Thursday, January 3, 2013

लंदन में चंद्रमा की अवस्थाएं

जार्डन के कवि अमजद नसीर की एक कविता... 













लंदन में चंद्रमा की अवस्थाएं : अमजद नसीर 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

हम दोनों मौसम के बारे में बात कर रहे थे, वही ज़ंग खाई हुई कुंजी जिससे यहाँ लंदन में बातचीत के दरवाजे खुलते हैं. हमारी पुरानी पड़ोसन मिसेज मारिसन अब हमारी सड़क पर आखिरी अंग्रेज औरत बची हैं क्योंकि जैसे-जैसे इधर एशियाई आप्रवासियों की संख्या बढ़ती गई, वैसे-वैसे अंग्रेज यहाँ से अपना बोरिया-बिस्तर समेटते गए. वे बोलीं: "पहले लंदन का आसमान ऐसा नहीं बल्कि वैसा ही हुआ करता था जैसा कि आपके हिन्दुस्तान का आसमान होता होगा." 

मैंने उन्हें दुरुस्त किया: "मैं जार्डन का हूँ," लेकिन उन्होंने मेरी इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया. शायद उन्होंने इसे दुरुस्ती के रूप में देखा ही न हो. वे उसी अंग्रेजी लहजे में बोलती गईं जिसमें भावनात्मक प्रतिध्वनियों को समझना मुश्किल होता है, कि वे सब भी सितारों को देखा करते थे और चंद्रमा की अवस्थाओं का पता करते रहते थे. 

मैं कायल तो नहीं हुआ मगर अंग्रेजी शिष्टता के लबादे को ओढ़े हुए बोला: "किस वजह से चाँद और सितारे गायब हो गए और आसमान, मुर्गे की आँखों जैसी साफ़ रातों में भी, एक गंदे सोख्ता कागज़ में बदल गया?" 

"मैं नहीं जानती," उन्होंने कहा. "शायद मौसम में बदलाव, बिजली के हमारे अति इस्तेमाल या इस अत्यधिक शहरीकरण की वजह से. हम धरती को रोशन करते हैं और आसमान गायब हो जाता है. इस मामले में हिन्दुस्तान में आप शायद बेहतर स्थिति में हैं." 

"जार्डन में," मैंने कहा. 

एक बार फिर, मेरी इस बात पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया.   

वे मुस्कराईं और उस ट्राली को उन्होंने अपने घर की ओर धकेलना शुरू कर दिया जिसे वे अपनी रोजाना की खरीदारी के लिए इस्तेमाल करती थीं. यह बातचीत के अंत का एलान था जिसे शराफ़त ने दो ऐसे पड़ोसियों पर लाद दिया था जो अन्यथा दरवाजे पर मिलने पर एक-दूसरे से बचने की हर संभव कोशिश किया करते हैं.     

मैं उन्हें बताना चाहता था कि फ़ौजी हुकूमत और भ्रष्टाचार से कराह रहे पूर्वी शहरों के आसमानों का भी यही हाल है, कि वे सितारे भी गुम हो चुके हैं जो हमारे बचपन पर धूमकेतुओं की चित्तियाँ बनाया करते थे, मगर मुझे डर था कि मैं उस इकलौती सौगात को खो बैठूंगा जिसके चलते वे मुझसे ईर्ष्या करती हैं. 
                                                                :: :: :: 

4 comments:

  1. अब वो क्या जानें कि हिन्दुस्तान का हाल कैसा है इन दिनों....

    अनु

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  2. हिंदुस्तान में तो पाँव के नीचे से जमीन गायब होती जा रही है ,सिर्फ आसमान ही रह गया है देखने को !
    अच्छी कविता ,सुन्दर अनुवाद !

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  3. हिंदुस्तान में तो पाँव के नीचे से जमीन गायब होती जा रही है ,सिर्फ आसमान ही रह गया है देखने को !
    अच्छी कविता ,सुन्दर अनुवाद !

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  4. बहुत सहजता से कवि ने भूगोल की सीमाओं को न के बराबर कर दिया. इस रचना में बयाँ होता हुआ दुःख भी है और दुःख छिपाने का सुख भी- आसमान - कितना अनन्य इडियम...!!

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