Monday, October 18, 2010

लीना तिबी की कवितायेँ

(लीना तिबी समकालीन अरबी कविता की महत्वपूर्ण हस्ती हैं. दमिश्क (सीरिया ) में जन्मीं और कई देशों से होते हुए फिलहाल काहिरा (मिश्र ) में निवास.  इनके कई कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद भी. एक साहित्यिक पत्रिका की सम्पादक और एक अखबार के लिए स्तंभकार के रूप में काम कर चुकी हैं.)   

एक ख्वाहिश 

गर होता यह मेरे बस में 
गर होता कहीं मेरे बस में उड़ना बिना पंख ही 
तो उड़ती बेआवाज़ बिना पंखों के कोलाहल के 
गर होता यह मेरे बस में 
एकाकी इन्द्रधनुष की तरह तनना बहुत ऊंचा 
तो दमक के तनती बस एक बार 
फिर ख़त्म हो जाती सांझ तक.

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अगर मैं मर गई   

अगर मर गई मैं तो कौन करेगा मेरा इस्तकबाल 
कौन उतारेगा सर पे धरा बोझ 
बंद करेगा कौन मेरी आँखें 
कौन पढेगा दुआ मेरे कानों में अगर मर गई मैं 
तकिए पर कौन रखेगा मेरा सर आहिस्ता से 
कौन देगा दिलासा मेरी मां को 
फिर रोएगा चुपके-चुपके कौन अगर मर गई मैं 

और अगर कहीं मर गई मैं चटपट 
तुम्हारे दिल से कौन जुदा करेगा मेरा दिल ?


(अनुवाद : मनोज पटेल)

2 comments:

  1. तो दमक के तनती एक बार...
    मूल देखा नहीं पर कह सकता हूँ की इससे बेहतर नहीं हो सकता..

    पर फिर..कहाँ पढ़ पाया था तब तक..
    'और अगर कहीं मर गयी मैं चटपट'
    जिन्दगी में पहली बार मरने को भी इतना रूमानी होते देखा. या रूमानी भी क्या.. कैशोर्य के अल्हड प्रेम की शरारतों जैसा कुछ (शहादतों में भी रूमानियत होती है पर एक अजब सा ग़म लिए हुए)!
    शुक्रिया मनोज भाई

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