविता संग्रह का नाम भी है. 












नागफनी की शाश्वतता : महमूद दरवेश 

- आप मुझे कहाँ ले चल रहे हैं, अब्बू ?
- जहां हवा बह रही है, मेरे बेटे.

और उस मैदान से विदा लेते हुए, जहां अक्का की पुरानी दीवारों पर निगाह रखने के लिए
बोनापार्ट की फौजों ने एक पहाड़ी खड़ी कर दी थी, -
पिता अपने बेटे से कहता है : डरो मत.
गोलियों की तड़तड़ाहट से मत डरो !
ज़िंदा बचे रहने के लिए जमीन से चिपक जाओ ! 
हमें कुछ नहीं होगा, और हम उत्तर की तरफ किसी पहाड़ी की चोटी पर पहुँच जाएंगे,
और तभी लौटेंगे जब फ़ौजी, दूर देश, अपने परिवारों के पास  वापस चले जाएंगे. 

- और वहां, हमारे घर में कौन रहेगा, अब्बू ? 
- वह ऐसे ही पड़ा रहेगा, मेरे बेटे. 

उन्होंने घर की चाभियों को टटोला मानो वे अपने अंगों को टटोल रहे हों,
और कुछ चैन मिला उन्हें. और उन्होंने कांटेदार झाड़ी की बाड़ पार करते हुए कहा :
याद रखना मेरे बेटे, यहाँ नागफनी की कांटेदार झाड़ियों पर, अंग्रेजों ने दो रातों तक 
सूली पर चढ़ाए रखा था तुम्हारे अब्बू को, लेकिन उन्होंने कुछ भी कबूल नहीं किया था.
तुम बड़े हो जाओगे मेरे बेटे, और बताना उन्हें, जो राइफलों की विरासत के हकदार बनें,
उनके लोहे पर हमारे खून की दास्ताँ. 

- तुमने घोड़े को अकेला क्यों छोड़ दिया ?
- घर को सोहबत देने के लिए, मेरे बेटे,
क्योंकि घर मर जाते हैं, अगर उनके बाशिंदे कहीं और चले जाएं. 

शाश्वतता दूर से ही अपने फाटक खोल देती है 
रात की सवारियों के लिए. जंगल से भेड़िए गुर्राते हैं 
दहशतजदा चन्द्रमा पर, और एक पिता अपने बेटे से कहता है : 
हिम्मती बनो अपने बाबा की तरह !
और बलूत से ढंकी इस आखिरी पहाड़ी पर मेरे साथ चढो. 
ध्यान रखना, मेरे बेटे : यहाँ अपने घोड़े से गिर पड़ा था आखिरी योद्धा 
इसलिए हिम्मत से रहना मेरे साथ, जब तक हम घर वापस न पहुँच जाएं. 

- हम घर कब लौटेंगे, अब्बू ?
- कल, शायद दो दिनों में. 

यह एक बेठिकाना कल था, उनके पीछे सर्दी की लम्बी रातों में
हवा को कुतरता हुआ. 
उनके घर के पत्थरों से अपना किला बना लिया जोशुआ की सेना ने.
जबकि वे दोनों, काना को जाने वाली सड़क पर खड़े हुए, उखड़ी हुई साँसों के साथ :  
यहाँ से कभी गुजरा था हमारा खुदा.
यहाँ उसने पानी को बदल दिया था शराब में.
यहाँ उसने बहुत से उपदेश दिए थे प्रेम के बारे में. 
मेरे बेटे, याद रखना आने वाले कल को. 
याद रखना जिहादियों के किलों को 
जिन्हें निगल लेगी अप्रैल की घास 
फौजियों के चले जाने के बाद. 

(अनुवाद : मनोज पटेल)
Mahmoud Darwish Hindi Translation

Monday, March 14, 2011

महमूद दरवेश : एक मामूली दुःख का रोजनामचा


"हर अच्छी कविता प्रतिरोध की एक कार्रवाही है." ऐसा मानने वाले फिलिस्तीनी कवि महमूद दरवेश ने अपनी कविताओं जितना ही अच्छा गद्य भी लिखा है. इस आत्मकथात्मक किस्म के गद्य में उनकी नजरबंदी, इजरायली अधिकारियों की पूछताछ और जेल में बिताए उनके दिनों का ब्योरा है. यहाँ भी निर्वासन और अपनी मातृभूमि के लिए उनकी गहरी तड़प कदम-कदम पर दिखती है. उनका गद्य इतना काव्यात्मक है कि इसे उनकी कविताओं से अलगाना बेहद मुश्किल है. यहाँ प्रस्तुत अंश 'जर्नल आफ ऐन आर्डिनरी ग्रीफ' से... 
















एक मामूली दुःख का रोजनामचा 





-- तूफ़ान के गुजरने तक नीचे झुक जाओ मेरी जान. 

-- हमेशा के इस नीचे झुकने से मेरी पीठ धनुष हो गयी है. तुम अपना तीर कब चलाने जा रहे हो ? 
    [ आप अपना हाथ दूसरे हाथ तक ले जाते हैं, और मुट्ठी भर आटा पाते हैं ]

-- तूफ़ान के गुजरने तक नीचे झुक जाओ मेरी जान. 

-- हमेशा के इस नीचे झुकने से मेरी पीठ पुल हो गयी है. तुम पार कब उतरोगे ? 
    [ आप अपना पैर बढ़ाने की कोशिश करते हैं, लेकिन लोहा हिलता भी नहीं ]

-- तूफ़ान के गुजरने तक नीचे झुक जाओ मेरी जान. 

-- हमेशा के इस नीचे झुकने से मेरी पीठ एक सवालिया निशान हो गयी है. तुम जवाब कब दोगे ?
    [ सवाल पूछने वाला एक रिकार्ड बजाता है जिसमें तालियों की गड़गड़ाहट है ]

जब तूफ़ान ने उन्हें छिटका दिया, तो वर्तमान, अतीत पर चिल्ला रहा था : "यह तुम्हारी गलती है." और अतीत अपने अपराध को क़ानून में बदल रहा था. जहां तक भविष्य की बात है, वह एक तटस्थ पर्यवेक्षक मात्र था. 

तूफ़ान के गुजर जाने के बाद, ये सभी झुकाव पूरे होकर एक वृत्त में बदल गए जिसकी शुरूआत और अंत अज्ञात हैं.     
                              * *

-- हर सिसकी के बाद थोड़ा रुको, और हमें बताओ कि तुम कौन हो.

जब तक वह दुबारा होश में आया, खून सूख चुका था.

-- मैं पश्चिमी किनारे से हूँ.

-- और उन्होंने तुम्हें इतनी यातना क्यों दिया ?

-- तेल अवीव में कोई विस्फोट हुआ था, इसलिए उन्होंने मुझे गिरफ्तार कर लिया.

-- और तेल अवीव में तुम क्या करते हो ?

-- मैं ईंट-गारा करने वाला एक मजदूर हूँ.

इजरायली शहरों में, पश्चिमी किनारे या गाजा पट्टी के अरबी मजदूरों के कामकाज के हालात अभी तक सामान्य नहीं हो पाए हैं. पिछली पराजय के फ़ौरन बाद ही, अरब जनता को उम्मीद थी कि अरबी मजदूरों को निष्ठा बनाए रखने और कब्जे को नामंजूर करने के वास्ते भूखो मरना पडेगा. जिम्मेदारी के ओहदे पर बैठे किसी भी शख्स ने अधिग्रहीत क्षेत्र में रह रहे लोगों को रोजी-रोटी का कोई साधन मुहैया कराने के बारे में नहीं सोंचा, ताकि वे अपनी निष्ठा बनाए रख सकें और जीतने वालों के साथ किसी किस्म का सहयोग करने से इनकार करते रह सकें. 

-- जब बंदूकें खामोश हों, तो क्या मुझे भूख महसूस करने का हक़ नहीं है ?

आप किसी ऐसे शख्स से क्या कहेंगे जो इस ढंग से अपने सवाल रख रहा हो ? राष्ट्र गानों और उत्तेजक भाषणों को पीसकर, उन्हें गूंथकर, रोटी में बदलने का बूता हममें नहीं है. 

अधिग्रहीत मातृभूमि का रोटी के किसी टुकड़े में बदल जाना सबसे खतरनाक है. यह भी भयानक है कि फ़ौजी कब्जे में रह रही आबादी को वर्तमान परिस्थितियों और राजनैतिक और सैन्य चुप्पी के चलते जबरन भूखों रहना पड़े. 

-- जंग के दौरान जब भीषण लड़ाइयां छिड़ी हों, हम जीवन की गुणवत्ता के बारे में कुछ ख़ास ध्यान नहीं देते. युद्ध की घोषणा कर दीजिए या कोई लड़ाई शुरू कर दीजिए तो हम हर तरह का बलिदान करने के लिए तैयार हैं. लेकिन जब बंदूकें खामोश हों, तो हमें भूख महसूस करने का हक़ है.

और हम यह क्यूं भूल जाते हैं, या भूलने का बहाना करते हैं कि खुद इजरायल का निर्माण भी अरब के लोगों के ही हाथों हुआ था ? 

कितना विरोधाभासी ! कितना शर्मनाक ! 
                              * *


-- तुम कहाँ के हो, भाई ?

-- गाजा का.

-- तुमने क्या किया था ?

-- मैनें विजेताओं की कार पर ग्रेनेड फेंका था, लेकिन उनकी बजाए खुद को ही उड़ा बैठा.

-- और...

-- उन्होंने मुझे गिरफ्तार कर लिया और मुझ पर खुदकशी की कोशिश का इल्जाम लगाया. 

-- तुमने जाहिर है, कबूल कर लिया होगा.

-- ठीक-ठीक ऐसा नहीं है. मैनें उन्हें बताया कि खुदकशी की कोशिश कामयाब नहीं हुई थी. इसलिए उन्होंने दया करते हुए मुझे इस आरोप से मुक्त कर दिया, और उम्रकैद की सजा सुना दी. 

-- मगर तुम मारने की नियत रखते थे, न कि खुदकशी की ?

-- लगता है तुम गाजा को नहीं जानते. वहां फर्क एक खयाली चीज है. 

-- मैं समझा नहीं.

-- लगता है तुम गाजा को नहीं जानते. तुम कहाँ के हो ?

-- हईफ़ा का.

-- और तुमने क्या किया था ?

-- मैनें विजेताओं की कार पर एक कविता फेंकी थी, और इसने उन्हें उड़ा दिया था. 

-- और...

-- उन्होंने मुझे गिरफ्तार कर लिया और मुझ पर सामूहिक हत्याओं का इल्जाम लगाया. 

-- तुमने जाहिर है, कबूल कर लिया होगा.

-- ठीक-ठीक ऐसा नहीं है. मैनें बताया कि क़त्ल की कोशिश कामयाब हो गयी थी. इसलिए उन्होंने मेरी गुजारिश के जवाब में कृपा की और मुझे दो महीने की कैद की सजा दी. 

-- मैं समझा नहीं. 

लगता है तुम हईफ़ा को नहीं जानते. वहां फर्क एक खयाली चीज है. 

जेल का चौकीदार आया, उसे जेल में डाल दिया, और मुझे रिहा कर दिया. 
                              * *









जाओ. और फिर से वापस आओ, जबकि मैं बेखुदी से खुद तक वापस आऊँ. 

जब तक ख्वाब मेरा बदन छोड़ न दे, दूर ही रहना.

मैनें तुम्हें धुंआ उड़ाना सिखाया. और तुमने मुझे धुंए की सोहबत सिखा दी. 

जाओ. और फिर से वापस आओ ! 

-- और, तुमने उससे और क्या-क्या कहा ?

-- मैनें प्रेम की कोई बात नहीं की. मेरे शब्द अस्पष्ट थे, और जब तक वह सो नहीं गयी, मैं उन्हें नहीं समझ पाया था. वह बहुत गाया करती थी और ख़्वाबों में छोड़कर, मैं उसके गीतों को समझ नहीं पाता था. और वह खूबसूरत है ! खूबसूरत ! जिस पल मैनें उसे देखा, मेरे दिमाग से बादल छंट गए थे. मैं उसे झपटकर अपने घर ले आया और कहा था, "इसे प्रेम समझो." 

वह हँसी. सबसे अँधेरे समय में भी वह हँसी. 

मैं उसे उधार लिए हुए एक नाम से बुलाया करता था क्योंकि यह अधिक खूबसूरत है. जब मैं उसे चूमता था तो एक चुम्बन से दूसरे चुम्बन के बीच इतनी कामना से भरा हुआ होता था, कि ऐसा महसूस होता था यदि मैनें उसे चूमना बंद कर दिया तो उसे खो बैठूंगा. 

रेत और पानी के बीच में, उसने कहा था, "मैं तुमसे प्रेम करती हूँ."

और कामना और यातना के बीच में, मैनें कहा, "मैं तुमसे प्यार करता हूँ."

और जब एक अफसर ने उससे पूछा कि वह यहाँ क्या कर रही थी, उसने जवाब दिया, "तुम कौन हो ?" और उसने कहा, "और तुम कौन हो ?"

वह बोली, "मैं उसकी प्रेमिका हूँ, हरामजादे, और मैं इस कैदखाने के फाटक तक उसे विदा करने उसके साथ आयी हूँ. तुम उससे क्या चाहते हो ?'   

वह बोला, "तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं एक अफसर हूँ."

"अगले साल मैं भी एक अफसर हो जाऊंगी," उसने कहा. 

उसने फ़ौज में दाखिले के अपने कागजात निकाले. तब अफसर मुस्कराया, और मुझे कैदखाने की तरफ खींच ले गया. 

अगले साल [1967] जंग भड़क उठी, और मुझे फिर से जेल में डाल दिया गया. मुझे उसकी याद आयी : "वह इस समय क्या कर रही होगी ?" वह नाबलुस में हो सकती है, या किसी और शहर में, बाक़ी विजेताओं की तरह हल्की रायफल लिए हुए, और शायद इस क्षण कुछ लोगों को अपने हाथ ऊपर उठाने या जमीन पर झुकने का हुक्म दे रही हो. या शायद वह, अपनी ही उम्र की और अपने ही जैसी खूबसूरत, किसी अरबी लड़की से पूछताछ और यंत्रणा की प्रभारी हो. 

उसने खुदाहाफिज नहीं कहा था. 

और तुमने नहीं कहा : "जाओ, और वापस आना."

तुमने उसे धुंआ उड़ाना सिखाया, और उसने तुम्हें धुंए की सोहबत सिखा दी. 
                              * *

  

नए साल के दिन आप क्या करते हैं ?

आप किसी दोस्त को भेजने के लिए एक खूबसूरत ग्रीटिंग कार्ड की तलाश में सड़क पर जाते हैं, और आपके हाथ क्या लगता है ? गुलाब की एक भी तस्वीर नहीं, समुन्दर के किनारे, पक्षी, या किसी स्त्री का कोई रेखाचित्र नहीं. टैंक, तोप, लड़ाकू विमान, रोती हुई दीवार, अधिगृहीत कस्बों, और स्वेज नहर की खातिर जगह बनाने के लिए ये सभी गायब हो गए हैं. और जब आप जैतून की एक टहनी को मौक़ा देने के लिए सोचते हैं, तो आप इसे फ्रांस में बने  एक लड़ाकू जेट के डैनों पर बना पाते हैं. 

जब आप एक खूबसूरत लड़की को देखते हैं, तो उसे पूरी तरह हथियारबंद पाते हैं. और जब आपकी निगाह किसी शहर पर पड़ती है, आप पृष्ठभूमि में किसी फौजी के बूट पाते हैं. आपका दिल डूब जाता है. कुछ नहीं बचा, सिवाय इसके कि इन रंग-बिरंगे छुट्टियों के कार्डों, जिन्हें ऐतिहासिक पुनर्जन्म की खुशी में यहूदियों को दुनिया भर में भेजा जाना है, की तरफ बढ़े हजारों हाथों को जगह देने के लिए,  भीड़ भारी सड़क के एक कोने में सिमट जाया जाए. मगर आप अपने दोस्तों को कुछ नहीं भेजते सिवाय अपने दिल की खामोशी के, जो अपने गंतव्य तक नहीं पहुंचती.  

सड़क पर यह मेले जैसा माहौल आपको आश्चर्य में डाल देता है. रोशनी आप पर उसी तरह उतरती है जैसे तब, जब आप एक अंधेरी कोठरी से बाहर आए थे, और जैसे यह पूरी तरह हथियारों से लैस बच्चों / फाख्तों के झुण्ड पर उतरती है. खिलौने हथियार हैं. और खुशी भी एक हथियार है. 

और आप ? आपके बचपन या जवानी में और कुछ नहीं है सिवाय लकड़ी के एक घोड़े के. 
                              * *   

(अनुवाद : मनोज पटेल) 
Mahmoud Darwish, Journal of an Ordinary Grief in Hindi 
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