Wednesday, August 29, 2012

येहूदा आमिखाई : परिचारिका

येहूदा आमिखाई की एक कविता...   

 
परिचारिका : येहूदा आमिखाई 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

एक परिचारिका ने हमसे धूम्रपान की सभी चीजें बुझा देने के लिए कहा 
और तफसील से नहीं बताया सिगरेट, सिगार, या पाइप. 
मैंने मन ही मन उसे जवाब दिया: खूबसूरत प्यारी चीजें हैं तुम्हारे पास, 
और मैंने भी नहीं बताया तफसील से. 

और उसने मुझसे पेटी बाँध लेने के लिए कहा, कस लेने के लिए खुद को 
कुर्सी से, और मैंने उसे जवाब दिया: 
मैं चाहता हूँ कि मेरी ज़िंदगी की सारी पेटियां तुम्हारे मुंह के आकार की हो जाएं. 

और उसने कहा: आप काफी अभी लेंगे या कुछ देर बाद, 
या लेंगे ही नहीं. और आसमान जितनी ऊंची वह 
गुजर गई मेरे पास से.  

उसकी बांह के ऊपरी हिस्से के एक दाग ने गवाही दी 
कि चेचक कभी छुएगी भी नहीं उसे 
और उसकी आँखों ने गवाही दी कि दुबारा कभी प्रेम में नहीं पड़ेगी वह: 
कि अपनी ज़िंदगी में सिर्फ एक अच्छे प्रेम को पसंद करने वालों के 
रूढ़िवादी दल से ताल्लुक रखती है वह.  
                    :: :: :: 

8 comments:

  1. परिचारिका की दिनचर्या और कवि की उडान का सुन्दर संयोग.

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  2. अच्छी कविता मनोज भाई... आपका आभार...

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  3. अच्छी कविता मनोज भाई... आपका आभार...

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  4. वाह आमिखाई तुझे पढना हमेशा जादू देखने जैसा होता हैं .. और उस जादू का live telecast करते हैं मनोज जी ..शुक्रिया सर

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  5. आमिखाई की बेजोड़ कविता का बेहतर अनुवाद. मनोज भाई का आभार.

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  6. वाह ...क्या अंदाज़ है बात कहने का ! वाकई आमिखाई बहुत प्रभावित करते हैं ! आभार मनोज जी ,इस खूबसूरत कविता के लिए !

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  7. वाह ...क्या अंदाज़ है बात कहने का ! वाकई आमिखाई बहुत प्रभावित करते हैं ! आभार मनोज जी ,इस खूबसूरत कविता के लिए !

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