Sunday, July 28, 2013

अभिषेक गोस्वामी की कहानी : मॉर्निंग वॉक

जयपुर में जन्मे अभिषेक गोस्वामी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की थिएटर इन एजुकेशन कं में अध्यापन और आज़ाद थिएटर निर्देशक एवं सलाहकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं. उनका अपना थिएटर समूह ब्रीदिंग स्पेस चर्चा में रहा है और वे भारत के अलावा ओमान तथा चीन में भी रंगमंचीय प्रदर्शन कर चुके हैं. फोटोग्राफी और कविता का भी शौक. सम्प्रति अजीम प्रेमजी फाउंडेशन में रंगमंच विशेषज्ञ के तौर पर कार्यरत. कहीं भी प्रकाशित होने वाली यह पहली कहानी...  













मॉर्निंग वाक : अभिषेक गोस्वामी 
र्मा जी को टी वी देखने की बहुत बुरी लत लग चुकी थी। घर मेंअधिकतर समय रिमोट उनके कब्जे में ही रहता। एक दिन सुबह जब वे पायजामा पहन कर 'मॉर्निंग वॉकके लिए घर से निकलकर शहर के सेंट्रल पार्क में पहुंचे और जेब में हाथ डाला तो पाया कि आज टी वी का रिमोट उनकी जेब में ही रह गया है।
आज उनका पार्क के जॉगिंग ट्रेक पर चक्कर लगाने का इरादा नहीं था। अतः वे अपने बाएँ हाथ की बैसाखी को वहीं बेंच के सहारे टिकादायें हाथ मे रिमोट लेकर बैठ गए और हाथ से आदतन 'चैनलबदलने जैसी हरकतें करने लगे। उन्हें उनके सामने से जॉगिंग ट्रेक पर ताज़ा हवा में दौड़ लगाते बच्चेपुरुषमहिलाएं एवं बालिकाएँ कभी खबर लगते तो कभी सीरियलकभी धार्मिक चैनल तो कभी छुप छुप कर देखे जाने वाले चैनल
शर्मा जी सेंट्रल पार्क में हरे रंग की जिस बेंच पर आकर बैठे थे वह एक ऐसी जगह रखी थीजहां से न केवल पार्क के जॉगिंग ट्रेक की गोलाई को देखा जा सकता था बल्कि, उस ट्रेक पर दौड़ते उछलते हुये लोगों को कम से कम एक बार उस बेंच के ठीक सामने करीब से होकर गुजरते हुये भी देखा जा सकता था।
शर्मा जी की उम्र का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अगले माह वे सरकारी सेवा से निवृत्त होने वाले थे। देश, समाज, राजनीतिखेल, धर्म कर्म एवं इतिहास आदि के टी वी प्रसारणों में शर्मा जी की रुचि बहुत कम थी। पर विज्ञापन वे खूब मन लगाकर देखतेविशेषकर सौन्दर्य प्रसाधनों के विज्ञापन।
देर रातजब न्यूज़ चैनल वालों के पास खबरें खतम हो जातीलगभग उसी दौरान अन्य चैनल थोड़े थोड़े अंतराल में शक्तिवर्धक 'पावरप्राश' का विज्ञापन प्रसारित करते है। यह शर्मा जी का पसंदीदा विज्ञापन था जिसे देखने का शगल वे बेनागा, प्रतिबद्धता के साथ पूरा करने की कोशिश करते।
मगर चैनल वाले किसी के सगे नहीं होते। उन्हें अपने उपभोक्ता की जरूरतों से क्या सरोकारवे तो उन्हीं कंपनियों के विज्ञापन प्रसारित करते हैं जो तुलनात्मक रूप से अधिक मुनाफा करवा रही हो।
इसी वजह से पावरप्राश के विज्ञापन की तलाश में शर्मा जी को कई रात तो चैनल चैनल भटकते हुये स्टील के बर्तनों का विज्ञापन भी कई कई बार देखना पड़ता। लिहाजा इस प्रक्रिया में उन्हें देर रात तक जागना पड़ता इसलिए वे सुबह जल्दी उठ नहीं पाते और जब उठते तो मॉर्निंग वॉक पर जाने का वक्त निकल चुका होता ।
गनीमत है, और भला हो स्टार मूवीस का कि उस रात शर्मा जी को ठीक समय पर पावरप्राश के विज्ञापन का समुचित विकल्प मिल गया। वे सभ्य समय पर सो गए और सुबह सभ्य समय पर उठकर मॉर्निंग वॉक के लिए सेंट्रल पार्क में आ गए और पार्क की हरी बेंच पर बैठ कर खुली और ताज़ी हवा में सांस लेने का लुत्फ उठाने लगे। उनके दायें हाथ में रिमोट था जो गलती से उनके साथ यहाँ तक चला आया था।
इधर पार्क में हरी बेंच पर बैठे शर्मा जी की बेचैन उँगलियाँ आदतन रिमोट से चैनल बदलने जैसी हरकत कर रही थी और उधरजॉगिंग ट्रेक पर लोग एक के बाद एक चक्कर लगा रहे थे। अपने सामने जॉगिंग ट्रेक पर चक्कर लगाते हुये लोगों का बदलना शर्मा जी को चैनल बदलने जैसा अनुभव दे रहा था।  पर अभी तक उन्हें अपने मन माफिक चैनल नहीं मिल पाया था। जहां वे कुछ देर ठहरकर पावरप्राश के विज्ञापन जैसा आनंद ले सकें।
कुछ देर की जद्दोजहद के बाद उनके रिमोट वाले दायें हाथ की उँगलियों की हरकत अचानक थम गयी और रिमोट कब हाथ से फिसला शर्मा जी को पता नहीं।
दरअसल, उनके ठीक सामने, जॉगिंग ट्रेक पर, एक खूबसूरत लड़की आकर रुकी थी।
उम्र लगभग 20 वर्ष। कानों में ईयर फोन जिसका तार कहीं ट्रेक पैंट की जेब के भीतर जाकर खत्म हो रहा था।
ब्रांडेड जॉगिंग शूज और सफ़ेद रंग की पट्टियों वाला गुलाबी रंग का टाइट होज़री ट्रेक सूट ज़ाहिर कर रहा था कि वह लड़की अपनी शरीरिक लोचशीलता के प्रति शायद अपनी किशोरावस्था से ही सजग रही है। उसके माथे का पसीना बता रहा था कि उसने इस विशाल जॉगिंग ट्रेक के कम से कम दो या तीन चक्कर लगा लिए हैं। और अब थोड़ा सांस लेने के लिए रुकी है।
शर्मा जी ने अपनी आँखों के कैमरे को पहले लड़की के ठीक पीछे वाले बरगद पर फोकस करते हुये सामने देखा और धीरे धीरे पैन डाउन करते हुये लड़की के पैरों की तरफ ले गएक्षण भर वहाँ रुके, फिर धीरे धीरे आँखों के कैमरे को टिल्ट अप करते हुये लड़की के चेहरे पर ले गए और लंबे समय के लिए  टिका दिया।
लड़की की यह उपस्थिति उनके लिए अविश्वसनीय थी। पहले पहल तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ पर लड़की के चेहरे पर जो तिल था उसे क्लोज़ अप करके देखने पर ख्याल पुख्ता हो पाया कि यह वही लड़की है जिसे उन्होने दो दिन पहले, देर रात, किसी चैनल पर पावरप्राश के नए विज्ञापन में देखा था।
उन्हें अच्छी तरह याद आया कि उन्होने उस वक्त न्यूज़ चैनल पर बलात्कार के खिलाफ इंडिया गेट पर कैंडल मार्च वाली खबर के अति दोहराव से बोर होकर चैनल बदला था और पावरप्राश के नए विज्ञापन में इसी लड़की को देखकर रिमोट अपने बिस्तर पर फेंक दिया था।
इस बीच उस लड़की ने अपनी ट्रेक पेंट में रखे बड़े से मोबाइल को निकालकर संगीत का ट्रेक बदला और रस्सी कूदने लगी। शर्मा जी भी अब इस लड़की के पावरप्राश वाली लड़की होने के पक्ष में तमाम प्रमाण जुटाने के बाद अपने चश्मे के मोटे शीशों को अपने सफ़ेद कुर्ते के कोने से साफ करके लड़की की उछल कूद को देखने में तल्लीनता से जुट गए थे।
शर्मा जी की गणना के अनुसार लड़की लगभग पाँच सौ बार रस्सी के बीच से उछली कूदी थी। शर्मा जी के लिए दर्शक के तौर पर यह सारा उपक्रम ठीक वैसा ही रहा था जैसे लान टैनिस के मैदान में बैठे दर्शकों को अपनी आँखों को इधर से उधर आती जाती गेंद पर टिकाये रखने के लिए करने होते हैं।
गतिमान वस्तु को लगातार देखने से शर्मा जी को चक्कर आने लगते थे। ऐसा ही उन्हें अब भी महसूस होने लगा था।
लड़की उछल कूद करने के बाद अपने माथे के पसीने को पोंछ ही रही थी कि उसका फोन बजा। जेब से फोन बिना निकाले ही उसने ईयर फोन के स्पीकर को मुंह के करीब लाकर जवाब में कहा-
ओह माइ गॉड।
इट्स रिएलि सेवेन थर्टी?
सोर्री मम्मा।
एक्चुअल्ली आई टुक वन राउंड एक्सट्रा टूड़े। जस्ट कमिंग बैक।
बा बाय।
फोन काटकर लड़की ने ईयर फोन को कान से निकाला और मोबाइल जेब से निकालकर, ईयर फोन के तारों को उसके चारों तरफ लपेटकर वापस जेब में रख लिया। यह उसके पार्क से जाने का पल था।
जैसे ही लड़की पार्क के मुख्य दरवाजे की तरफ चलने लगी पीछे से एक आवाज़ आई –बेटी ए बबली
लड़की ने पीछे मुड़कर देखा तो शर्मा जी अपने बाएँ हाथ में बैसाखी लिए पार्क की उस हरी बेंच से उठकर चलने की नाकाम कोशिश करते हुये प्रतीत हो रहे थे। उनकी सम्पूर्ण उपस्थिति लाचार सी दिख रही थी। लड़की ने उन्हें हिंदीभाषी भाँपते हुये कहा-
कहिए अंकल, मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूँ?
शर्मा जी की डूबती नैया को जैसे सहारा मिलालहराती सी आवाज़ में बोले-
बेटा बबली’ लगता है ब्लड प्रैशर लो हो रहा है। चक्कर से आ रहे हैं मुझे ज़रा सहारा देकर मेन गेट तक छोड़ दोगी? वहाँ से मैं रिक्शा पकड़ लूँगा।
शर्मा जी की गुहार काम कर गयी थी। लड़की नेशारीरिक रूप से अस्वस्थ, बहुत सारे लोगों को पार्क में आते जाते देखा थाइसलिए, उसे शर्मा जी की पीड़ा पर यकीन हो गया। स्वभाव से वह मदद के लिए हमेशा तत्पर रहती थी, विशेषकर बुज़ुर्गों के लिए। उसने आगे बढ़कर शर्मा जी के दायें हाथ की कलाई थाम ली और कहा-
आइये, धीरे धीरे गेट की तरफ चलते हैं।‘ और वे दोनों धीरे धीरे जॉगिंग ट्रेक से होते हुये पार्क के मुख्य द्वार की तरफ बढ्ने लगे।
नगरीय विकास प्राधिकरण अपने नगर नियोजन में पार्क का प्रावधान तो रखते हैं किन्तु समुचित रखरखाव की व्यवस्था न कर पाने से आमजन के लिए काफी अव्यवस्थाओं और असुविधाओं को जन्म देते हैं। शहर की मुख्य सड़कों की भांति इस पार्क के जॉगिंग ट्रेक में भी पिछली बारिश के बाद काफी सारे बड़े बड़े गड्ढे हो गए थे। जिस पर प्रशासन की नज़र नहीं पड़ी थी।
यह प्रशासन की ही अनदेखी का नतीजा था कि शर्मा जी की बैसाखी, जिसे उन्होने अपने बाएँ हाथ में ढीला सा पकड़ रखा था वह ऐसे ही किसी एक गड्ढे में अटक गयी और वे गिरते गिरते बचे। भला हो शर्मा जी के दायें हाथ की कलाई पर उस लड़की के बाएँ हाथ की मजबूत पकड़ का वरना शायद शर्मा जी ज़मीन पर चित्त पड़े होते।
पार्क के मुख्य द्वार की राह में घटी इस दुर्घटना के लघु प्रारूप ने शर्मा जी के दायें हाथ की कलाई पर पर लड़की के बाएँ हाथ की हथेली से बनी पकड़ को और मजबूत कर दिया था। जिससे शर्मा जी का हौसला बढ़ा। वे इस वक्त ठीक वैसी ही ऊर्जा और ताकत महसूस कर रहे थे। जैसा कि पावरप्राश के विज्ञापन में पावरप्राश का सेवन करने के बाद मिली ऊर्जा और ताकत के बारे में उसमें भाग लेने वाले (राष्ट्रीय नाट्य/अभिनय संस्थानों से अभिनय में विशेषज्ञता हासिल कर चुके) स्त्री पुरुष बता रहे होते हैं।
पार्क का मुख्य द्वार अभी भी दूर था। शर्मा जी ने लड़की को गिरने से बचाने के लिए धन्यवाद कहने के बाद जब मुख्य द्वार की ओर जाने वाले रास्ते की तरफ देखा, तो उन्हें आगे एक गड्ढा दिखाई दिया जो अपेक्षाकृत उस गड्ढे से ज़्यादा बड़ा था। जिसमें वे गिरते गिरते बचे थे।
उस बड़े गड्ढे के पास पहुँचते ही इस दफा शर्मा जी ने जान बूझ कर अपनी बैसाखी को गड्ढे में डाला और गिरने का अभिनय करते हुये पहले लड़की के हाथ की पकड़ को छुड़ाया और झूठ मूट अपने आप को संभालते संभालते अपने दोनों हाथों से लड़की को गुलाबी ट्रेक सूट में टी शर्ट और ट्रेक पेंट के बीच रिक्त रह गए स्थान यानि कि उसकी कमर से कस कर पकड़ लिया।
पकड़ की जगह शायद जकड़ शब्द ज़्यादा उपयुक्त हो इस क्रिया के लिए।
इस जकड़ के अर्थ को लड़की ने तुरंत समझ लिया और प्रतिक्रिया में ज़ोर से शर्मा जी के दोनों हाथों को लगभग धक्का देते हुये हटाया, आधा कदम पीछे हटी, और अपने दायें हाथ के उल्टे हिस्से का एक वजनदार तमाचा शर्मा जी के गाल पर जड़ दिया।
शर्मा जी झन्ना गए। उनका मोटे शीशे वाला चश्मा नीचे गिर गया था। उन्हें अपनी बैसाखी का इतिहास याद आ गया।
लड़की बहुत गुस्से में थी। पार्क में आते जाते लोगों को सुनाई न दे और शर्मा जी की बुज़ुर्गीयत की इज्ज़त बनी रहे इसलिए दाँत और अपने हाथों की मुट्ठियाँ भींचकर तीखे शब्दों में बोली-
यू ओल्डमेन
बुड्ढे’ ‘बास्टर्ड
अगर मेरी बाप की उम्र का न होता तो मालूम है क्या हश्र करती?
जानता है, मैं कौन हूँ ? विशाखा गुप्ता, असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर की बेटी और शहर की रेपुटेड मॉडल।
इतना कहकर वह लड़की अपनी काली लंबी कार की तरफ बढ़ गयीतेज़ी से कार का दरवाजा खोला, झटके से बंद किया, गाड़ी स्टार्ट की और वायुयान की गति से वहाँ से चली गयी।
शर्मा जी का अस्तित्व हिल गया था।
बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभालालड़की के वहाँ से जाने के लगभग दस मिनट बाद ज़मीन पर पड़े हुये चश्मे पर उनकी नज़र पड़ीउठाकर उसे नियत स्थान पर लगाया, अपने बाएँ हाथ से बैसाखी का सहारा लेकर खड़े हुये। आस पास देखा वहाँ कोई रिक्शे वाला नहीं था अतः पैदल ही घर की तरफ चल पड़े।
पार्क से घर के पैदल रास्ते में शर्मा जी ने पूरे रास्ते आस पास सर उठाकर कुछ भी नहीं देखा। मानो अभी चंद मिनटों पहले जो कुछ उनके साथ घटा वह अखबार में मुख पृष्ठ की मुख्य खबर बनकर छप गयी हो, जिसे सब लोगों ने पढ़ लिया हो और वे सब उन्हीं की तरफ देख कर थू थू कर रहे हैं।
किसी तरह घर पहुंचे तो देखा घर का दरवाजा बंद था। जब जब शर्मा जी मॉर्निंग वॉक के लिए निकलते थे तो उनके जाने के बादपीछे सेयह दरवाजा सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक रूप से बंद कर लिया जाता था।
घर के बंद दरवाजे के भीतर से मंदिर की घंटी बजने की आवाज़ आ रही थी। यह पुष्पा यानि कि उनकी पत्नी का ईश्वर की आराधना का समय था और इस समय वे घर के भीतर एक कोने में रखे छोटे से लकड़ी के मंदिर के पास आँखें बंद कर आसान पर बैठी मंत्र जाप कर रही होती थी।
शर्मा जी ने दो दफा दरवाजा खटखटाया लेकिन शायद अंदर किसी को खटखटाहट सुनाई नहीं दी थी। इस पर शर्मा जी ने एक बार फिर से दरवाजे को पाँच छह बार ज़ोर ज़ोर से खटखटाया।
कुछ देर इंतज़ार के बाद भीतर से जब दरवाजे की चटकनी खोलने की आवाज़ आई तो शर्मा जी अपनी नज़रों को झुकाये दरवाजे पर ही रखे जूट के पायदान से कीचड़ में लिथड़ गई अपनी चप्पलों को साफ करने में लग गए। पार्क वाली लड़की के तमाचे का झन्नाटा वे अभी भी महसूस कर रहे थे।
दरवाजा खुला तो शर्मा जी ने देखा कि उसी पायदान के सामने वाले छोर पर दो पैर हैंजिन्होने नए ब्रांडेड केनवास शूज पहने हुये हैं। ये जूते और आधे मोज़े बिलकुल वैसे ही हैं जैसे पार्क वाली लड़की ने पहन रखे थे। वे सामने खड़ी उस लड़की को नीचे से ऊपर तक देखने से रोक नहीं पाये। वही उम्र, बिलकुल वैसा ही सफ़ेद धारियों वाला गुलाबी रंग का ट्रेक सूट। वैसा ही बदन। कानों में बिलकुल उसी तरह लगाया हुआ सफ़ेद ईयर फोन।
लड़की ने शर्मा जी को देखकर कानों के भीतर चल रहे संगीत से ज़्यादा आवाज़ बढ़ाकर कहा 
क्या आप भी? रिमोट कहाँ रखकर चले जाते हो? सोचा था आज से टी वी पर फ़िटनेस मंत्रा देखूँगी हर सुबह। और उसके साथ साथ योगा करूंगी।
रिमोट शब्द सुनते ही शर्मा जी को वह सब फिर से याद आने लगाजिसे पार्क से घर तक के सफर में भूलने की कोशिश करते आ रहे थे। उन्हें यह भी याद आया कि टी वी का रिमोट तो वे सेंट्रल पार्क में ही भूल आए हैं। बौखलाहट में आकर कहने लगे –
....... वो वो वो ...... पार्क में.......
कान में ईयर फोन लगे होने के कारणलड़की को शर्मा जी की बात कुछ भी नहीं सुनाई पड़ रही थी। वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाये थे,कि उस लड़की ने शर्मा जी को परेशान सा देखकर ऊंचे स्वर में कहा-
अब कोई बात नहीं। कल से कर लूँगी योगा, ‘फ़िटनेस मंत्रा के साथ। आप मॉर्निंग वॉक पर जाने से पहले बता तो दिया कीजिये कि रिमोट घर में कहाँ रखा है। ...... बाय। अभी मैं जा रही हूँ सेंट्रल पार्क। ताकि तेज़ धूप निकलने से पहले घर वापस आ सकूँ।
इतना कहकर लड़की दौड़ने को थी कि उसकी जूतों के लेस खुल गए और वो झुककर हड़बड़ी में उन्हें बांधने लगी।
शर्मा जी चुपचाप यह सब देख रहे थे। और इस बार उन्होने गौर किया कि ब्रांडेड केनवास शूज, आधे सफ़ेद मोज़ों और ईयर फोन के अलावा सफ़ेद धारियों वाले गुलाबी ट्रेक सूट पहने इस लड़की की टी शर्ट और ट्रेक पेंट के बीच का रिक्त स्थान भी ठीक वैसा ही है जैसा उस पार्क वाली लड़की का।
लड़की जूतों की लेस बांध कर जल्दबाज़ी में भागती हुयी गली की तरफ चली गयी।
यह उनकी मँझली बेटी थी। जिसे वे प्यार से बबली’ कहा करते थे।  
शर्मा जी गली से होकर पार्क की तरफ मॉर्निंग वॉक के लिए भागती हुयी अपनी बेटी को दूर तक देखते रहे। वे घर के दरवाजे को पकड़ कर जूट के पायदान पर अपनी कीचड़ से सनी चप्पल पहन कर खड़े थे। और अब घर के अंदर मंदिर की घंटी के स्वर और तेज़ होने लगे थे। 
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(संपर्क : abhishek.goswami@azimpremjifoundation.org) 

Thursday, July 25, 2013

वजह

आज एक लघुकथा... 

वजह : मेल जॉर्ज 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

तुम सोच रहे होगे कि ऐसा उस लड़की की वजह से है जिसे तुमने डेव की पार्टी में चूमा था. यह सही नहीं है. ऐसा उस किताब की वजह से है जिसे मैंने तुम्हें पढ़ने के लिए दिया था; जिसके बारे में मैंने तुम्हें बताया था कि उसने मेरी जिंदगी बदल दी थी; वही जिसके बारे में मैंने कहा था कि उसकी मदद से तुम मुझे सही मायनों में समझ सकोगे. चार महीने तक तुमने उसे छुआ भी नहीं और आखिरकार थोड़ा तुड़ी-मुड़ी हालत में मुझे वापस कर दिया. मैंने तुमसे पूछा भी कि तुम्हें कैसी लगी और तुमने कह दिया, "ठीक थी." मुझे पता है कि ऐसा नहीं होना चाहिए, मगर ऐसा है उसी वजह से. 
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Tuesday, July 23, 2013

विमलेश त्रिपाठी की कहानी : हत्या

विमलेश त्रिपाठी की यह कहानी 'नया ज्ञानोदय' के जुलाई 2013 अंक में प्रकाशित हुई है. भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन पुरस्कार समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित विमलेश का एक कविता संग्रह (हम बचे रहेंगे) तथा एक कहानी संग्रह (अधूरे अंत की शुरूआत) प्रकाशित है. एक नया कविता संग्रह (एक देश और मरे हुए लोग) बोधि प्रकाशन से शीघ्र प्रकाश्य. 
 











हत्या  :  विमलेश त्रिपाठी 
ड़की ने बत्तियां बुझा दी थी और बहुत जोर से लड़के को अपनी बाहों में भींच लिया था। उसकी सांसें बहुत तेज चल रही थीं – गालों पर पसीने मे मोती चुहचुहा रहे थे। लड़का एकदम पत्थर की तरह चुपचाप खड़ा था। वे दोनों बेहद डरे हुए थे। बाहर अब भी कई लोगों के बोलने की आवाजें आ रही थीं –
वे अभी गए नहीं थे।
लड़की लगता था कि अभी-अभी जोर-जोर से चीखने लगेगी लेकिन लड़का उसे सम्हाले हुए था – उसके होठों पर अपनी मजबूत हथेलिया रखे हुए।
वे पता नहीं कितनी देर से एक कोने में ऐसे ही दुबके हुए थे।

लड़की कुछ संयत दिखी तो लड़के ने अपना हाथ जेब की ओर लेजाकर नोकिया का एक मोबाईल निकाला और उसका एक बटन टीप दिया – मोबाइल जल उठा। उसने देखा कि रात के बारह बजने वाले थे। दूसरा कोई दिन होता तो वे दोनों एक दूसरे की बाहों में बेसुध सो रहे होते – थके-बदहवास क्षणों के बाद की सुखद और निश्चिंत नींद। लेकिन बारह बचे रात को भय से कांपते हुए वे एक दूसरे से लिपटे अपनी-अपनी जान के लिए लड़ रहे थे। शायद उनके मन में फिलवक्त कोई ईस्वर भी आकर जरूर बैठ गया था – जिससे वे लागातार खुद को बचा लेने की प्रार्थना कर रहे थे। ईश्वर बचा लेगा – ऐसे किसी निश्चित भरोसे के न होने के बावजूद उनके बीच एक ईश्वर था – लड़के के पास कम – लड़की के पास ज्यादा।
लगता है वे लोग चले गए – लड़की धीरे से फुसफुसाई।

लड़के ने लड़की की ओर एक गहरी आंख से देखा, फिर अपना पूरा ध्यान बाहर की ओर लगा दिया। चहलकदमी कम हो गई थी – कुछ देर पहले ही गाड़ी के स्टार्ट होने की आवाज आई थी। बाहर जो शोर था वह ऐसे लोगों का शोर था जो देर रात तक जगकर अपने काम समेटते रहते हैं या कोई पागल जो लागातार एक दीवार को संबोधित कर भाषण देता रहता है, या कभी-कभी मौज में आकर फिल्म का कोई पुराना गीत बेतरतीवी से गाना शुरू कर देता है।
लड़के ने इस बार अपनी बाहों की जकड़न को कम किया – वे अब एक दूसरे की कसी हुई बाहों से धीरे-धीरे आजाद हो रहे थे – लेकिन डर अपनी जगह पर टिका हुआ था।
लड़का धीरे-धीरे दरवाजे की ओर बढ़ा। शायद वह दरवाजा खोलकर बाहर निकलना चाहता था ताकि वह मुयायना कर सके कि वे सचमुच जा चुके हैं या नहीं।
प्लीज दरवाजा बंद ही रहने दो, लड़की ने उसका हाथ पकड़ लिया।
लड़का ठिठक गया।

उसने बहुत ध्यान से दरवाजे की कुंडी को देखा – वह बंद थी। वह वापिस आकर फर्श पर गुड़ीमुड़ी बैठ गया।

वे तीन दिन पहले ही यहां आए थे। बहुत देर तक वे दोनों इस छोटे से शहर में एक घर की तलाश कर रहे थे। किसी के पूछने पर वे खुद को पति-पत्नी बताते थे। लेकिन सलवार-कमीज पहनी हुई लड़की कहीं से भी लड़के की पत्नी नहीं लगती थी। लड़की की उम्र सोलह के आस-पास की लगती थी। लड़का थोड़ा बड़ा लगता था – उसकी मूछें गहरी हो आई थीं।  वे घर की तलाश में जहां भी जाते, लोग उन दोनों को बड़े ध्यान से देखते फिर, घर खाली नहीं है, कहकर दरवाजा बंद कर लेते थे। वे देर शाम तक घर की तलाश करते रहे थे – शाम होते न होते उनके चेहरे पर भय और बेचैनी की छाया स्पष्ट दिखने लगी थी।
लड़की चलते-चलते रोड के किनारे पेड़ के चारों ओर बने एक गोलाकार चबुतरे पर बैठ गई।
- अब मुझसे चला नहीं जा रहा। मेरे पैर दुखने लगे हैं।
- वो सामने कुछ घर हैं, वहां चलते हैं, शायद वहां कोई घर खाली हो।
- तुम जाओ। मैं नहीं चल सकती अब। मैं यहीं इंतजार करती हूं।

लड़का उसे वहीं बैठा छोड़कर सामने के मकानों की ओर बढ़ गया। सूरज डूब चुका था लेकिन अंधेरा नहीं हुआ था। लेकिन देखने से ऐसा लगता था कि बहुत जल्दी ही अंधेरा छा जाएगा। लड़की चुपचाप पेड़ के नीच बैठी हुई थी। उस रास्ते से गुजरने वाले लोग उस अकेली लड़की को बड़े ध्यान से देखते हुए गुजर जाते। एक दो लड़कों ने तो उसे ऐसे घूर-घूर कर देखा कि उसने डर के मारे आंखें नीची कर ली थीं। शाम गहराती जा रही थी लेकिन लड़का अब तक नहीं लौटा था। लड़की को लगा कि उसका गला सूख रहा है – उसे शायद प्यास लगी थी। उसने प्यास के बारे में सोचा लेकिन आस-पास कोई नल नहीं दिखा। वह उदास हो गई।

शायद उसे भूख भी लगी थी। उसने अपनी पोटली को टटोल कर देखा – उसमें अब भी भुजे हुए चूड़े रखे हुए थे। वह पोटली में हाथ ले जाकर एक मुट्ठी भर चूड़ा निकाल लेना चाहती थी। उसने अपना हाथ पोटली के अंदर किया भी लेकिन पता नहीं क्या सोचकर रूक गई। उस पोटली में कुछ गहने थे – एक सोने का हार, एक जोड़ी चांदी की पायल और एक जोड़ी सोने का झूमका। सौ-सौ के कुछ नोट भी उस पोटली के अंदर रखे हुए थे। लड़की ने पता नहीं कितने दिन से उसे जमा कर रखा था। वह घर से निकलते वक्त बस इतना सामान ही ले सकी थी। ज्यादा सामान लेकर निकलना मुश्किल था और इतनी जल्दी उनको सहेज पाना भी कठिन। जब वह घर से निकली थी तो यह पोटली ही उसके साथ थी। वह चाहती थी कि सारा समान किसी बैग में भर ले लेकिन घर से निकलने की घबराहट और बदहवासी में वह कोई बैग नहीं खोज पाई थी।

उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके जीवन में ऐसा भी होगा कि उसे घर से निकलकर इस कदर दर-दर भटकना पड़ेगा। वह एक आम लड़की की तरह बचपन से अपने घर बारात के आने और खुद को एक सजी हुई दुल्हन के रूप में घर से रोते हुए विदा होने के सपने देखती थी। उसका दुल्हा गोरा लंबा और बहुत सुंदर होगा। वह अपने ससुराल जाएगी और अपने दुल्हे के लिए खाना बनाकार उसे अपने हाथों से खिलाएगी। सास और ससुर की सेवा करेगी – लोग कहेंगे कि बहुत ही सलीकेदार और संस्कारी बहू है। इससे अधिक की सोच नहीं थी उसकी।

लेकिन कब वह इस लड़के की गिरफ्त में आ गई उसे पता ही नहीं चला। लड़के का घर उसके घर से थोड़ी ही दूरी पर था। वह आईएससी में सायंस लेकर पढ़ रहा था – उसके पिता लड़की के घर में काम करते थे। खेत जोतने से लेकर गाय-भैंसों को खिलाने का काम था उनका। लड़की सुंदर थी और चंचल भी। लेकिन उसका गणित कमजोर था। पिता बब्बन राय को अपनी पत्नी से पता चला कि लड़की का गणित कमजोर है – कोई ट्युशन पढ़ाने वाला मिल जाता तो लड़की माध्यमिक की परीक्षा में पास हो जाती। किसी ट्युशन पढ़ाने वाले की खोज का परिणाम यह लड़का था।

लड़का जब भी फुरसत होती आकर लड़की को पढ़ा जाता। वह हमेशा सिर झुकाकर बात करता। लड़की को आप कहकर संबोधित करता। पता नहीं क्यों लड़की को इस लड़के का यह भोलापान अच्छा लगता। उसका मन करता कई बार कि लड़के का बाल नोंच ले। उसके हाथ में चिकोटी काट ले। वह जानती थी कि यदि वह ऐसा करेगी तब भी लड़का कुछ नहीं करेगा- न किसी से कुछ कहेगा। वह एक बेचारगी से भरी आंख भर उस लड़की को देखेगा। पढ़ने के लिए एक घर था – मां कई बार शुरू में दोनों पर ध्यान रखतीं। लेकिन वह हमेशा लड़के की झुकी हुई नजर देखकर आश्वस्त हो जातीं। बाद के दिनों में उन्होंने ध्यान रखना भी छोड़ दिया और हमेशा के लिए आश्वस्त हो गईं।
वह कभी-कभी आकर लड़के से उसके घर का हाल-चाल पूछ लेती। लड़के के बैठने के लिए एक अलग से कुर्सी रखी जाती – उसे लड़की के साथ चौकी पर बैठने की इजाजत नहीं थी। यह लड़की को अच्छा नहीं लगता था। वह चाहती थी कि लड़का उसकी बराबरी में बैठे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता था।
तुम यहां चौकी पर बैठो, एक दिन लड़की ने कहा।
नहीं मैं यहीं ठीक हूं। - लड़के की आंख नीची थी।
बैठो न, लड़की ने लड़के के हाथ को पकड़कर कहा। लड़के ने झट अपना हाछ छुड़ा लेना चाहा, लेकिन लड़की ने हाथ जोर से पकड़ा हुआ था।
मेरा हाथ छोड़िए, कोई देखेगा तो क्या सोचेगा।
कितने डरपोक हो तुम।
मैं डरपोक नहीं। छोटी जात का हूं।
मैं किसी जाति को नहीं मानती।
आपके घर वाले तो मानते हैं न। कल आप भी मानने लगेंगी। छोडिए मुझे।

लड़का हाथ झटक कर बाहर निकल आया था।
लड़की चुपचाप वहीं खड़ी रह गई थी। लड़की को लगा कि उसका अपमान हुआ है। वह सुंदर थी। गांव के कई लड़के उसे देखकर सिर्फ देखते रह जाते थे। स्कूल से आते-जाते लोगों की नजरों को देखकर उसे भय के साथ अपने सुंदर होने का गरूर भी होता था। लेकिन यह लड़का। क्या समझता है आपने आप को। वह देर तक वहीं खड़ी बहुत कुछ सोचती रही थी। उस दिन रात में भी उसको बहुत देर से नींद आई। उसके मन में पता नहीं कितने तरह के सावलों के साथ किस-किस तरह की भावनाएं जन्म लेती और मर जाती रही थीं। उसे लग रहा था कि वह लड़का फिर कभी नहीं आएगा उसे पढ़ाने।  वह अगर न आया तो ?  हुह, न आए। उसे क्या फर्क पड़ता है। वह नहीं तो कोई और पढ़ाएगा। लेकिन इस लड़के में कुछ तो ऐसा है कि वह बरबस उसकी ओर खींची चली जा रही है। नहीं, नहीं उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए। लड़की को नींद में कई तरह के सपने आते रहे।
लड़का दूसरे दिन न आकर तीसरे दिन आया। इस बीच लड़की उसके आने की खूब प्रतीक्षा कर चुकी थी। जब वह आया तो उसे पता नहीं किस तरह का संतोष मिला। लड़की आज दुपट्टा लेकर नहीं आई थी – उसने कई बार झूककर देख लिया था आइने में कि उसकी दो बहुत पुष्ट और गोल छातियां झूकने पर समीज के भीतर से हसरत भरी नजर से झांकती थी।
कल क्यों नहीं आए, लड़की ने चौकी पर बैठते हुए लगभग घूरते हुए लड़के से पूछा था।
कुछ काम था। अपनी पढ़ाई करनी थी।.
तुम मेरे बारे में नहीं सोचते न।
लड़के ने इस बार कुछ नहीं कहा। वह ध्यान से लड़की के सुंदर चेहरे को देखता रहा। उसका ध्यान लड़की के गर्दन के नीचे भी गया था लेकिन उसने झट आंखे नीची कर ली थी। लड़की इस बार उठी और लड़के के नजदीक चली गई और उसने अपनी छातियों के उभार को लड़के के चेहरे से लगभग सटा दिया। लड़का कुछ घबराया-सा लगा – उसकी सांसे जोर-जोर से चलने लगी थी। दिल अजीब तरह से धड़कने लगा था। वह उठकर खड़ा हो गया।
मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती? – लड़की की आवाज रूआंसी हो आई थी।
ऐसी बात नहीं। - लड़के ने धीरे से कहा।
तुम डरते हो। - लड़की ने इल्जाम लगाया। लड़का यह बात बहुत बार सुन चुका था अपने लिए। इस बार वह तिलमिला गया।
मैं डरता नहीं।
तो क्यों नहीं कहते कि मैं तुम्हें अच्छी लगती हूं?
यह ठीक नहीं है। मैं नौकर का लड़का हूं। उपर से मेरी जात छोटी है। इस तरह के रिश्ते का कोई भविष्य नहीं।
भविष्य पर क्यों जाते हो। अभी जो वर्तमान है उसके बारे में सोचो। मैं हूं, तुम हो। हम दोनों हैं।
आप जैसे सोचती हैं, वैसा नहीं होता कुछ। यह बचपना है।

लड़की को बुरा लग गया। वह मुंह फुलाकर अपनी जगह पर बैठ गई। लड़की को यह सब एक खेल की तरह लग रहा था।  लड़का एक गुड्डे की तरह लगता कई बार उसे। वह उसके साथ एक ऐसा खेल- खेल रही थी जो सचमुच के जैसा लगता था।

वह देर तक मुंह फुलाए इस आशा में बैठी रही कि लड़का उसे मनाने आएगा। लेकिन लड़के ने अपने लिए मुकर्रर कुर्सी पर बैठते हुए उससे एलजेब्रा का एक अध्याय निकालने के लिए कहा। लड़की का चेहरा और उतर आया। वह झमक कर उठी और अंदर चली गई। लड़का बहुत देर तक इंतजार में बैठा रहा।

लड़की जब आयी तो लड़का जा चुका था। लड़की ने मन ही मन ठान लिया कि इस लड़के को अपने खेल में शामिल करना ही है किसी भी तरह। वह दिन भर यह सोचने में व्यस्त रही। कुछ-कुछ उदास भी। पता नहीं क्यों उसका मन किसी भी चीज में लगना बंद हो गया। वह हर आहट पर सोचती कि लड़का आ गया है – उसने इस तरह आजतक किसी का इंतजार नहीं किया था।

पता नहीं क्यों कई बार उसके छातियों के बीच कुछ गुदगुदी जैसी होती थी और उसके अंदर की कोई एक जगह भीग-भीग जाती थी। वह बहुत कुछ समझती थी- बहुत कुछ नहीं भी समझती थी। वह उस लड़के का इंतजार करने लगी थी- उस लड़के पर उसे एक साथ क्रोध और प्यार दोनों आने लगा था। वह ये सारी बातें लड़के को बताना चाहती थी – लेकिन लड़का हमेशा चुप रहता था।

उसदिन गांव में कोई पूजा थी। मां पूजा में गई थी। घर में वह अकेली ही थी, जब वह लड़का आया था। जब लड़के को पता चला कि घर में कोई नहीं है तो वह लौटने लगा।
लेकिन लड़की ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपने पास बैठा लिया। लड़का सिर झुकाकर कुर्सी पर बैठ गया।
वहां नहीं यहां बैठो – लड़की ने चौकी की ओर इशारा किया।
लड़का वहीं बैठा रहा।
मैंने कहा न यहां आकर बैठो – इस बार लड़की की आवाज तेज थी। यह बात पूरे अधिकार के साथ कही गई थी जिसमें आदेश जैसा भी कुछ शामिल था।
लड़का इस बार चुपचाप कुछ झिझकते हुए ही चौकी पर बैठ गया। लड़की के चेहरे पर तेजी के साथ कई भाव आते और लुप्त होते जा रहे थे।
लड़की ने अपने हाथ लड़के के हाथ में रख दिया और उसके कानों के समीप जाकर धीरे से फुसफुसा दिया – बुद्धु मैं तुम्हें प्यार करती हूं।

लड़के के कान में आवाज एक तूफान की तरह गई। वह अंदर तक सिहर गया। उसने किसी अनजान भावना के वशीभूत होकर लड़की के हाथ को जो जोर से दबा दिया। लड़की  को दर्द हुआ। उसने झट अपना हाथ छुड़ा लिया और और अपने सुंदर और लाल हो आए चेहरे को लड़के के समीप ले गई। ऐसा लगा कि दो चेहरे चुम्बक में बदल गए हैं और एक दूसरे से जुड़ जाने के लिए बेताब हो रहे हैं। कुछ ही देर बाद दो होंठ एक दूसरे से जुड़े किसी गोपन रहस्य की तलाश में जुट गए थे। सांसें तेज चल रही थीं। पूरी देह पर जैसे किसी ने गुदगुदी लगाने वाली चीज मल दी हो। लड़के के हाथ पहली बार लड़की की छातियों पर थे – और लड़की तड़प उठी थी। सबकुछ नया था। नया और सम्मोहक। एक ऐसी दुनिया निर्मित हो गई थी दो जिस्मों के चारों –ओर जिसकी तलाश लड़की पता नहीं कब से कर रही थी।

लड़के के हाथ तभी लड़की की छातियों से छूटकर जंघे के बीच की ओर जाने लगे। लड़की को डर लगा – एक ऐसा डर जिसमें वह रहना भी चाहती थी और जिससे भागना भी चाहती थी। उसने लड़के का हाथ रोक दिया और झट अपने पूरे जिस्म को उसकी गिरफ्त से खींचकर आजाद कर लिया – क्या हुआ की नजर से लड़का उसके हांफते चेहरे को देखता रहा।
मां आ जाएगी – लड़की ने कहा। और खुद की बिखरी हुई देह और बेतरतीब कपड़े को समेटने लगी।

बाद इसके लड़की चुपचाप कुछ देर बैठी किताबों के पन्ने पलटती रही। लड़के के अंदर एक तूफान मचा हुआ था। वह खुद को रोके हुए चुपचाप कुर्सी पर आकर बैठ गया था। उसी समय लड़की की मां घर में घुसी थी। उसने ध्यान से दोनों को देखा और निश्चिंत होकर घर के अंदर चली गई। लड़का फिर बहुत देर तक नहीं बैठ पाया। वह लड़की को वहीं बैठा छोड़कर दरवाजे के बाहर आ गया।

उसके पूरे शरीर में एक नशे जैसी कोई चीज टहल रही थी। उसने शायद उसदिन मन ही मन यह निर्णय लिया था कि अब वह दुबारा इस लड़की को पढ़ाने नहीं आएगा। उसके मन में कई बार यह आया कि उसके पिता इस घर में नौकर हैं, और वह जो कुछ कर रहा है, वह उचित नहीं। लेकिन वह तो कुछ नहीं कर रहा। उसने आज तक लड़की को आंख उठाकर भी नहीं देखा – यह लड़की बच्ची है, बचपना है इसके अंदर। वह चाहता था कि इस लड़की को अपनी बात समझाए भी लेकिन उसे बार-बार लगता था कि उसके समझाने से लड़की रूठ जाएगी, या गुस्सा हो जाएगी। वह एक ऐसी राह पर खड़ा था जहां से दो रास्ते निकलते थे – वह थोड़ी दूर एक राह पर चलने के बाद फिर दूसरी राह पर लौट आता था। फिर कुछ देर चौराहे पर खड़ा होकर सोचता था कि क्या करे।

उस समय उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। उसने सोचा कि यह बात वह अपने अकेले दोस्त हीरालाल को बाताए – लेकिन पता नहीं किस झिझक और शर्म से वह रूक जाता था। उसने देखा कि उसका मन एक अजीब-सी उदासी से घिर आया है, लेकिन वह उदासी उसे अच्छी लग रही है। वह कई बार चलते-चलते रूक जाता – रह-रह कर उसका दिल अचानक धड़क उठता उसे उस लड़की का सुंदर चेहरा याद आ जाता। उसे तब लगता कि कोई बहुत जोर से उसे उस लड़की की ओर खींचे लिए जाना चाहता है – वह विरोध करता है – लेकिन उसका वह विरोह असरहीन है। एकदम कमजोर विरोध जिसे वह कर के भी खुश नहीं हो पाता – एक अजीब तरह की उलझन तब उसके माथे पर आकर बैठ जाती।

वह उस दिन कांपते दिल को लिए घर से निकला था। वह पता नहीं कितनी देर से बैठा सोच रहा था कि उस लड़की पढ़ाने जाए या नहीं। लेकिन वह पता नहीं यही सोचते हुए कब घर से बाहर निकल आया – उसे बिल्कुल पता नहीं चला। वह सोच रहा था कि हीरालाल के पास चला जाए लेकिन जब उसने राय साहब का मकान देखा तो लगा कि वह लड़की उसे चीख-चीख कर बुला रही है – उसका दिल अनायास ही जोर-जोर से धड़कना शुरू हुआ और उसके शरीर के नीचले हिस्से में एक अजीब-सी हरक्कत होनी शुरू हुई।
उससे रहा नहीं गया और वह राय साहब की मकान की ओर बढ़ गया।

उसे लगा कि लड़की उसी की राह देख रही थी। दरवाजे पर खड़ी। उस दिन उसने लाल रंग का सलवार समीज पहना हुआ था। आंख में काजल लगाए वह बहुत खुबसूरत लग रही थी। लड़के ने पहली बार उसे ध्यान से देखा – तीखे नयन-नक्श वाली यह लड़की सचमुच किताब में पढ़ी हुई राजकुमारी की तरह लग रही थी। लड़के को पता नहीं क्यों उसे देखकर फिल्म की एक हिरोईन याद आई – उसे लगा कि इस लड़की का चेहरा तो बिल्कुल उस हिरोईन से मिलता है। उसे देखकर जब लड़की मुस्कुरायी तो उस मुस्कुराहट में एक झेंप के साथ शर्म की एक परत-सी थी और उसे देखकर लड़के को यकीन हो गया कि वह जो सोच रहा है वह गलत नहीं – इस तरह लड़की का हंसना भी फिल्म की उस हिरोईन की तरह ही था।
लड़की उसे देखकर घर के अंदर चली गई और किताबों का अपना बस्ता लाकर चौकी पर बैठ गई – वह लड़की के पढ़ने का कमरा था – मतलब उसके ट्युशन के लिए मुकर्रर। लड़का आकर कुर्सी पर चुपचाप बैठ गया था।

दोनों चुप थे। शायद दोनों के दिलों में एक तूफान मचा हुआ लगता था। घर के अंदर मां सब्जियां काट रही थी। पिता दूर किसी गांव में पंचायत फरियाने गए थे। भाई तो घर में रहता नहीं था – उसने कॉलेज में नाम लिखा लिया था लेकिन पढ़ने-लिखने से उसे कोई खास मतलब नहीं था – उसकी महत्वाकांक्षा थी कि वह भविष्य में चुनाव लड़ेगा और नेता बनेगा – इसलिए वह रात दिन पास के गांव के विधायक स्वामीनाथ सिंह की सेवा-टहल में लगा रहता था।
लड़की ने बहुत देर बाद गणित की अपनी किताब निकाली।

-यह सवाल पूछना था।
-इसे तो मैंने बताया था। आपने किया नहीं।
-कोशिश किया था लेकिन हुआ नहीं। जब भी सवाल करने बैठती हूं किसी का चेहरा आंखों में घूम जाता है-फिर सवालों की जगह वह चेहरा ही घूमता रहता है।
लड़की ने यह बात बहुत धीमें से कहा था – इतना धीमें कि उसे सिर्फ लड़का ही सुन सकता था।
      किसका चेहरा? – लड़के ने कांपते हुए यह सवाल पूछा था। उसे उत्तर मालूम था फिर भी पता नहीं क्यों यह पूछना उसे अच्छा लग रहा था।
      पता नहीं। - लड़की ने उसे ऐसे देखा मानों कह रही हो कि इतने बुद्धु तो तुम नहीं हो कि मेरी बात न समझ पाओ।
      पढ़ने में अपना ध्यान लगाइए। आपकी परीक्षा है एक महीने बाद। अगर फेल हो गईं तो आपके पिता हमें जान से मरवा देंगे।
      तुम मर जाओगे तो हम किस लिए जिएंगे – हम भी मर जाएंगे। - लड़की की आंख में एक तड़प थी जिसका सामना लड़का बहुत देर तक नहीं कर पाया और अपनी नजरें किताबों की ओर कर लिया।

कई दिनों तक ऐसा चलता रहा। वे दोनों इस तलाश और बहाने का इंतजार करते जब उनके हाथ एक दूसरे से छू जायं। या कुछ देर के लिए लड़का लड़की के सुंदर गालों को चुम ले और लड़की की सांसें तेज हो जायें। लोगों की नजर बचाकार वे एक दूसरे को छूने का खेल खेलते रहे थे। लेकिन तड़प थी कि और बढ़ती जा रही थी। लड़की को खेल अच्छा लग रहा था लेकिन लड़का इस खेल में शामिल होने और खुश होने के साथ ही भयभीत भी था।
लडके ने एक मोबाईल खरीद लिया था लेकिन लड़की के पास मोबाईल नहीं था। लड़का जब झेंपता या खुद को छुपाना चाहता तो मोबाईल के बटन टिपना शुरू कर देता था। जब वह भयभीत होता तब भी वह अपनी आंखों को मोबाईल के छोटे स्क्रीन पर गड़ा लेता था।

कई बार लड़की उसके हाथ से मोबाईल छीन लेती और उसके बटन टिपती रहती। लड़का कहता कि मोबाईल खराब हो जाएगा। लेकिन लड़की उसकी बात नहीं सुनती। एक बार लड़की ने पता नहीं कैसे एक गाना लगा दिया मोबाईल में, वालुम तेज था। लड़के ने झट मोबाईल लड़की के हाथ से लेकर गाना बंद किया – लेकिन आवाज मां के कानों तक पहुंच गई थी और वह कमरे में दाखिल हो चुकी थी। लड़की चौकी पर संयत से बैठ गई थी और लड़का किसी से बात करने के अभिनय में मशगूल हो गया था – मां ने सोचा कि कोई फोन आया होगा। उस दिन लड़का जब जाने लगा तो लड़की के पिता ने लड़के को बुलाकर कहा कि जब पढ़ाने आते हो तो मोबाईल घर पर छोड़कर आया करो।
लड़का सिर झुकाकर सिर्फ जी कह पाया था।

दूसरा दिन अजीब था। आसमान में काले-काले बादल थे। लेकिन बारिश के आने का अंदेशा कम था। कई दिनों से बादल आकाश में तैर रहे थे और आंख मिचौनी का खेल खेल रहे थे। लड़का जब उस दिन आया तो उसने एक बार आकाश की ओर देखा और सोचा कि उमस कुछ ज्यादा बढ़ गई है।
लेकिन राय साहब के घर पहुंचते-पहुंचते एक भयंकर आंधी उठी थी और तेज बारिश होने लगी थी – लड़की घर में ही थी। एकदम अकेली। लड़का जाकर चुपचाप कुर्सी पर बैठ गया था – लड़की उसका मोबाईल ढूंढ़ रही थी। लेकिन लड़के पास कोई मोबाईल नहीं था।  लड़की ने आज कुछ नहीं कहा। लड़का उसके पास जाकर चौकी पर बैठ गया। लड़की का दिल जोर-जोर से धड़कना शुरू हुआ। उस दिन बारिश होती रही लड़का और लड़की मिलकर देह की यात्रा का खेल खेलते रहे। शुरू में खेल कुछ अटपटा था – लड़की और लड़का दोनों झिझक रहे थे लेकिन दूसरे-तीसरे बार के खेल ने उन्हें अनुभवी बना दिया और वे बेतरह निःसंकोच होकर देर तक खेलते रहे।  जमीन तप्त थी और बारिश की बूंदे उसे शांत कर रही थी।
बारिश जब कम हुई तो लड़के को लगा कि कोई आ भी सकता है। उसने तेजी के साथ अपने कपड़े पहन लिए। लड़की अपने कपड़ों से खुद को ढके घर के अंदर चली गई।
लड़का कुछ देर वहीं खड़ा रहा फिर वह हल्की बारिश में भीगते हुए ही बाहर निकल आय़ा।

लेकिन उस खेल का जो परिणाम आया वह लड़का और लड़की दोनों के लिए अप्रत्याशित था।
लड़की को कुछ दिन बाद उल्टियां होनी शुरू हुई थीं। लड़की ने किसी तरह मां के सामने पेट में गैस होने और कब्जियत का बहाना बनाया लेकिन वह गांव की लड़की थी और समझ गई थी कि जरूर कोई भारी गलती हो गई है।

लड़का बहुत परेशान था। वह सोच रहा था कि गांव छोड़कर कहीं भाग जाए। अगर यह बात लड़की के घरवालों को पता चली तो पता नहीं क्या होगा। सिर्फ उसे ही नहीं उसके पूरे घर वालों को इसकी सजा भुगतनी होगी। ऐसा लग रहा था कि उसका माथा फट जाएगा। उसने इस बार सोचा कि उसे यह बात हीरा लाल को बताना चाहिए।
हीरा ने उसकी सारी बातें सुनी तो वह सोच में पड़ गया।
-और कोई उपाय नहीं है दोस्त।
-लेकिन ये लोग हमें छोड़ेंगे नहीं। हम कहां जाएंगे।
-कहीं भी जाओ – यहां मत रहो। अगर यहां रहोगे तो लड़की तो मरेगी ही – तुम भी नहीं बचोगे। आज नहीं तो कल ये लोग तुम्हें भी...। यह भी हो सकता है कि तुम अकेले निकल जाओ। लड़की के चक्कर में मत पड़ो। पहली गलती तो तुम कर चुके हो – अब दूसरी गलती न करो। अगर तुम अकेले जाओगे तो ये लोग मामले को छुपा ले जाएंगे।  और नहीं तो लड़की की शादी कर देंगे कहीं या फिर खलास करवा लेंगे।
-लड़की का क्या दोषयह तो धोखा होगा। उसे कैसे छोड़ सकते हैं।
-लड़की की क्या मर्जी है? वह क्या चाहती है?
- अगर उसके घर वालों को भनक लग गई तो वे उसे जिंदा गाड़ देंगे।
हीरा लाल अनुभवी था – कई बड़े लोगों के यहां उसका आना-जाना रहता था। चुनावों के समय उसकी व्यस्तता बढ़ जाती थी। लेकिन वह भी छोटी जात का ही था। उसे पता था कि राय साहब कि बहुत दूर तक पहुंच है और वे लड़के की करस्तानी के बदले उसका और उसके घर वालों का जीना दूभर कर देंगे।
      अगर यही चाहते हो तुम दोनों तो फिर आज रात ही निकल जाओ।
लड़का और लड़की दोनों घबराए हुए थे। लड़के ने किसी तरह लड़की के पास यह संदेश छोड़ा कि वे इस गांव से कहीं दूर चले जाएंगे। लड़की ने डर और बदहवासी में घर से निकलना ही ठीक समझा था।      
और उस रात हीरालाल ने उन्हें एक गाड़ी से वहां तक छोड़ दिया था जहां से कई शहरों के लिए बसें मिलती थी। हीरालाल रास्ते भर चौकन्ना था कि उसे कोई न देखे। इस कांड में अगर उसका नाम आ जाएगा तो उसकी शामत आ जाएगी।
हीरालाल लौट गया था।
और वे दोनों इस शहर तक चले आए थे। लड़की बैठी हुई सोच रही थी कि उससे बहुत बड़ी गलती हुई। प्रेम तक ठीक था लेकिन बदहवासी में उसने यह क्या कर लिया। वह बहुत देर तक उस पेड़ के नीचे लड़के के आने की राह देखती रही।

लड़का जब आया तो उसकी आंखों में चमक थी।
-चलो। घर मिल गया है। आज यहां ठहरते हैं। कल कुछ इंतजाम कर के पास के मंदिर में हम शादी कर लेंगे।
लड़की कुछ नहीं बोली। एक बार लड़के के पसीने-पसीने हो आए चेहरे को देखा और उठ कर खड़ी हो गई।
वे दोनों एक सड़क पार कर कुछ देर एक संकरी गली में चलते रहे। घर का मालिक अकेले ही रहता था। उसने उन दोनों को चाबी दे दिया और अपने काम में व्यस्त हो गया। वह हीरालाल के जान-पहचान का कोई शख्श था। लड़का जब घर खोजते हुए थक गया तो उसने हीरा लाल को फोन किया। हीरा लाल ने ही उसे इस व्यक्ति से बात करने को कहा था। हीरा लाल के कारण ही यह घर उन्हें मिल सका था।

लड़का सीढ़िया चढ़ते हुए उपर की ओर चल पड़ा और लड़की पीछे-पीछे।

वे घर के अंदर बंद हो गये थे। लड़की को भूख लगी थी – लेकिन वे इसके पहले हाथ मुंह धोकर फ्रेश हो लेना चाहते थे। लड़का कुछ देर बाद खाने के लिए कुछ ले आया था।

देर रात तक वे बिस्तर पर चुपचाप लेटे रहे थे। एक दूसरे से बहुत कम बोलते हुए। उनके अंदर इस तरह घर से भाग आने का एक अफसोस-सा कुछ था। वह अफसोस वे एक दूसरे की आंखों में देखते और चुप हो जाते। अफसोस के साथ एक डर भी चला आया था कि पता नहीं उनके यहां आने के बाद क्या हुआ होगा। अगर वे हीरालाल के यहां पहुंच गए मुझे खोजते हुए और दबाव में आकर अगर हीरालाल ने यहां का पता बता दिया तब क्या होगा। वे कहां जाएंगे – क्या करेंगे।

घर से भागने के पहले जो कुछ नहीं सोचा था उन दोनों ने वह सब यहां रात के अंधेरे में उनके दिमाग के अंदर अनवरत जारी था। लड़की कई बार जब सोचते-सोचते बेदम हो जाती तो अचानक बदहवासी में लड़के के सीने में अपना मुंह छुपा लेती। जैसे वहां वह पूरी तरह सुरक्षित हो और अब पूरी जिंगदी वहीं कट जाने वाली हो लेकिन लड़का यह नहीं कर पा रहा था।

वह मोबाईल के बटन को यूं ही टिपता जाता था निरूद्देश्य। दिमाग के अंदर एक हलचल थी – और वह हलचल उसके उंगलियों की तेजी में प्रदर्शित होती थी।


लगभग रात के ग्यारह बजे बाहर हलचल हुई थी। कोई जोर-जोर से दरवाजा पीट रहा था। लड़के की नींद जब खुली तो उसने देखा कि लड़की लगभग उसके उपर लदी हुई सो रही है – बेसुध। दरवाजे पर लागातार दस्तक हो रही थी। लड़का बुरी तरह डर गया। उसने लड़की को धीरे से अपने से अलग किया और ध्यान से सुनने लगा। बाहर बहुत तेज-तेज कोई दरवाजा पीट रहा था।
वह चुप था – डर के मारे उसके पैर कांप रहे थे। गला सूखता जा रहा था। वह दरवाजे की आहट को एक मरी हुई और नीरिह आंखों से देखता रहा था। थोड़ी देर बाद लड़की भी जग गई थी।

वे दोनों एक दूसरे से लिपट गए थे। एक अनजाना सा दृश्य बार-बार उनके जेहन में कौंधता था। दो लाशें गांव के पीपल के पेड़ के उपर लटकी हुई याद आ जाती थी। लड़का ब्राह्मण और लड़की राजपूत। उन्हें भागते हुए पकड़ लिया गया था और रस्सियों के सहारे निर्मम तरीके से पेड़ पर टांग दिया गया था। बाद में पुलिस आई थी एक-दो लोग गिरफ्तार भी हुए लेकिन एक-दो दिन के बाद वे छूट गए। पुलिस ने यह कहकर मामले को रखा-दफा कर दिया कि यह आत्म-हत्या का केस है।
      अब क्या होगा? – लड़की ने लड़के की ओर पराजित नजरों से देखा।
      क्यों किया तुमने येक्यों मेरे शरीर में यह एक जीव कहां से चला आया। अब क्या होगा। वे हमें भी मार डालेंगे।

लड़की जोर-जोर से रोने लगी थी। लड़का समझ नहीं पा रहा था कि उसे क्या कहकर समझाए। वह खुद डरा हुआ था। उसे उस समय लड़की के रोने पर जबरदस्त गुस्सा आ रहा था। उसे लग रहा था कि लड़की ही इन सभी चीजों के लिए जिम्मेवार है। उसने ही यह सब शुरू किया। खेल-खेल में शुरू हुई यह बात यहां तक पहुंचेगी. उन्हें इल्म ही नहीं था।
      अब चुप रहो। बाहर शान्ति है। - लड़के ने पुरूषों की-सी आवाज में कहा।
लड़की उसे अजीब नजर से देखती रह गई।

वे दोनों अब भी जगे हुए थे। उनके अंदर भय और पश्चाताप की एक धीमी और तेज आंधी थी। ठीक उसी समय मोबाईल का रिंगटोन बजा था – लड़के ने झट फोन उठा लिया जैसे रिंगटोन को और बजने का मौका नहीं देना चाहता हो। उसके देर तक बजने से उनके वहां होने का पता चलता था।

फोन पर हीरालाल की घबरायी हुई आवाज थी – सावधान हो जाओ। हो सके तो कहीं और भागो। उनके दबाव के सामने मुझे सबकुछ बताना पड़ा। वे कभी भी तुमलोगों के पास पहुंच सकते हैं।
लड़के के कान के पास मोबाईल चुंबक की तरह चिपका रह गया। लगा कि उसे काठ मार गया हो। लड़की उससे लागातार पूछे जा रही थी कि क्या हुआ और लड़का किसी पत्थर की मूरत में तब्दील हो गया था।

जब लड़का होश में आया तो वह एकदम बदला हुआ था। उसने लड़की को जोर से पकड़ लिया और उसे लगभग झकझोरता हुआ खूब जोर-जोर से रोने लगा। रोता हुआ लड़का बड़बड़ाता जा रहा था – उसकी उस बड़बड़ाहट की अस्पष्टता को सिर्फ लड़की समझ पा रही थी। बहुत देर तक वे दोनों एक दूसरे को पकड़कर रोते रहे थे। पता नहीं कितनी देर तक।

जब सुबह हुई तो कमरे में कोई हलचल नहीं थी। कमरा खुला पड़ा था – रोज सफाई करनेवाले  मेहतर ने अचानक जोर-जोर से चिल्लाना शुरू किया। लोग जमा होने लगे।

भीतर मुर्दगी –सी शान्ति थी। लड़का और लड़की कमरे के फर्श पर एक दूसरे को पकड़े हुए ऐसे लेटे हुए थे मानों गहन निद्रा में हों। खून की एक पतली धारा उनके बीच से निकलती हुई दरवाजे तक आकर रूक गई थी – और उसपर मक्खियां भिनभिना रही थीं।

जैसा कि अक्सर होता है - कुछ देर बाद पुलिस भी आई थी। थानेदार ने रूमाल पर नाक रखे गंभीरता से उन दोनों को देखा और आदेश दिया – दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दो। लगता है इन दोनों ने सुसाइड किया है। जुटी हुई भीड़ के बीच कुछ कानाफुसी शुरू हुई और देर बाद इसके में सब लोग इधर-उधर छिटक गए थे।

लगभग एक घंटे बाद ही उस जगह को देखने पर पता नहीं चलता था कि वहां दो जानों की, नहीं, तीन जानों की हत्या(?) हुई थी। 
                            :: :: :: 
 (संपर्क : bimleshm2001@yahoo.com, मोबाइल: 09748800649)  
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