लोला हास्किंस की एक कविता...
मुहब्बत : लोला हास्किंस
(अनुवाद : मनोज पटेल)
वह पहन कर देखती है उसे, किसी कपड़े की तरह
और तय करती है कि वह ठीक नहीं आ रही उस पर,
फिर उसे शुरू करती है उतारना
उतर आती है उसकी चमड़ी भी.
और तय करती है कि वह ठीक नहीं आ रही उस पर,
फिर उसे शुरू करती है उतारना
उतर आती है उसकी चमड़ी भी.
:: :: ::
आह.....
ReplyDelete:-(
अनु
पहनने और उतरने में इतना फर्क ? गज़ब !!
ReplyDeleteआभार ! सुन्दर अनुवाद !
.... amazing thought....
ReplyDeleteक्या रूपक बांधा है ! मोहब्बत का मामला ही ऐसा है, वह चमड़ी से चिपक जाती है.
ReplyDeleteaah!
ReplyDeleteवाह !! सिर्फ चार पंक्तियों में इतनी गहरी बात। बहुत सुंदर अनुवाद!
ReplyDeleteवाह !! सिर्फ चार पंक्तियों में इतनी गहरी बात। बहुत सुंदर अनुवाद!
ReplyDeleteजी उतरते हुए यह कष्टदायक है . पर जब चढ़ता है पता ही नही चलता .
ReplyDelete?? couldn't understand ....
ReplyDeleteरिश्तों को पहनने उतारने की प्रक्रिया गीता में वर्णित पुराने वस्त्र उतारकर नए वस्त्र धारण करने वाली आत्मा की याद दिलाती है.
ReplyDeleteबहुत ही पारदर्शी रचना.
ReplyDeleteHamesha hee satik samay ko apane anuwaad men pakad lete hain aap.
ReplyDeleteHamesha kee tarah samay ko sateek tarah se apane anuwad men pakad lete hai aap.
ReplyDelete