बोस्नियाई कवि सेमेजदीन महमदीनोविक की एक कविता...
तारीखें : सेमेजदीन महमदीनोविक
(अनुवाद : मनोज पटेल)
वह मार दिया गया था १७ जनवरी १९९४ को.
तबसे हर दिन
मरा हुआ ही है वह.
वह मरा हुआ है आज भी --
शुक्रवार २४ फरवरी १९९५ को.
और हर शाम
कुछ रहस्यमय घटित होता है मेरे साथ
जब गुसलखाने में जाता हूँ मैं.
आईने में देखता हूँ
कैसे मेरे बाएँ कंधे के ऊपर
उगती है एक परछाईं.
वह मेरी नहीं होती. और जब
पलटकर देखता हूँ उस कंधे के ऊपर,
क्या देखता हूँ मैं?
एक सपना, लेकिन मेरी आँखें खुली हुईं :
एक काला कौआ बैठा हुआ है मेरी मेज पर
जो बोलता भी है,
वह कहता है: १७ मई को
चेरियाँ पक जाएंगी सारायेवो में.
मैं सुन लेता हूँ, और इंतज़ार करता हूँ.
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"...मैं सुन लेता हूं, और इंतज़ार करता हूं." एक बोलता हुआ काला कौआ यक़ीन किये जाने लायक़ सच का बखान करके नई उम्मीद जगा देता है. इंतज़ार उम्मीद और जीवंतता दोनों को दर्शाता है.
ReplyDeleteजिस रोज वो मरा तब से हर दिन वो मारा हुआ ही है.........
ReplyDeleteअद्भुत...अद्भुत....
शुक्रिया
अनु
सुंदर कविता। यथार्थ के बेहद करीब से गुजरती हुई। आने वाले वक़्त की झलक देती हुई। सपनों की परछाई, काले कौए का बोलना और चेरियों के पकने की तिथि और उसका इंतजार........कविता की स्पष्टता बहुत आकर्षक है। बहुत-बहुत शुक्रिया कविता के अनुवाद के लिए और साझा करने के लिए।
ReplyDeleteIntzaar ke maane batlatee see kavita...
ReplyDeletemaut ki upasthiti aur ujjawal bhavishy ki kavita.
ReplyDeleteमनोज जी इस रचना के भाव बहुत ही संवेदनशील और ह्रदयस्पर्शी है, साथ में अगर परिप्रेक्ष भी पता होता तो रचना को बहेतर तरीके से समझ सकते.
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