Wednesday, December 15, 2010

लैंग्स्टन ह्यूज की कविताएँ

( 1902 में जन्मे  लैंग्स्टन ह्यूज अमेरिका के प्रसिद्द कवि, उपन्यासकार, स्तंभकार, नाटककार रहे हैं. इन्होनें आठवीं कक्षा से ही कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था. 1967 में कैंसर से अपनी मृत्यु के पहले इनके सोलह कविता संग्रह, दो उपन्यास, तीन कहानी संग्रहों के अतिरिक्त भी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी थीं. प्रस्तुत हैं उनकी कुछ कविताएँ  - Padhte Padhte )   


सपने 
सपने देखो जमकर 
क्योंकि गर नहीं रहे सपने 
बिना पंखों वाली किसी चिड़िया सी 
रह जाएगी जिन्दगी 
जो नहीं भर सकती उड़ान.
सपने देखो जमकर 
क्योंकि गर नहीं रहे सपने 
बंजर धरती सी रह जाएगी ज़िंदगी
जमी हुई बर्फ में.

इकरार 
बहुत बुद्धिमान नहीं बनाया मुझे 
ईश्वर ने अपने असीम विवेक से 
इसलिए जब काम रहे मेरे मूर्खतापूर्ण 
आश्चर्य हुआ हो उसे शायद ही.

ऊब 
कितना उबाऊ है 
कंगाल रहना 
हमेशा.

मातमपुर्सी 
कह दो मेरी मातमपुर्सी करने वालों से 
लाल कपड़े पहनकर रोएँ मेरे लिए 
गो कि कोई मतलब नहीं है 
मेरे मुर्दा होने का.

आर्टिना के लिए 
मैं ले लूंगा दिल तुम्हारा 
निकाल लूंगा आत्मा तुम्हारे शरीर से 
जैसे कि भगवान होऊँ मैं.
संतुष्ट नहीं होऊंगा 
केवल तुम्हारे हाथों के स्पर्श से 
या तुम्हारे होंठों के माधुर्य भर से.
ले लूंगा दिल तुम्हारा अपने दिल के लिए.
ले लूंगा तुम्हारी आत्मा.
भगवान हो जाऊंगा तुम्हारी बात आई तो.

स्वप्न रक्षक   
स्वप्नद्रष्टा 
अपने सारे सपने ले आओ मेरे पास,
सारी धुनें अपने दिल की 
ले आओ मेरे पास,
ताकि लपेट सकूं मैं उन्हें 
नीले बादल के एक टुकड़े में 
इस दुनिया की 
कठोर उँगलियों से बहुत दूर.

सांप  
इतनी तेजी से निकल जाता है वह 
घास में वापस 
मुझे रास्ता देने की खातिर 
सड़क छोड़ने का शिष्टाचार निभाते हुए 
कि थोड़ा शर्मिन्दा होता हूँ 
उसे मारने के वास्ते
एक पत्थर तलाशते हुए.

सवाल 
2 और 2 होते हैं 4.
4 और 4 मिलकर होते हैं 8.

लेकिन क्या होगा अगर 
बाद वाले 4 को हो जाए थोड़ी देर ?

और क्या नतीजा निकलेगा जो 
एक 2 मैं होऊँ ?

या होते पहला 4 तुम 
विभाजित 2 से ?

(अनुवाद : Manoj Patel) 
Langston Hughes 

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