Monday, December 13, 2010

एलिस वाकर की कविताएँ

(1944 में जन्मीं एलिस वाकर के कई कविता संग्रह, कहानी संग्रह और उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. अपने उपन्यास 'द कलर पर्पल' के लिए उन्हें पुलित्ज़र पुरस्कार प्राप्त हो चुका है. यह एक अश्वेत युवती की कहानी है जिसे श्वेतों के नस्ली भेदभाव के साथ-साथ अश्वेतों की पितृसत्तात्मक व्यवस्था से भी संघर्ष करना पड़ता है. 2003 में ईराक युद्ध के ठीक पहले व्हाईट हाउस के सामने एक युद्ध विरोधी प्रदर्शन के समय इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. 2009 में एक युद्ध विरोधी समूह के साथ वाकर ने गाजा की यात्रा की थी. इनकी एक कविता की पंक्तियाँ यूँ हैं -"Though War is Old / it has not / Become Wise"  प्रस्तुत हैं उनकी तीन कविताएँ - Padhte Padhte )  


वंचित नहीं करूंगी 
अपने होंठों को 
वंचित नहीं करूंगी मैं 
उनकी मुस्कान से 
अपने दिल को वंचित नहीं करूंगी 
उसके ग़म से 
आंसुओं से वंचित नहीं करूंगी 
अपनी आँखों को 
अपनी उम्र की क्रूरता से 
वंचित नहीं करूंगी 
अपने बालों को 

हद दर्जे की 
खुदगर्जी है यह 

खुद को वंचित नहीं करूंगी 
अपनी किसी भी चीज से.
              * *
मिलना 
तुमसे मिलते हुए 
टकरा जाती हूँ मैं 
एक दीवाल से : 
लगता है 
तुम्हें पता भी नहीं 
कि छुपे हुए हो तुम 
इसके पीछे.

कविता में
अप्रेषित सन्देश नहीं हैं यह 
किसी बहरे शख्स के लिए.
              * *
कीड़ों को मीनू की जरूरत नहीं 
खुश हूँ कि 
दुनिया भर में तुम 
कभी नहीं पाओगी 
ऐसे मीनू 
जिन पर 
छपी हो तुम्हारी देह 
तरह-तरह की 
कामोत्तेजक मुद्राओं में.

दिलासा देती हूँ खुद को : 
कीड़ों को नहीं पड़ती जरूरत 
मीनू की 
अपनी आदमखोर दावत के लिए.
फिर भी 
अच्छा लगता है अंदाजा लगाना 
सतर्क बैठे मेज पर 
अपनी सरसता को पढ़ते हुए. 

(अनुवाद : Manoj Patel) 
Alice Walker

2 comments:

  1. यह तो बहुत सुन्दर कविताएं है.
    पाखी की दुनिया में भी आपका स्वागत है.

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  2. स्तरीय चयन , बढ़िया अनुवाद , आभार और शुभकामनाएं .

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