नाजिम हिकमत ने यह कविता बिनायक सेन जैसे लोगों के लिए ही लिखी थी. यह पोस्ट बिनायक सेन के लिए.......
जेल काटने वालों के लिए कुछ सलाह
आपको डाल दिया जाता है जेल में
सिर्फ इसलिए कि आपने
अपनी दुनिया, अपने वतन और अपने लोगों की खातिर
नहीं छोड़ा है उम्मीद का दामन,
अगर काटना पड़े आपको दस या पंद्रह साल की कैद
उस वक्त के अलावा जो बचा है अभी काटने को,
आप नहीं कहेंगे कि
- "इससे तो बेहतर था झूल जाना फांसी के फंदे से
किसी परचम की तरह" -
आप धरेंगे अपने पाँव जमीन पर और ज़िंदा रहेंगे.
ठीक है कोई लुत्फ़ नहीं होगा इसमें
लेकिन अजीम फ़र्ज़ होगा यह आपका
एक दिन और रहना ज़िंदा
अपने दुश्मन को मुंह चिढाते हुए.
हो सकता है आपका एक हिस्सा
अकेला रहे भीतर, जैसे कुँए के तल पर
पड़ी हो आवाज़ कोई.
लेकिन दूसरा हिस्सा आपका
इतना तल्लीन होगा दुनिया की हलचलों में
कि जब बाहर चालीस दिनों की दूरी पर
एक पत्ती हिलेगी ज़रा सा
आप सिहर उठेंगे वहां भीतर.
भीतर इंतज़ार करना खतों का,
गाना दर्द भरे नग्मे,
या फिर जागना सारी-सारी रात ताकते हुए छत को
भला लेकिन खतरनाक होता है.
देखो अपना चेहरा हजामत दर हजामत,
भूल जाओ अपनी उम्र,
खबरदार रहो जुओं और बसंत की रातों से,
और रोटी के आखिरी टुकड़े को भी खाने का
हमेशा रखो ख्याल -
और हाँ ठहाके लगाना मत भूल जाना.
क्या पता तुमसे प्रेम न रह जाए उस औरत को
जिससे तुम करते हो बेतरह प्यार.
ऐसा न कहो कि यह कोई ख़ास बात नहीं :
जेल काट रहे किसी शख्स की खातिर
यह एक हरी डाल के टूटने जैसा है.
गुलाबों और बगीचों के बारे में सोचना भी बुरा है भीतर.
बेहतर है समुन्दर और पहाड़ों के बारे में सोचना.
बिना सुस्ताए पढ़ना और लिखना,
और मैं तो बुनाई और आईने बनाने
की सलाह भी दूंगा.
मेरा मतलब है कि ऐसा नहीं
कि आप दस या पंद्रह साल या इससे भी ज्यादा
जेल नहीं काट सकते --
काट सकते हैं आप,
जब तक अपनी चमक खो नहीं देता वह हीरा
जो आपके सीने की बाईं तरफ धड़कता है.
(अनुवाद : मनोज पटेल)
Nazim Hikmet
बहुत अच्छी कविता है..और इसे अनुदित करने की टाईमिंग भी सटीक है.
ReplyDeleteअच्छी कविता और अच्छा अनुवाद।
ReplyDeleteBehtareen..
ReplyDeleteमनोज भाई
ReplyDeleteसाधुबाद
इतनी भावपुर्ण और प्रेरक कविता के लिए
... saargarbhit rachanaa !!!
ReplyDeleteshandaar aur bilkul sahi samay par
ReplyDeletemain agar aaj jail mein hota to nischit is kavita se mera man pehle se adhik mazboot hota...shukriya
नाजिम हिकमत की कविता को जीता बहुत ही उत्कृष्ट अनुवाद मनोज जी।
ReplyDeleteयह कविता जेल के अंदर कैदी की मनोभावनाओ को जीवंत करती है.. उनके टूटे मन को सबल करती है ..चाहे परिस्तिथि कुछ भी हो.. मनोज जी आपकी ब्लॉग पोस्ट और लिंक आज चर्चामंच में है.. आपका आभार ..http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/blog-post_07.html
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