आज प्रस्तुत है पाकिस्तानी कवि अफ़ज़ाल अहमद सैयद की किताब 'रोकोको और दूसरी दुनियाएं' से यह कविता...
रोकोको और दूसरी दुनियाएँ : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल)
इलियास कानेती ने लिखा
गोया जानिबदार था
माहा मलबूस और
बालकनी पर माहाएं बनाने वाला
उसकी रोकोको दुनिया
तीन मई को मैड्रिड की एक तारीक गली में ख़त्म हो गई
उसने फ़रामोश कर दिया
छतरियां लेकर चलने वाली लड़कियां उसके कैनवस और बिस्तर की
ज़ीनत होती थीं
उसका कैनवस जमीन पर रखी एक लालटेन से
रोशन है
सिपाही जिनके चेहरे नजर नहीं आ रहे
बेमुज़ाहमत शहरियों पर गोली चलाते हैं
हर शख्स अपने अंदाज़ में मौत का सामना करता है
अपना सीना तान रखा है
बाद में आने वाले मुसव्विर
इस मौज़ू को दोहराते रहेंगे
उसकी आखिरी तस्वीर की असल
किसी इंक़लाब में मारी गई होगी
बरसबील तज़्किरा
गोया ने नेपोलियन के खिलाफ
स्पेन के बाग़ियों की हिमायत की थी
( गोया : स्पेन का मारूफ़ मुसव्विर
रोकोको : अठाहरवीं सदी में यूरोप भर में मक़बूल होने वाली मुसव्वरी की तहरीक जिसमें नहायनां नज़ाकत के साथ उमरा के तबके के फ़ुर्सत के मशाग़ल की अक्कासी की जाती थी )
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जानिबदार = तरफदार
बरहना = नग्न
मलबूस = लिबास में
फ़रामोश = विस्मृत
ज़ीनत = शोभा
मुसव्विर = तस्वीर बनाने वाले
बेमुज़ाहमत = विरोध न करने वाले
मौज़ू = विषय
बरसबील तज़्किरा = चर्चा के तौर पर जिक्र, चलते-चलते
मारूफ़ = प्रसिद्ध
मुसव्विर = तस्वीर बनाने वाला, पेंटर
तहरीक = आंदोलन
उमरा तबका = अमीर वर्ग
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