Thursday, November 8, 2012

लोला हास्किंस : मुहब्बत

लोला हास्किंस की एक कविता...   



मुहब्बत : लोला हास्किंस 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

वह पहन कर देखती है उसे, किसी कपड़े की तरह 
और तय करती है कि वह ठीक नहीं आ रही उस पर, 
फिर उसे शुरू करती है उतारना 
उतर आती है उसकी चमड़ी भी.
            :: :: :: 

13 comments:

  1. पहनने और उतरने में इतना फर्क ? गज़ब !!
    आभार ! सुन्दर अनुवाद !

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  2. क्या रूपक बांधा है ! मोहब्बत का मामला ही ऐसा है, वह चमड़ी से चिपक जाती है.

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  3. वाह !! सिर्फ चार पंक्तियों में इतनी गहरी बात। बहुत सुंदर अनुवाद!

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  4. वाह !! सिर्फ चार पंक्तियों में इतनी गहरी बात। बहुत सुंदर अनुवाद!

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  5. जी उतरते हुए यह कष्टदायक है . पर जब चढ़ता है पता ही नही चलता .

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  6. रिश्तों को पहनने उतारने की प्रक्रिया गीता में वर्णित पुराने वस्त्र उतारकर नए वस्त्र धारण करने वाली आत्मा की याद दिलाती है.

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  7. बहुत ही पारदर्शी रचना.

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  8. Hamesha hee satik samay ko apane anuwaad men pakad lete hain aap.

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  9. Hamesha kee tarah samay ko sateek tarah se apane anuwad men pakad lete hai aap.

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