Tuesday, December 21, 2010

ओसवाल्डो साव्मा की तीन कविताएँ

( पढ़ते पढ़ते पर आज अशोक कुमार पाण्डेय जी के सौजन्य से ओसवाल्डो साव्मा की कविताएँ. 1949  में कोस्टा रिका में जन्मे ओसवाल्डो साव्मा कवि और साहित्य शिक्षक हैं. अस्सी के दशक की शुरूआत से इनकी कवितायेँ प्रकाशित होना शुरू हुईं, अब तक 6 कविता संग्रहों के अतिरिक्त कविता की 6 किताबों का सम्पादन भी. 1985 में फेमिली पोर्ट्रेट किताब के लिए EDUCA पुरस्कार. कई अंतर्राष्ट्रीय कविता महोत्सवों में शिरकत. अनुवादक अशोक कुमार पाण्डेय की दो किताबों के अतिरिक्त अनुवाद की भी एक किताब- 'प्रेम' प्रकाशित, एक कविता संग्रह 'लगभग अनामंत्रित' शीघ्र प्रकाश्य - पढ़ते पढ़ते ) 


युद्ध की चेतावनी

प्रेम
किस काम का है तुम्हारे कवि
केवल शब्द हैं उसके पास
एक दयालु मुहावरा
तमाम काग़ज़ी भ्रम

किस काम का है तुम्हारे लिये आदमी
जो नहीं जानता अपनी सीमायें
जो बनाता है छायाओं की एक दीवार
जहाँ रख देता है छिपाकर अपने सपनों की चमक

बहुत कम जानता है कवि ख़ुशियों के बारे में
दुर्भाग्य का व्यापारी अधिक है वह
एक उदास पक्षी उजाड़ मैदान में
दूर के अंधेरे तारों से करता है वह बात
सपने में चलने वालों को बेचते हैं रात की सेनाओं के स्वप्न
अनिद्रा से पीड़ित लोगों को स्वप्न यात्राओं को
पेड़ों पर उगाता है वह फूल
भरता है रौशनी मछलियों के सीने में
जुगनुओं में चमक
वह बिखेर देता है बादल उद्धत सूर्य के नीचे

सच कह रहा हूँ, प्रेम
त्याग दो उसे
प्लेटो भी नहीं चाहता था उन्हें अपने गणराज्य में
वह पहला था जिसे किया गया उत्पीड़ित अक्लमंदी के लिये
पहला था वह जिसे गिरफ़्तार किया गया उड़ान भरने के जुर्म में 
सबसे पहले उसे ही मारा गया स्मार्ट होने के लिये
और क्या होगा इससे बुरा
कि वे लेते हैं उससे अतिरिक्त बिल बिजली जलाने के लिये भी


नज़रअंदाज़ करो उसे
कभी नहीं दे सकता वह तुम्हें सुरक्षा
अपने आलस्य के सूरज तले
जो उत्सव मनाता है अपनी ग़रीबी का 
और किसी बच्चे की तरह
होता है आश्चर्यचकित देखकर कुछ भी

मैं चेतावनी देता हूँ तुम्हें प्रेम
मत उलझो उससे
सिर्फ़ मुक्त रास्तों वाली धूसर ज़मीन
दे सकता है वह तुम्हें।
               * *

जन्म

पहले ज़रूरत की वज़ह से होता है यह
फिर कोई और चीज़ नहीं आती काम
इसलिये फेंकते रहते हो तुम
संदेशों की बोतलें
जिन्हें कोई नहीं उठाता गली के कचरे से
फिर से और कुछ बनाने के लिये

कभी
मैं बनना चाहता था
मान लीजिये एक बढ़ई
जो बना सके ज़रूरत की चीज़ें
कुर्सियाँ- मेज़ें- आल्मारियाँ- ताबूत – बिस्तर
चीज़ें जो काम आती हैं आपके रोज़-ब-रोज़
आलमारियाँ पुरस्कारों के लिये
क़िस्तों पर ख़रीदी
इन्साक्लोपीडिया के लिये
और उन मढ़ी हुई नेशनल ज्योग्राफिकल्स के लिये

या वे बिस्तर
जो केन्द्र हैं संसार के
जहाँ से शुरु होती है ज़िंदगी और फिर ख़त्म हो जाती है
या वे मेजें जहाँ हम खाते हैं
भूख की रोटियाँ
या वे बक्से
जिनमें होती है धूल से मिलने जा रही धूल


लेकिन कारीगर नहीं हूँ मैं
मैं बस एक अंगूठा हूँ
मुझे अच्छे लगते हैं पेड़ यूँ ही तने हुए
मेरी असल दीवानगी है आराम

जहाँ मैं गढ़ता हूँ कविता
जो कर देती है आज़ाद ज़िंदगी को
जाँचती है और प्रतिस्थापित कर देती है ज़िंदगी को
आत्मतुष्टि के उसे बेकार से भ्रम से
हमारे आत्मनिर्वासन में निवास करता है जो

सच है यह
कि सिर्फ़ समाहित होकर
दूसरों की धरती में
और बनकर मिट्टी उनकी मिट्टी की
मैं हो सकता हूँ उसकी आवाज़
केवल शब्द
करेंगे मुझे मुक्त इस दुनिया से
               * *

दबी आवाज़ में


मैं वह हूँ
जो तुम थे हव्वा के पहले
आदम 
शायद एक यक्ष
पहली बार
नाम देता हुआ चीज़ों को
फूलों और ऊंटो के बीच
भागता उन्मुक्त
अंजान आलिंगन की ज़रूरत से
तुम नहीं जानते थे वर्जित फलों के बारे में
और आदिमानवों के बीच रहते थे प्रसन्न

या वह अलग सा प्रकाश
जब तुमने पहले से ही रखा संवेदित
अपनी पसलियों को
स्वर्ग में उसके आकर्षण से
और चुपचाप चलते रहे
विशाल पक्षियों के पंखो
और जंगली जानवरों की प्रशांत संगत में
और महासागर प्रतिध्वनि था उसकी अनुपस्थिति का 
तुम्हारे अकेलेपन का विशाल अनुस्मारक


(दो)

किसकी तरह था ईश्वर

आदम
किस रंग की थीं उसकी आँखें
और कैसी थी उसकी आवाज़

क्या चुंधियां गयीं थीं तुम्हारी आँखें
उसके प्रकाश से
क्या परियाँ रक्षकों की तरह
मंडराती थीं उसके चतुर्दिक
पीते हुए रस उसकी रौशनी का
या अपने हाथों में लिये
चपल तलवारें रौशनी की
बस यूँ ही लटकी रहती थीं चुपचाप

और क्या नाचते थे
पेड़-चिड़ियाँ-जानवर
या लगभग झुक जाते थे
किसी हवा के झोंके से
उस पवित्र गोद में

मेरा मतलब
जीवन वृक्ष के निर्माण से पहले
क्या तुम आनन्द कर रहे थे हव्वा के साथ
जब वह आया बगीचे में
उस शाम
बताओ मुझे

तब
पिता मेरे
भाई मेरे
कैसे रह सकता है कोई उसके बिना
स्वर्ग के बाहर
इन ईश्वरहीन जगहों पर


(अनुवाद : अशोक कुमार पाण्डेय) 
Osvaldo Sauma 

13 comments:

  1. kiski tarah tha ishwar
    achchhi lagi, anuwaad bhi iska khoobsurat hua hai

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  2. kahan se late ho itne naye naye shabd...bhav ko samtete hue...

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  3. BAHUT SUNDER/
    TRANSLATION IS A DIFFICULT ART/

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  4. बहुत अच्छा अनुवाद। संप्रेषणीय। आभार इसे यहाँ पोस्ट करने के लिए।

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  5. कवितायें प्रेम कवि और जीवन को एक नयी अंतरदृष्टि से देखने को बाध्य करती हैं. बहुत कुछ जो हम समझते हैं, मगर कहने का सलीका नहीं जानते. बहुत अच्छा अनुवाद. बधाई.

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  6. मनोज भाई और आप सबका आभार

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  7. kavitayen achchhi lgin,ashok bhai ka swad janta hu,meri jihwa ki swad-granthiyon(taste-buds)se nhin alg unki swad-granthiyan!shayd angrezi se anoodit hain ye kvitayen.in kavitayon ko mool men bhi prhna chahunga taki anuvad ka vaibhav thah skun!

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  8. मुक्त रास्तों वाली धूसर जमीन...

    बहुत अच्छी कवितायें
    बहुत अच्छा अनुवाद!!!!!!!!!!!!!!!!

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  9. बहुत अच्छी अच्छी कवितायेँ ,जिनका श्रेय निस्संदेह अनुवादक को जाता है जिनके सौजन्य से पढ़ी जा सकीं ....धन्यवाद अशोक

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