Thursday, September 30, 2010

बिली कालिन्स की कविता

पहली लहर पर कदम रखने के पहले
इंतजार करता हूँ कि छुट्टियों की भीड़ समुद्र तट खाली कर दे

पैदल पार कर रहा हूँ अटलांटिक
सोचते स्पेन के बारे में
व्हेलों और लहरों को परखते
महसूसता हूँ पानी को सँभालते अपना खिसकता वजन
आज की रात इसकी डोलती सतह पर ही सोना होगा

मगर अभी तो अंदाजा लगाता हूँ
कि नीचे से मछलियों को कैसा दिखता होगा
दृश्य-अदृश्य होता मेरा तलुआ |



(अनुवाद : Manoj Patel)

Padhte Padhte

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