Tuesday, December 18, 2012

ताहा मुहम्मद अली : एयरपोर्ट पर एक मुलाक़ात

फिलिस्तीनी कवि ताहा मुहम्मद अली की एक और कविता...   


एयरपोर्ट पर एक मुलाक़ात : ताहा मुहम्मद अली 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

एक बार तुमने पूछा था मुझसे, 
सुबह के वक़्त 
झरने की सैर से 
लौटते हुए: 
"तुम्हें किस चीज से नफरत है, 
और किससे है प्यार?" 

और जवाब दिया था मैंने, 
अपनी हैरत की 
पलकों के पीछे से, 
मेरा खून दौड़ता हुआ 
चिड़ियों के बादल से 
बन रही परछाईं की तरह: 
"मुझे जुदाई से है नफरत... 
और प्यार है झरने, और 
झरने तक के रास्ते से, 
और इबादत करता हूँ मैं 
सुबह के वक़्त की." 
और तुम हँसी थी... 
और फूल खिल उठे थे बादाम के पेड़ों में 
बुलबुलों के गान से गूँज उठा था झुरमुट. 

...एक सवाल 
आज चार दशक पुराना: 
मैं सलाम करता हूँ उस सवाल के जवाब को; 
और एक जवाब 
तुम्हारी जुदाई जितना ही पुराना; 
सलाम करता हूँ मैं उस जवाब के सवाल को... 

और आज, 
कितना अजीब है यह, 
एक दोस्ताना एयरपोर्ट पर मौजूद हैं हम, 
और कैसा दुर्लभ संयोग 
कि मुलाक़ात होती है हमारी. 
उफ़ मेरे मालिक! 
आमना-सामना हो गया हमारा. 
एक और 
बिल्कुल अजीब बात 
कि मैं तो पहचान गया तुमको 
मगर तुम नहीं पहचान पाई मुझे. 
पूछती हो तुम, 
"क्या तुम्हीं हो?!" 
पर विश्वास नहीं होता तुम्हें. 
और अचानक 
बोल फूटते हैं तुम्हारे: 
"अगर सचमुच ये तुम हो 
तो बताओ मुझे 
कि तुम्हें किस चीज से नफरत है 
और किससे है प्यार?!" 

और मेरा खून दौड़ता हुआ मेरे भीतर 
चिड़ियों के बादल से 
बन रही परछाईं की तरह 
जैसे निकल जाता है हाल से बाहर, 
और जवाब देता हूँ मैं: 
"मुझे जुदाई से है नफरत, 
और प्यार है झरने, और 
झरने तक के रास्ते से, 
और इबादत करता हूँ मैं 
सुबह के वक़्त की." 

और तुम रोईं, 
और फूलों ने झुका लिए अपने सर, 
और अपने गम में डूबे सिसकने लगे कपोत. 
               :: :: :: 

3 comments:

  1. बहुत मार्मिक कहानी को साथ लिए हुए है यह कविता ..सुन्दर

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  2. प्रेम,अलगाव,और चाहत की मार्मिक कविता !सुन्दर अनुवाद !

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  3. ओस जितनी नाजुक और खूबसूरत-

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