Friday, July 27, 2012

एर्नेस्तो कार्देनाल की कविता

'सुभाषित' श्रृंखला से ही एक और कविता...   

 
एर्नेस्तो कार्देनाल की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

हर शाम अपनी माँ के साथ वह टहला करती लैंडस्ट्रासे भर में 
और बाज़ार के मोड़ पर, हर शाम, 
वहां हिटलर इंतज़ार करता होता, उसे गुजरते देखने के लिए. 
टैक्सियाँ और बसें भरी होतीं चुम्बनों से 
और भाड़े पर नाव ले रहे होते जोड़े डेन्यूब पर. 
मगर उसे नहीं आता था नाचना. उससे बात करने की कभी हिम्मत नहीं हुई उसकी. 
बाद में वह गुजरती अपनी माँ के बिना ही, किसी रंगरूट के साथ. 
और उसके भी बाद वह कभी गुजरी ही नहीं उधर से. 
यही वजह है कि गेस्टापो झेला हमने, आस्ट्रिया पर कब्जा, 
और विश्व युद्ध. 
                         :: :: :: 
डेन्यूब : डेन्यूब नदी 

Thursday, July 26, 2012

एवा लिप्सका : एक कविता पाठ में कुछ सवाल

पोलिश कवियत्री एवा लिप्सका की एक और कविता...   

 
एक कविता पाठ में कुछ सवाल : एवा लिप्सका 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

आपका पसंदीदा रंग कौन सा है? 
आपका सबसे अच्छा दिन? 
क्या कोई कविता आगे निकल गई आपकी कल्पना से? 
क्या आपको कोई उम्मीद है? 
आप डराती हैं हमें. 
आसमान काला क्यों है? 
समय को किसने मार गिराया? 
क्या वह एक खाली हाथ था, समुद्र भर में 
तैरता एक हैट? 
अंत्येष्टि की पुष्पमाला के साथ 
शादी का जोड़ा क्यों? 
जंगल की पगडंडियों की बजाय 
अस्पताल का बरामदा क्यों? 
भविष्य की बजाय भूत क्यों?
आप आस्तिक हैं? या नहीं हैं? 
आप डराती हैं हमें. 
हम भागते हैं आपके पास से. 

मैं रोकने की कोशिश करती हूँ उन्हें 
सीधे आग में जा भागने से. 
            :: :: :: 

एवा लिप्सका की एक और कविता यहाँ है. 

Wednesday, July 25, 2012

इज़त सरजलिक : इस्तांबुल में मेरा पड़ाव

इज़त सरजलिक की एक और कविता...   

 
इस्तांबुल में मेरा पड़ाव : इज़त सरजलिक 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

कई संस्करण हैं 
इस्तांबुल में मेरे पड़ाव के. 

एक के अनुसार,  
वह संदिग्ध राजनीतिक किस्म का पड़ाव था. 

एक अन्य के अनुसार, 
उसका ताल्लुक मेरे रूमानी उपन्यासों से था.  

तीसरे संस्करण में तो, 
नशीली दवाओं की फरोख्त तक का जिक्र है. 

निस्संदेह, किसी की रूचि इस तथ्य में नहीं 
कि मैं कभी इस्तांबुल नहीं गया. 
               :: :: :: 

Tuesday, July 24, 2012

इज़त सरजलिक : मेरे जख्मी होने के बाद

बोस्नियाई कवि इज़त सरजलिक की एक और कविता...   

 
मेरे जख्मी होने के बाद : इज़त सरजलिक 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

उस रात मैंने सपना देखा 
कि स्लोबोदान मारकोविक आए मेरे पास, 
मेरे जख्मों की खातिर माफी मांगने के वास्ते. 

किसी सर्ब की तरफ से अभी तक का 
इकलौता माफीनामा है वह. 

और वह आया एक सपने में, 
वह भी एक मृत कवि की तरफ से. 
               :: :: :: 

Monday, July 23, 2012

डोनाल्ड हाल : मछलियों के लिए लोकतंत्र

अमेरिकी कवि डोनाल्ड हाल (जन्म : २० सितम्बर१९२८)  की एक कविता...   

 
हम लोकतंत्र ले आए मछलियों के लिए : डोनाल्ड हाल 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

यह अस्वीकार्य है कि मछलियाँ शिकार करती रहें एक-दूसरे का. 
उनकी सुविधा और सुरक्षा के लिए हम मुक्त कराएंगे उन्हें मत्स्यपालन के तालाबों में, 
निरापद और टिकाऊ सीमाओं वाले तालाब जो बाहर रखेंगे परभक्षियों को. 
हमारी देखभाल उन्हें उपलब्ध कराएगी स्वतंत्रता, स्वास्थ्य, खुशहाली और भोजन. 
ठीक है कि सभी प्राणी चाहते हैं उपयोगी महसूस करना 
तैयार होने के बाद मछलियों को पता चल जाएगा उनका मकसद.  
                                   :: :: ::  

कृपया डोनाल्ड हाल की इस कविता और बर्तोल्त ब्रेख्त की एक कहानी से प्रेरित दो मिनट से कम अवधि का यह वीडियो भी देखें. 

Sunday, July 22, 2012

हाल सिरोविट्ज़ : पुत्र

हाल सिरोविट्ज़ की एक और कविता...   

  
पुत्र : हाल सिरोविट्ज़ 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

हम लोग यहूदी हैं, पिता जी ने कहा. 
इसलिए ईसा मसीह को नहीं मानते हम. 
यदि ईश्वर ने चाहा होता कि हम पूजा करें ईसा मसीह की 
तो उसने बंदोबस्त किया होता हमें 
किसी इतालवी परिवार में पैदा करवाने का. उनके खिलाफ 
नहीं हूँ मैं. शायद बहुत बढ़िया इंसान थे वे. 
उनकी कोशिशों का श्रेय तो तुम्हें देना ही पड़ेगा उन्हें.  
अब भी बहुत से लोग मानते हैं कि वे पुत्र हैं ईश्वर के. 
मुझे नहीं पता कि उनके मन में क्या था अपने असली पिता के खिलाफ. 
पर यदि तुमने कभी मेरे साथ किया ऐसा,  
और कहा कि तुम पुत्र हो किसी और के, अपमानित महसूस करूंगा मैं.  
                         :: :: :: 

Saturday, July 21, 2012

एर्नेस्तो कार्देनाल : तोते


एर्नेस्तो कार्देनाल की एक और कविता...   

 
तोते : एर्नेस्तो कार्देनाल 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मेरा दोस्त मिशेल कमान अधिकारी है सोमोतो में, 
          होंदुरास की सरहद के नजदीक, 
उसने मुझे तोतों से लदे ट्रक के पकड़े जाने के बारे में बताया 
जिसमें चोरी छिपे उन्हें ले जाया जा रहा था अमेरिका 
          उन्हें अंग्रेजी बोलना सिखाने के लिए. 
१८६ तोते थे उस पर, जिसमें से ४७ तोते पहले ही मर चुके थे अपने पिंजड़ों में. 
वह उन्हें वापस उस जगह ले गया जहां से उन्हें पकड़ा गया था, 
और जब ट्रक पहुँच रहा था पहाड़ों के पास मैदान कही जाने वाली एक जगह के करीब 
जहां के थे वे तोते 
          (उन मैदानों के पीछे विशालकाय दिखते थे पहाड़)  
खुशी से तोते फड़फड़ाने लगे अपने पंख 
          और चिपका लिया उन्होंने खुद को अपने पिंजड़े की दीवारों से. 
और जब खोले गए उनके पिंजड़े 
तीर की तरह उड़ गए वे सभी एक ही दिशा में अपने पहाड़ों की तरफ.  
ठीक यही किया क्रान्ति ने हमारे साथ, मुझे लगता है: 
इसने आजाद किया हमें पिंजड़ों से 
          जिनमें हमें ले जाया जा रहा था अंग्रेजी बोलने के लिए. 
और हमें अपनी मातृभूमि वापस ले आई यह जहां से उखाड़ा गया था हमें. 

तोते की तरह हरी वर्दी वाले कामरेडों ने 
                    तोतों को वापस दिलाए उनके हरे-भरे पहाड़. 
          मगर मर चुके थे ४७. 
                         :: :: :: 

Friday, July 20, 2012

एर्नेस्तो कार्देनाल की कविता

एर्नेस्तो कार्देनाल की 'सुभाषित' श्रृंखला से एक और कविता...   

 
एर्नेस्तो कार्देनाल की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

इलियाना: अन्द्रोमेदा की आकाशगंगा, 
सात लाख प्रकाश वर्ष की दूरी पर, 
किसी निरभ्र रात जिसे देखा जा सकता है नंगी आँखों  
करीब है तुम्हारी बनिस्बत. 
अन्द्रोमेदा से दूसरी एकाकी आँखें देख रही होंगी मुझे  
अपनी रात में. तुम नहीं दिखती मुझे. 
इलियाना: समय में है दूरी, और उड़ता जाता है समय. 
२० करोड़ मील प्रति घंटे की रफ़्तार से 
बढ़ता जा रहा है ब्रह्माण्ड शून्य की ओर. 
और तुम जैसे लाखों वर्ष दूर हो मुझसे. 
                    :: :: :: 

एर्नेस्तो कार्देनाल की कुछ और कविताएँ यहाँ पढ़िए

Thursday, July 19, 2012

ऊलाव हाउगे की कविता

उलाव हाउगे की एक और कविता...   

 
मैं बहा जा रहा हूँ : ऊलाव हाउगे 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मैं बहा जा रहा हूँ, हवा से 
हांका जाता, लहरों से हांका जाता. 
एक लठ्ठे पर सवार हो गया हूँ किसी तरह, 
और गर्वित हूँ कि नक्काशीदार है वह. 
               :: :: :: 

Wednesday, July 18, 2012

ऊलाव हाउगे : इन्द्रधनुष

ऊलाव हाउगे की एक और कविता...   

 
इन्द्रधनुष : ऊलाव हाउगे 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

पुल के ऊपर पुल --
तीन इन्द्रधनुष!
हम कहाँ जाने वाले हैं, 
क्या सोच सकती हो तुम? 

पहला तो बिलाशक 
ले जाता है जन्नत को, 
और दूसरा जाकर ख़त्म होता है 
पाले और बर्फ में. 

और तीसरा? यह 
इधर चला आया 
इस बगीचे में 
मेरे और तुम्हारे साथ! 
:: :: :: 

Tuesday, July 17, 2012

जैक एग्यूरो : प्याज

जैक एग्यूरो की एक और कविता...   

 
प्याज के लिए प्रार्थना : जैक एग्यूरो 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

प्रभु, 
धन्यवाद आपको प्याज के लिए. 
खुद के सिवाय किसी और चीज की नहीं बनी यह, 
बार-बार. 

इतनी खुद के जैसी होती है प्याज 
कि हर कोई चाहता है इसे 
अपनी दावतों में. 

गाजरें, गोभी, मिर्चियाँ, 
आमलेट, स्ट्यू, सूप, 
सभी कहते हैं, "हैलो प्याज 
कितना अच्छा कि तुम आई, 
खुशी हुई तुम्हें देखकर." 

और भगवन, 
इतनी अच्छी होती है प्याज 
कि जब काम करता हूँ इसके साथ, 
रोता हूँ मैं. 
            :: :: ::  

Monday, July 16, 2012

इज़त सरजलिक : उसकी सड़क

इज़त सरजलिक की एक और कविता...   

 
उसकी सड़क : इज़त सरजलिक 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

वह भी सपने सजाता था चौरस हुई घास के, 
स्त्रियों के खुले हुए ब्लाउजों के. 
नौजवान था वह. 
भरोसा नहीं था उसे अगले जन्म में 
अभी सिर्फ अठ्ठारह की उम्र थी उसकी. 

तुमने नहीं देखा था 
जब समय बदल रहा था उसके चेहरे को. 
तुम जानते हो सिर्फ उसकी शोहरत के बारे में.  

मगर मैं तबसे उसे जानता था 
जब पुराने इंजनों और पटरों से 
उसने बनाया था एक हवाईजहाज जो उड़ नहीं पाया कभी.  

जब उसने बताया था अपने पिता से 
कि उनकी लड़ाई में हारना ही होगा किसी न किसी को, 

जब दो गिरफ्तारियों के बीच उसने पूछा था अपनी माँ से 
माँ, क्या तुम प्यार करती हो मुझसे? 

और उनकी धुंधलाई आँखों के ऊपर से बहुत देर तक 
वह निहारता रहा था सड़क को, 
वही सड़क 
जो अब उसके नाम पर है. 
                                                                     (1963) 
                    :: :: :: 

Sunday, July 15, 2012

ऊलाव हाउगे : तुम सीख गए हो

ऊलाव हाउगे की एक और कविता...   

 
देखता हूँ कि तुम सीख गए हो : ऊलाव हाउगे 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मुझे पसंद है 
कि तुम 
इस्तेमाल करो 
कम शब्द, 
कम शब्द और 
छोटे वाक्य 
जो 
पन्ने से होकर 
बारिश की फुहार की तरह गिरें  
अपने बीच 
रोशनी और हवा लिए हुए. 
देखता हूँ कि तुम सीख गए हो  
जंगल में 
ढेर लगाना लकड़ी का, 
बेहतर है 
ऊंचा ढेर लगाना उसका 
तब सूख जाएगी वह; 
अगर लम्बाई में और नीचा लगा दोगे उसे 
तो सड़ जाएगी लकड़ी. 
          :: :: :: 

Saturday, July 14, 2012

इज़त सरजलिक : दूरी बनाकर रखने का सिद्धांत

बोस्नियाई कवि इज़त सरजलिक की एक और कविता...   

 
दूरी बनाकर रखने का सिद्धांत : इज़त सरजलिक 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

दूरी बनाकर रखने का सिद्धांत 
खोजा गया था पश्च-लेखों के लेखकों द्वारा, 
उन लोगों द्वारा जो कुछ भी नहीं लगाना चाहते दांव पर. 

मैं खुद उन लोगों में से हूँ 
जो मानते हैं कि 
सोमवार को आपको बात करनी होगी सोमवार की, 
क्योंकि मंगलवार तक, बहुत देर हो चुकी हो शायद. 

सच है, बहुत मुश्किल होता है 
बैठकर कविताएँ लिखना कोठरी में, 
जब मोर्टार फट रहे हों आपकी खोपड़ी के ऊपर. 

सिर्फ कविताएँ न लिखना ही मुश्किल होता है उससे ज्यादा.  
                        :: :: :: 

Friday, July 13, 2012

नजवान दरवेश : उड़ान

फिलिस्तीनी कवि नजवान दरवेश की कविता...   

 
उड़ान : नजवान दरवेश 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

तुम उड़ान भरते हो पृथ्वी से 
पर उतरना ही पड़ता है आखिर. 
तुम उतरोगे 
पैरों के या मुंह के बल, उतरना होगा तुम्हें 
विमान में विस्फोट होने पर भी, 
तुम्हारे पुर्जे, तुम्हारे ज़र्रे  
उतरेंगे ही यहाँ 
तुम जड़ दिए गए हो इसमें: 
यह पृथ्वी, तुम्हारा छोटा सा सलीब. 
            :: :: :: 

Thursday, July 12, 2012

जैक एग्यूरो की कविता

जैक एग्यूरो की एक और कविता...   

 
अपने साजिश रचने वाले आंसुओं के लिए सानेट : जैक एग्यूरो 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मेरे आंसू इतने शर्मीले क्यों हैं कि वे मेरी आँखों के पीछे छिप जाते हैं? 

मैं उनसे कहता हूँ कि दौड़ना और खेलना सेहतमंद होता है मगर वे 
डरते हैं कि यदि वे शुरू हो गए तो रुकेंगे नहीं और मैं उनकी  
झील में डूब जाऊंगा. मैं उनसे कहता हूँ, "परवाह किसे है? 
उसके साथ के बिना तो अब मैं बेकार ही हूँ." हर रात तुम्हारी तस्वीर 
निहारते हुए मैं उन्हें भड़काने की कोशिश करता हूँ और उसे वह सब 
बताने की कोशिश करता हूँ जो मैं महसूस करता हूँ -- कि मैं इसलिए शांत 
नजर आता हूँ क्योंकि मैं भीतर से खोखला हूँ. उनसे अपनी देह को दफनाने की 
गुजारिश करता हूँ क्योंकि  मेरी आत्मा बहुत पहले ही जुदा हो चुकी है. मैं कहता हूँ, 
"आंसुओं, कमरे को भर डालो ताकि मैं समंदर में दफ़न नाविक की तरह हो सकूं, 
अपने ही खारे पानी में डूबा हुआ," मगर वे आपस में और मजबूती से सिमट जाते हैं, 
और मैं उस ज़र्द पत्ती की तरह कांपता रह जाता हूँ जिसे गिरना नहीं है. 

मैं रोना और मर जाना चाहता हूँ क्योंकि मैं नहीं पा सका जिसे मैं प्यार करता हूँ, 
मगर मेरे आंसू और मौत मुझे डाल पर ही मुरझाने देने की साजिश रचते हैं.  
                                   :: :: :: 
Jack Agueros Poems in Hindi Translation 

Wednesday, July 11, 2012

हुदा अबलान की कविता

हुदा अबलान का जन्म १९७१ में यमन में हुआ. सना विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री. अब तक छः कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. यमनी राइटर्स यूनियन की महासचिव भी रह चुकी हैं.   

 
बुहारन : हुदा अबलान 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

उसके चले जाने के बाद 
उसका कुछ भी नहीं बचा मेरे पास
मेरे सिवाय 
:: :: :: 

ऊलाव हाउगे की कविता

ऊलाव हाउगे की एक और कविता...   

 
नदी का उफनना : ऊलाव हाउगे 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मछली उफ़ नहीं करती 
नदी के उफनने पर. 
पर बेचारा बूढ़ा ऊदबिलाव 
घबरा जाता है अपने घरों को लेकर.  
            :: :: :: 

Tuesday, July 10, 2012

ग्राउचो मार्क्स : उसने कहा था

ग्राउचो मार्क्स के नाम से जाने जाने वाले जूलियस हेनरी मार्क्स (२ अक्टूबर १८९० - १९ अगस्त १९७७) अमेरिकी हास्य कलाकार एवं अभिनेता थे. 'उसने कहा था' के क्रम में प्रस्तुत हैं आज उनके कुछ कोट्स...   

 
उसने कहा था : ग्राउचो मार्क्स 
(प्रस्तुति एवं अनुवाद : मनोज पटेल) 

हालांकि आमतौर पर लोग इस बात को जानते हैं, पर मुझे लगता है कि यह जताने का समय आ गया है कि मैं बहुत कम उम्र में पैदा हो गया था. 

मैंने तार भेजकर क्लब से कहा, "कृपया मेरा इस्तीफा मंजूर कर लें. मैं ऐसे किसी क्लब से नहीं जुड़ना चाहता जो मेरे जैसे शख्स को सदस्य के रूप में स्वीकार कर ले."  

अपने सबसे अच्छे दोस्त की नाकामयाबी पर कोई भी पूरी तौर पर दुखी नहीं होता. 

मेरे पास कोई तस्वीर नहीं है. मैं तुम्हें अपने पैरों के निशान देता हूँ, मगर वे ऊपर हैं, मेरे मोजों में. 

टेलीविजन को मैंने बहुत शिक्षाप्रद पाया. जब भी कोई उसे चालू करता है मैं दूसरे कमरे में जाकर कोई कायदे की किताब पढ़ता हूँ. 

न्याय के लिए सैन्य न्याय वही है जो संगीत के लिए सैन्य संगीत है. 

अपने नाक-नक्श उसने अपने पिता से पाए हैं. वे एक प्लास्टिक सर्जन हैं. 

ये मेरे सिद्धांत हैं, और यदि ये आपको पसंद नहीं... ठीक है, और भी हैं मेरे पास. 

तुम्हारी किताब उठाते ही, जब तक मैंने उसे रख नहीं दिया, हँसते-हँसते मेरे पेट में बल पड़ गए. किसी दिन मैं उसे पढ़ने का भी इरादा रखता हूँ. 

सुखी दाम्पत्य की चाह रखने वाले पति को अपना मुंह बंद रखना और चेकबुक खुली रखना सीख लेना चाहिए. 

मुझे अपना सिगार पसंद है, मगर कभी-कभी मैं उसे अपने मुंह में से निकाल भी दिया करता हूँ. 

अगर कोई काली बिल्ली तुम्हारा रास्ता काट जाए तो इसका मतलब है कि वह कहीं जा रही है. 

यह चाहे जो हो, मैं इसके खिलाफ हूँ. 

या तो यह आदमी मर चुका है या मेरी घड़ी बंद हो गई है. 

मैं हर तरह के पूर्वाग्रहों से मुक्त हूँ. मैं सबसे एक बराबर नफरत करता हूँ. 

विवाह एक अद्भुत संस्था है... मगर एक संस्था में रहना कौन चाहता है? 

मैं छ और सालों तक लोलिता  पढ़ना टाल दूंगा जब तक कि वह 18 की नहीं हो जाती. 

अगली बार जब मैं तुमसे मिलूँ, याद दिला देना कि मुझे तुमसे बात नहीं करनी है. 

अस्पताल का बिस्तर ऎसी खड़ी हुई टैक्सी की तरह होता है जिसका मीटर चल रहा हो. 

इससे पहले कि मैं बोलूँ, मुझे कुछ जरूरी बात कहनी है. 

हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री होती है, और उस स्त्री के पीछे उसकी पत्नी. 

सभी लोग एक जैसे पैदा होते हैं... सिवाय रिपब्लिकनों और डेमोक्रेटों के. 

हँसो तो तुम्हारे साथ पूरी दुनिया हँसती है, रोओ तो शायद तुम गलत चैनल देख रहे हो. 
                                                     :: :: :: :: 

Monday, July 9, 2012

ऊलाव हाउगे : एकाकी चीड़

ऊलाव हाउगे की एक और कविता...   

 
एकाकी चीड़ : ऊलाव हाउगे 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

काफी जगह है यहाँ, तुम 
फ़ैल सके और चौड़ा कर सके 
अपना ताज. 

पर तुम खड़े हो अकेले. 
जब तूफ़ान आते हैं, 
कोई नहीं होता तुम्हारे पास 
सहारा लेने के लिए. 
          :: :: :: 
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...