डेब्बी अन्तेबी की एक लघुकथा...
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कहानी कैसे पढ़ें : डेब्बी अन्तेबी
(अनुवाद : मनोज पटेल)
किसी उपन्यास का आखिरी अध्याय पढ़ने के लिए वह खुद को कभी नहीं तैयार कर पाती थी. उसे अंत से नफरत थी और कथानक की सीमाओं में बंधे रहने की बजाय वह कल्पना करती कि उपन्यास के पात्र उसके मन की ज़िंदगी जिए चले जा रहे हैं. एक दिन जब उसे अपने मर्ज के बारे में पता चला तो उसने एक नामालूम सी जगह पर एक मकान में खुद को बंद कर लिया और अपने शरीर को तेजी से गलते देखती रही. उसके शरीर के साथ उसके जूनून, उसके अरमान भी जाते रहे, और फिर आखिरकार वह नहीं रही. उसकी अंतिम इच्छा, जो उसके गायब होने की सफाई के तौर पर लिखी गई थी, यह थी कि उसके प्रियजन उसे उसी रूप में याद करें जैसी कि वह कैंसर होने के पहले थी. तब, जबकि उसका आखिरी अध्याय अभी नहीं शुरू हुआ था.
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अंत से नफ़रत की व्यंजना बड़ी गहरी है. यह लघु कथा उस "वह" के पास ले जाकर खड़ी कर देती है. पाठक की संवेदना को झकझोर देती है यह कथा.
ReplyDeleteवाह.....
ReplyDeleteएक दुखान्त कहानी....
अनु
ओह ..
ReplyDeleteohh...:(
ReplyDeletebaap re...
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी लघुकथा.केंसर कि पीड़ा और मरणोपरांत याद किये जाने की इच्छा इसे और भी प्रभ्व्शाली बनाती है.
ReplyDeleteकरुण रस.
ReplyDeleteTouching..
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