Thursday, August 8, 2013

दूरी

नत्त रोज़न्स्का की एक कविता... 

नत्त रोज़न्स्का की कविता  
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

तुम 
हाथ भर की दूरी पर हो मुझसे 
बस मेरा हाथ 
अपनी रजाई की तहों के भीतर नहीं 
दुनिया के एक नक़्शे पर पड़ा है 
और मुमकिन नहीं मेरे लिए  
कि समंदर लपेटकर अपने चारों ओर 
दुबक जाऊँ तुम में 
          :: :: :: 

4 comments:

  1. वाह...
    कमाल की कविता......

    अनु

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  2. दूरी और सामीप्य के मानक कितने विलक्षण होते हैं न!

    बेहद सुन्दर कविता, संलग्न तस्वीर ने भी बहुत कुछ समझाया!
    आभार!

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  3. वाह...कितनी सुंदर कल्पना...

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