Monday, October 11, 2010

मोची : दून्या मिखाइल



एक हुनरमंद मोची 
अपनी पूरी ज़िंदगी  
ठोंकता रहा कील 
और चमड़े को बनाता रहा मुलायम 
तरह-तरह के पैरों के लिए : 
पैर जो दूर चले जाते 
पैर जो ठोकर मारते 
पैर जो कूदते 
पैर जो पीछा करते 
पैर जो दौड़ते 
पैर जो रौंदते 
पैर जो हिम्मत हारते 
पैर जो छलांग लगाते 
पैर जो लड़खड़ाते 
पैर जो ठिठकते 
पैर जो कांपते 
पैर जो नाचते 
और फिर
पैर जो वापस चले आते 

किसी मोची के हाथों 
मुठ्ठी भर कील ही तो है ज़िंदगी. 

(अनुवाद : मनोज पटेल)

4 comments:

  1. u have chosen most neglected part of body. It also indicate that activities of feet hence whole body depends on the mercy of most neglected class of the society. CONGRATULATION.

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  2. यह रचना प्रस्तुत करने और पढवाने के लिए तहे-दिल से शुक्रिया. वाह!

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