बुल्गारिया के कवि गिओर्गि गस्पदीनव की एक और कविता…
ओडियन : गिओर्गि गस्पदीनव
(अनुवाद : मनोज पटेल)
किसी दिन ठंडे पड़ जाएंगे हम भी
जैसे ठंडी हो रही है चाय की प्याली
पिछवाड़े बरामदे में बिसराई हुई
जैसे कीचड़ में गिरे लिली के फूल
जैसे पुराने वाल-पेपर के ऑर्किड
धुंधला जाएंगे हम भी किसी दिन
मगर इतनी शान से नहीं
और किन्हीं दूसरी फिल्मों में
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'और किन्हीं दूसरी फिल्मों में ' इस वाक्यांश के सन्दर्भ-सूत्र नहीं ढूँढ़ पाया। पुनरागमन की बधाई।
ReplyDeleteअंतिम पंक्ति समझ से बाहर है
ReplyDeletesayad dusri filmon kaa matlab agle janm se hai ..
ReplyDeletewah
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