पिछले साल अगस्त में अन्ना हजारे के आन्दोलन पर कई महत्वपूर्ण सवालों को उठाते हुए अरुंधती राय ने एक लेख लिखा था. तबसे गंगा में काफी पानी बह चुका है और अन्ना हजारे तथा अरविन्द केजरीवाल के रास्ते भी जुदा हो चुके हैं. अरविन्द केजरीवाल ने अपनी 'आम आदमी' पार्टी बना ली है और पिछले कुछ दिनों से उन्होंने ताकतवर नेताओं तथा उद्योगपतियों पर हमला बोल रखा है. इन्हीं सब मुद्दों पर चर्चा करता हुआ सबा नकवी द्वारा ई मेल के माध्यम से लिया गया अरुंधती राय का एक साक्षात्कार 'आउटलुक' में प्रकाशित हुआ है. प्रस्तुत है कुछ ख़ास अंश...
चुनाव के माध्यम से बदलाव की कोशिश करने वाले लोग चुनाव से खुद ही बदल जाते हैं : अरुंधती राय
(अनुवाद/ प्रस्तुति : मनोज पटेल)
भ्रष्टाचार के ये खुलासे मजेदार घटनाएं हैं. उनके बारे में एक अच्छी बात यह है कि वे हमें यह समझने की एक अंतर्दृष्टि मुहैया कराते हैं कि सत्ता के तंत्र कैसे जुड़ते और गुंथते हैं. चिंताजनक बात यह है कि हर घोटाला पिछले वाले को धकेल कर रास्ते से हटा देता है और ज़िंदगी चलती रहती है. यदि इनसे हमें एक अतिरिक्त-प्रचंड चुनाव अभियान ही मिल पाया तो यह उस सीमा को ही बढ़ा सकता है जो हमारे शासकों की समझ से हम बर्दाश्त कर सकते हैं, या जितना बर्दाश्त करने के लिए हमें बहलाया जा सकता है. कुछ लाख करोड़ से कम के घोटाले हमारी तवज्जो ही नहीं पाएंगे. चुनावी मौसम में राजनीतिक दलों का एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार का आरोप या कंपनियों से संदिग्ध सौदे करने का आरोप नया नहीं है. एनरान के खिलाफ भाजपा और शिवसेना की मुहिम याद है? आडवाणी ने इसे 'उदारीकरण के माध्यम से लूट' कहा था. महाराष्ट्र में वह चुनाव वे जीत गए थे, एनरान और कांग्रेस सरकार के बीच हुआ समझौता रद्द कर दिया था और फिर एक उससे भी खराब समझौते पर दस्तखत कर दिए थे.
यह तथ्य भी चिंताजनक है कि इनमें से कुछ 'खुलासे', अपने विरोधियों को पछाड़ने के मकसद से एक-दूसरे का राजफाश कर रहे नेताओं और कारोबारी घरानों द्वारा किए गए रणनीतिक लीक हैं. जिनके खुलासे किए गए --सलमान खुर्शीद, राबर्ट वाड्रा, गडकरी-- उन्हें उनकी पार्टियों ने और भी मजबूती से गले लगा लिया है. नेता इस सच्चाई से अवगत हैं कि भ्रष्टाचार के आरोपी या दोषी होने से हमेशा उनकी लोकप्रियता में फर्क नहीं पड़ता. अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों के बावजूद मायावती, जयललिता, जगमोहन रेड्डी अत्यंत लोकप्रिय नेता बने हुए हैं. जहां आम लोग भ्रष्टाचार से व्यथित हैं वहीं यह भी लगता है कि मतदान का समय आने पर उनकी गणित अधिक चतुर, अधिक जटिल हो जाती है. जरूरी नहीं कि वे अच्छे लोगों को वोट दें.
अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने अहम भूमिका निभाकर मीडिया के लिए मुद्दे को बिसराना कठिन बना दिया है. लेकिन खुलासों की अचानक बाढ़ का सम्बन्ध नेताओं के विभिन्न गठबन्धनों, बड़े निगमों और उनके स्वामित्व वाले मीडिया घरानों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा से भी है. मसलन मुझे इन अटकलों में कुछ सच्चाई नजर आती है कि गडकरी के खुलासे का सम्बन्ध नरेंद्र मोदी द्वारा खुद को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत करने और विरोधी गुटों को रास्ते से हटाने से है. यह भ्रष्टाचार और बैलेंसशीटों का ज़माना है -खून पुराना पड़ चुका है. कितना अजीब है जब आप टिप्पणीकारों को अक्सर यह कहते हुए पाते हैं कि मुस्लिमों के खिलाफ संघ परिवार के 2002 के गुजरात जनसंहार से हटकर अब आगे देखने का वक़्त आ गया है. दिल्ली में कांग्रेस पार्टी की अगुआई वाले 84 के सिखों के नरसंहार को भी भुला दिया गया है. यदि वे आर्थिक रूप से भ्रष्ट न हों तो क्या हत्यारे और फासिस्ट ठीक हैं? केजरीवाल और प्रशांत भूषण की अगुआई में चलाया जा रहा नया भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन जो कर रहा है, वह जरूरी काम है जो कि वास्तव में मीडिया और जांच एजेंसियों द्वारा किया जाना चाहिए था और जिसमें आम जनता बाहर से व्यवस्था पर दबाव बना रही होती. मुझे भरोसा नहीं है कि चुनाव लड़ने जा रही एक नई राजनीतिक पार्टी कोई सही तरीका है. इस बात का एक कारण है कि क्यों बड़े राजनीतिक दल सबको खुशी-खुशी चुनाव लड़ने का न्योता देते हैं. वे जानते हैं कि इस इलाके में उनकी चलती है. वे नए खिलाड़ियों को अपने सर्कस के जोकरों में बदल देना चाहते हैं.
इस रास्ते पर बहुत से लोग पहले भी चल चुके हैं. उदाहरण के लिए यदि केजरीवाल की पार्टी कुछ ही सीटें जीतती है, या एक भी सीट नहीं जीतती, तो इसका क्या मतलब होगा? कि भारतीय जनता का बहुलांश भ्रष्टाचार समर्थक है?
भ्रष्टाचार शक्तिशाली और शक्तिहीन लोगों के बीच बढ़ती खाई का एक लक्षण है. इसे संबोधित किया जाना जरूरी है. नैतिक पुलिसिंग या वास्तविक पुलिसिंग कोई समाधान नहीं हो सकती. उससे क्या हासिल हो सकता है? एक अन्यायपूर्ण व्यवस्था को अधिक साफ-सुथरा और अधिक कुशल बनाने का? नुक्ता यह है कि हम भ्रष्टाचार को कैसे परिभाषित करते हैं? यदि कोई औद्योगिक घराना किसी कोयला क्षेत्र का ठेका पाने के लिए एक हजार करोड़ रूपए रिश्वत देता है तो यह भ्रष्टाचार है. यदि कोई मतदाता किसी नेता विशेष को अपना वोट देने के लिए एक हजार रूपए लेता है तो यह भी भ्रष्टाचार है. यदि समोसे का एक खोमचे वाला फुटपाथ पर थोड़ी सी जगह पाने के लिए सिपाही को सौ रूपए की घूस देता है तो यह भी भ्रष्टाचार है. मगर ये सभी चीजें क्या एक ही हैं? मैं यह नहीं कह रही कि भ्रष्टाचार पर नजर रखने के लिए कोई शिकायत निवारण प्रणाली ही नहीं होनी चाहिए, बिल्कुल होनी चाहिए. लेकिन उससे असली समस्या का समाधान नहीं होगा क्योंकि बड़े खिलाड़ी अपनी करतूतें छिपाने में और बेहतर ही हो जाएंगे.
क्या भ्रष्टाचार के संकीर्ण और भंगुर लेंस से हम जाति और वर्ग की राजनीति को समझ और संबोधित कर सकते हैं? क्या उससे हम नस्ल, लिंग, धार्मिक उग्रराष्ट्रीयता, अपने सम्पूर्ण राजनीतिक इतिहास, पर्यावरण के विनाश की मौजूदा प्रक्रिया और भारत के इंजन को चलाने वाली या नहीं चलाने वाली अन्य अनगिनत चीजों को समझ सकते हैं?
बदलाव आएगा. उसे आना ही है. लेकिन इस बात में मुझे संदेह है कि वह किसी ऎसी राजनीतिक पार्टी के लाए आएगा जो चुनाव जीतकर व्यवस्था को बदलने की उम्मीद कर रही हो. क्योंकि जिन लोगों ने चुनावों के माध्यम से व्यवस्था को बदलने की कोशिश की थी उनका अंजाम यह हुआ है कि चुनावों ने खुद उन्हें ही बदल दिया है --देखिए कि कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ क्या हुआ. मुझे लगता है कि ग्रामीण इलाकों में हो रहे विद्रोह शहरों की ओर बढ़ेंगे. जरूरी नहीं कि किसी एक बैनर के तहत या किसी व्यवस्थित या क्रांतिकारी तरीके से ही. यह सुन्दर तो नहीं होगा, मगर यह अपरिहार्य है.
ये निगम और नेता यदि निष्ठापूर्वक ईमानदार हो जाएं तो भी किसी देश के लिए ऎसी स्थिति में होना बेतुका ही होगा. जब तक बड़े निगमों पर अंकुश नहीं लगाया जाता और क़ानून द्वारा उन्हें सीमित नहीं कर दिया जाता, जब तक उनके हाथों से ऎसी बेहिसाब ताकत (जिसमें राजनीति और नीतिनिर्धारण, न्याय, चुनाव और ख़बरों को खरीदने की ताकत शामिल है) का नियंत्रण वापस नहीं ले लिया जाता, जब तक कारोबार के क्रास-ओनरशिप का नियमन नहीं होता, जब तक मीडिया को बड़े व्यवसायों के पूर्ण नियंत्रण से मुक्त नहीं करा लिया जाता, हमारे जहाज का डूबना तय है. कितना भी शोर, कितना भी भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन, कितना भी चुनाव इसे रोक नहीं सकता.
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(आउटलुक से साभार)
फिलहाल तो जहाज डूबता ही लगता है। सब कुछ निगमों के और अंततः अमेरिका के हवाले किया जा रहा है। सेना तक में ऐसा करने की कोशिशें हैं। अरुंधती का यह लेख पढ़वाने के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteमैं इस स्पष्ट दृष्टि और दो टूक विचार का कायल हूँ .
Deleteबेहद महत्वपूर्ण साक्षात्कार के अंश हैं मनोज जी! आपको धन्यवाद जैसा नन्हा सा शब्द कहने से आपके इस बड़े काम की तौहीन सी होगी.., बस, ह्रदय से पल-पल आपके लिए अनंत शुभकामनायें निकलती हैं...!!
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट
ReplyDeleteबिलकुल ..अरुंधती का कहना तो हमेशा की तरह ही कड़वा , लेकिन सच्चा ..| और अनुवाद भी ..|
ReplyDeleteइस महत्वपूर्ण लेख के लिए धन्यवाद..
ReplyDeleteहत्यारे फासिस्ट ठग, व्यभिचारिणी जमात |
ReplyDeleteभ्रष्टाचारी व्यवस्था, खुराफात अभिजात |
खुराफात अभिजात, भूल दंगे से आगे |
देश गर्त में जात, मरें अब सभी अभागे |
देख देख श्मशान, अनीती से नहिं मारें |
शासन करते रहे, सदा से ही हत्यारे ||
Chunavladne wale bhrasht ho jayenge aur badlav ganvon se shehron ki taraf ayega....ye nimn poonjivadi vichar october kranti ki jad par kutharaghat karte hain...aur krantikari prakriya ki nasamajhi se paida hue hain...kejriwal anna ke varg charitra ka vishleshan karne ki jagah...ek abstract sociological comment diya gaya hai...
ReplyDeleteअपने जो लेख दिया वो बेहद प्रसंनीय है ..
ReplyDeleteकितना मार्मिक यथार्त है!
ReplyDeleteकड़वी हकीकत ....मगर दुखद स्थिति !
ReplyDeletearudhati ji n to annaji ko sahi najariye se dekh paati hain , nhi arvind kejariwal ji ko, aascharya hai unhon ne kaise medha patekar ka saath de diye hamare desh ke har ultra buddhijeevi ki yahi niyati hai, jo n to koi parivartan kari aandolan khada kar sakta hai, n hi kisi janvaadi aandolan ka sakriya samarthan kar sakta hai , abhi anna ya arvind ji ki aalochna aur taang khichayee ka vakt nahin hai. jab arvind jaan hatheli par rakhkar naye-naye khulase kar rahe the tab arundhati ji kahan thin. arundhati ji , is desh ki aam janta se , sadharan hindustaani se pahle toot kar pyar karna sikhye tab ehsaas hoga ki uske khoon ke aansu poochne walon ka parichay kya hota hai? aaj anna ya arvind ji yahi khoon ke aansun pochne ka kaam kar rahe hain . han, kal kaun bhast ho jaay kaun jaanta hai? bharat prasad. shillong, meghalaya. 09863076138
ReplyDeleteSahi kaha aapne is desh ke budhijeevon ko sarthakta sirf aalochna karne mein nazar aati hai....ghalib ka sher hai
DeleteNuktacheen to hazar milte hai
Kash mil jay nuktshanas koi....
Jinhe ye pata hai ki galat kya hai...ek baar ye bhee batayen ki sahi kya hai....bina satta mein aaye aap mulbhoot parivartan kaise la sakte hain. ?.Arundhatiji hi khulass karen
Sahi kaha aapne is desh ke budhijeevon ko sarthakta sirf aalochna karne mein nazar aati hai....ghalib ka sher hai
DeleteNuktacheen to hazar milte hai
Kash mil jay nuktshanas koi....
Jinhe ye pata hai ki galat kya hai...ek baar ye bhee batayen ki sahi kya hai....bina satta mein aaye aap mulbhoot parivartan kaise la sakte hain. ?.Arundhatiji hi khulass karen
arudhati ji n to annaji ko sahi najariye se dekh paati hain , nhi arvind kejariwal ji ko, aascharya hai unhon ne kaise medha patekar ka saath de diye hamare desh ke har ultra buddhijeevi ki yahi niyati hai, jo n to koi parivartan kari aandolan khada kar sakta hai, n hi kisi janvaadi aandolan ka sakriya samarthan kar sakta hai , abhi anna ya arvind ji ki aalochna aur taang khichayee ka vakt nahin hai. jab arvind jaan hatheli par rakhkar naye-naye khulase kar rahe the tab arundhati ji kahan thin. arundhati ji , is desh ki aam janta se , sadharan hindustaani se pahle toot kar pyar karna sikhye tab ehsaas hoga ki uske khoon ke aansu poochne walon ka parichay kya hota hai? aaj anna ya arvind ji yahi khoon ke aansun pochne ka kaam kar rahe hain . han, kal kaun bhast ho jaay kaun jaanta hai? bharat prasad. shillong, meghalaya. 09863076138
ReplyDeletegehri pardarshi dishabodhak drishti rakhne wali arundhati rai ko naman aur aapko ise ham tak pahunchane ke liye sadhuwad
ReplyDeleteजहाज का डूबना दुखद होगा ।
ReplyDeleteअद्भुत और सुन्दर रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteमेरी नयी पोस्ट "10 रुपये का नोट नहीं , अब 10 रुपये के सिक्के " को भी एक बार अवश्य पढ़े । धन्यवाद
मेरा ब्लॉग पता है :- harshprachar.blogspot.com
COMMUNIST PARTIES WERE QUOTED TO SIGNIFY FAILURE OF ELECTORAL POLITICS BUT PARTIES ARE MUCH MORE THAN THIS.COMMUNIST PARTY IS A PART & PARCEL OF CHANGE & TRANSFORMATION AND SO IS THE ELECTORAL PROCESS.COMMUNIST PARTIES-THERE ARE MANY- SHOULD BE VIEWED AS AN APPARATUS OF CLASS STRUGGLE AND BE CRITICISED FOR THAT.
ReplyDeleteअरुंधती जैसे पागलों को अपने चिट्ठो में जगह देने की कोई जगह नहीं दी जानी चाहिए। यह वही औरत है जो जम्मू कश्मीर को पाकिस्तानियों को देने कासमर्थन करती है, धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिन्दुओ पर हमला करती है। ऐसे पागलो की बाटी महेज भ्रम पैदा करती है और कुछ नहीं। मैं लोगो को इसके पागलपन का जैज़ा लेने के लिए इसके कश्मीर या हिन्दू धर्म पर लिखे लेखो को पढना चाहिए।
ReplyDeleteबहुत शानदार लेख ! अरुंधती की पैनी नजर और बेबाक विश्लेषण निश्चित ही सराहनीय है!बहुत बहुत अबार मनोज जी !
ReplyDeleteसच कड़वा होता हैं, येही अरुंधती करती ही और किया है (सच का इज़हार) अरुंधती को साधुवाद और लेखक को शुक्रिया
ReplyDeleteप्रिय ब्लॉगर मित्र,
ReplyDeleteहमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।
शुभकामनाओं सहित,
ITB टीम
पुनश्च:
1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।
2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला।
[यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।
jahaj ka dubna tay he isn't it very much pessimistic?
ReplyDeletei m not a gr8 philosopher but there are many on that indian ship who will find the means and ways to rescue the gr8 ship.
jahaj ka dubna tay he! isn't it very much pessimistic?
ReplyDeletei m not a gr8 philosopher but there are many on that indian ship who will find the means and ways to rescue the gr8 indin ship.
कम्यूनिष्ट विचारधारा अब एक शगल है, फैशन है जो किसी लेखक को बुद्धिजीवी और अधिक अक्लमन्द कहलाने के लिये अपरिहार्य सी लगती है और अरुन्धती राँय उसी सोच के तहत अनर्गल सा भी कह जाती हैं । प्रस्तुत आलेख मे पहले तो यह स्पष्ट ही नही होता कि उनके आलेख का अभिप्राय क्या है ; वे केजरीवाल के खिलाफ़ हैं या मीडिया के । वे स्वयम् भी प्रकाशन वर्ग से ताल्लुक रखती है । यदि मीडिया किन्ही घरानों के गुलाम है तो अरुन्धती राँय को किसने रोका है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ़ न लिखें ।
ReplyDelete@RDS jee - एक मार्क्सवादी और वज्ञानिक द्रष्टिकोण रखने वाला इंसान कभी भी कोई ऐसी बात नहीं कहता जो की तथ्यहीन या सिर्फ प्रशंशा पाने के लिए हो
ReplyDeleteअरुंधती की कही हर बात अपने आप में सत्य है ,,,आप मोदी और गडकरी वाला प्रकरण ही विचार कर लीजिये,
रही बात अरविन्द केजरीवाल और मीडिया की, तो लेख से स्पष्ट है की दोनों व्यवस्था सुधरने की बजाय सिर्फ अपने अपने हितो को साध रहे है।
मैंने भी कुछ लिखा है अरविन्द केजरीवाल और उनके खुलासो के ऊपर ,,,आपकी आलोचना का इन्तेजार रहेगा.
http://vishvnathdobhal.blogspot.in/2012/12/blog-post_7.html
धन्यवाद