Wednesday, March 6, 2013

ली-यंग ली की कविता


निर्वासित चीनी माता-पिता की संतान ली-यंग ली का जन्म 19 अगस्त 1957 को जकार्ता में हुआ था. उनके नाना चीन के राष्ट्रपति थे. उनके पिता कभी माओ के निजी चिकित्सक हुआ करते थे, जिन्हें निर्वासन के बाद इंडोनेशिया में उन्नीस महीने जेल में बिताने पड़े. 1964 में उनका परिवार अमेरिका चला गया जहां ली फिलहाल शिकागो में रहते हैं. 












एक कहानी : ली-यंग ली 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

उदास है वह व्यक्ति जिससे कहा गया एक कहानी सुनाने के लिए 
और उसे सूझ नहीं रही एक भी. 

उसका पांच साल का बेटा इंतज़ार कर रहा है उसकी गोद में 
वही वाली कहानी नहीं, बाबा. कोई नई कहानी. 
अपनी दाढ़ी खुजलाता है वह व्यक्ति, अपने कान खोदता है. 

कहानियों की दुनिया के किताबों से भरे एक कमरे में  
उसे सूझ नहीं रही कोई भी कहानी, 
और उसे लगता है कि जल्द ही बच्चा  
उम्मीद करना छोड़ देगा अपने पिता से. 

बहुत आगे की सोचने लगता है वह व्यक्ति, 
उसे दिखता है वह दिन जब चला जाएगा वह बच्चा. मत जाओ ! 
यह घड़ियाल वाली कहानी सुन लो ! फिर से सुन लो परी वाली कहानी !  
तुम्हें पसंद थी मकड़े वाली कहानी. मकड़े पर हँसते थे तुम. 
मुझे सुना लेने दो उसे ! 

मगर लड़का बाँध रहा है अपना सामान, 
वह ढूँढ़ रहा है अपनी चाभियाँ. क्या तुम भगवान हो, 
चीखता है वह व्यक्ति, जो गूंगा बना मैं बैठा रहूँ तुम्हारे सामने? 
क्या कोई भगवान हूँ मैं जो कभी निराश नहीं करना चाहिए मुझे? 

लेकिन फ़िलहाल तो यहाँ है बच्चा. बाबा, प्लीज, एक कहानी? 
तार्किक नहीं भावनात्मक समीकरण है यह, 
उस दुनिया का नहीं, इस दुनिया का एक समीकरण, 
जो साबित करता है कि 
एक बच्चे की चिरौरियों और एक पिता के प्रेम का योग 
खामोशी होती है. 
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Monday, March 4, 2013

जैक एग्यूरो की कविता

जैक एग्यूरो की एक और कविता... 









सानेट - युद्ध का चेहरा : जैक एग्यूरो 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

युद्ध का चेहरा तुम्हारा चेहरा है. आईने में यह तुम्हारा चेहरा है एक तख्ती लगाए हुए  
जिसपर लिखा है, "मैनें उन्हें ऐसा करने दिया, अपनी खामोश के साथ मैंने अपनी 
सहमति व्यक्त की, अपनी निष्क्रियता के साथ उसे अपना समर्थन दिया, एक तरह से 
उसे अपना अनुमोदन प्रदान किया क्योंकि सड़कों पर मैं यह चिल्लाते हुए 
नहीं निकल पड़ा, 'बंद करो यह सब, यह सच नहीं है, यह टेलीविजन है.' " 

युद्ध का चेहरा देखने के लिए अपने आईने को देखो, टेलीविजन को नहीं. 
यह तुम्हारा चेहरा है, यूँ ही चढ़ावा चढ़ाता हुआ तुम्हारे बेटों और मेरी बेटियों का, 
तुम्हारा अपना चेहरा वाहवाही करता रंगीन परदे पर अरेबियन सैंडबाक्स गेमों का. 

तुम्हारा चेहरा है युद्ध, उन लोगों का समर्थन करता जो पीते हैं कच्चा तेल या 
शोधित कर बैरलों से निकाल चुस्कियां लेते हैं बर्फ के साथ, या नशे में चूर, उसकी 
उल्टी कर देते हैं समुद्र में, और फिर भी बटोरते हैं अपना फायदा और मुनाफ़ा. 
ज्वाय स्टिक्स से नहीं लड़ा जाता युद्ध, निनटेंडो या सुपर मारियो की तरह 
और इसमें मरने वाले बच्चे ठोकर नहीं मार सकते, न ही कभी खड़े हो सकते हैं दुबारा. 

चेहरे, अपना पक्ष चुन लो: तुम्हारे बच्चे या तेल अल्पतंत्र? 
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Saturday, March 2, 2013

एमिली डिकिन्सन की कविता

अमेरिकी कवयित्री एमिली डिकिन्सन की एक और कविता... 



एमिली डिकिन्सन की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

कुछ लोग कहते हैं 
कि बोलते ही 
मर जाता है एक शब्द. 
मैं कहती हूँ 
कि उसी दिन से 
जीना शुरू करता है वह. 
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