जैक एग्यूरो की एक और कविता...
सानेट - युद्ध का चेहरा : जैक एग्यूरो
(अनुवाद : मनोज पटेल)
युद्ध का चेहरा तुम्हारा चेहरा है. आईने में यह तुम्हारा चेहरा है एक तख्ती लगाए हुए
जिसपर लिखा है, "मैनें उन्हें ऐसा करने दिया, अपनी खामोश के साथ मैंने अपनी
सहमति व्यक्त की, अपनी निष्क्रियता के साथ उसे अपना समर्थन दिया, एक तरह से
उसे अपना अनुमोदन प्रदान किया क्योंकि सड़कों पर मैं यह चिल्लाते हुए
नहीं निकल पड़ा, 'बंद करो यह सब, यह सच नहीं है, यह टेलीविजन है.' "
युद्ध का चेहरा देखने के लिए अपने आईने को देखो, टेलीविजन को नहीं.
यह तुम्हारा चेहरा है, यूँ ही चढ़ावा चढ़ाता हुआ तुम्हारे बेटों और मेरी बेटियों का,
तुम्हारा अपना चेहरा वाहवाही करता रंगीन परदे पर अरेबियन सैंडबाक्स गेमों का.
तुम्हारा चेहरा है युद्ध, उन लोगों का समर्थन करता जो पीते हैं कच्चा तेल या
शोधित कर बैरलों से निकाल चुस्कियां लेते हैं बर्फ के साथ, या नशे में चूर, उसकी
उल्टी कर देते हैं समुद्र में, और फिर भी बटोरते हैं अपना फायदा और मुनाफ़ा.
ज्वाय स्टिक्स से नहीं लड़ा जाता युद्ध, निनटेंडो या सुपर मारियो की तरह
और इसमें मरने वाले बच्चे ठोकर नहीं मार सकते, न ही कभी खड़े हो सकते हैं दुबारा.
चेहरे, अपना पक्ष चुन लो: तुम्हारे बच्चे या तेल अल्पतंत्र?
:: :: ::
एक सशक्त कविता जो युद्ध का समर्थन करने वालों को आगाह करती है.तेल या किसी अन्य कारण से लड़े जाने वाले युद्ध अमानवीय हैं.
ReplyDeleteमुनाफे के लिए मानवता पर लादे जाने वाले युद्ध और मरते हुए हमारे बच्चे ...जोरदार कविता !
ReplyDeleteअद्भुत कविता है मित्र |
ReplyDeleteचेहरे,अपना पक्ष चुन लो : तुम्हारे बच्चे या तेल अल्पतन्त्र ?