Monday, December 31, 2012

पाब्लो नेरुदा : यदि हर दिन

पाब्लो नेरुदा की एक और कविता...    


यदि हर दिन : पाब्लो नेरुदा 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

यदि हर दिन पड़े 
हर रात के भीतर, 
तो एक कुआँ होगा वहां 
जहां कैद होगी स्पष्टता. 
बैठना होगा हमें 
अंधकार के कुएँ की जगत पर 
और जाल डालकर पकड़ना होगा गिरी हुई रोशनी 
धैर्य के साथ. 
:: :: :: 

4 comments:

  1. thos spashtta aur kuyen mein giri roshni ko jal dalkar nikalne ki kalpna karne wali anoothi kavita.

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  2. और जाल डालकर पकड़ना हो रोशनी को ...वाह बहुत खूब ,क्या बात है ...और धैर्य के साथ क्योकि वह तरल है ,छलक सकती है ...बहुत खूबसूरत कविता ! बधाई मनोज जी इसके अनुवाद के लिए !

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  3. इसी लिए तो कवि जादूगर से लगते है....!!

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