पाकिस्तानी कवि अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...
सफ़हा नंबर 163 पर एक तस्वीर : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल)
उसे किसी अजनबी दरिया के किनारे बैठकर
अपने शहर को याद करने की
ज़रूरत नहीं है
वह महाखाली सेटिलमेंट से खुश है
जिसका तज़्किरा कोपेनहेगेन में दिए गए
एक लेक्चर में आता है
वह तैरकर भी
उस गारमेंट फैक्ट्री तक जा सकती है
जहां उसने मैट्रिक पास करने के बाद से
काम करना शुरू किया है
वह एक मुश्तरका वी सी आर पर
हफ़्ते में तीन फ़िल्में एक साथ देखती है
और हर पहली तारीख़ को
पूरी एक किलो हिल्सा मछली खरीदकर घर में लाती है
उसका बीमार बाप
आवारा भाई
या नादीदा दुश्मन नहीं है
वह सारी उम्र कुँआरी रह जाएगी
ऐसा नहीं है
एक लड़का है
स्कूल में पढ़ाता है
न्यूयार्क में ड्राइवर
या कराची में बावर्ची बनने का ख़्याल नहीं रखता
बांस की दीवारों
और टीन की छत वाले घर में
वह ख़ुश है
जब उसे कम्यूनिटी थिएटर में
एक किरदार के लिए मुंतखिब नहीं किया गया
उसे कोई अफ़सोस नहीं हुआ
उसी दिन उसे
पानी की फ़राहमी के दफ़्तर के सामने
मुजाहरा करने वाली लड़कियों के वफ्द में शामिल किया गया है
किसी ने उसे ख़ुश रहना नहीं सिखाया है
यह उसे आता है
उसे नहीं मालूम गुरबत की लकीर
उसके बदन पर कहाँ से गुजरती है
उसका ग़रीब मुल्क
दो बार आज़ाद हुआ है
वह दुनिया भर से ज़्यादा आज़ाद
और ज़्यादा ख़ुश है
:: :: ::
सफ़हा : पृष्ठ
तज़्किरा : जिक्र
मुश्तरका : साझे का
नादीदा : अनदेखा, अदृश्य
मुंतखिब : चुना जाना
फ़राहमी : संचय, पूर्ति
मुजाहरा : प्रदर्शन
वफ्द : प्रतिनिधिमंडल
गुरबत : गरीबी, कंगाली
shandar post...shukriya Manoj.
ReplyDeletewaah..
ReplyDeleteउसका गरीब मुल्क
दो बार आज़ाद हुआ है
वह दुनियाभर से ज्यादा आज़ाद
और ज्यादा खुश है ..
afjaal sahab to apne lagne lage...shandaaar kavita...
ReplyDeleteशुक्रिया मनोज भाई .... बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteग़ुरबत में आज़ादी और खुशी का कोई अर्थ नहीं है.
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