Saturday, January 1, 2011

सुरजीत पातर की कविताएँ

(सभी दोस्तों को नए साल की शुभकामनाएं ! इस मौके पर आज मोनिका कुमार के सौजन्य से पंजाबी के मशहूर कवि सुरजीत पातर की कविताएँ. आपके कई कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. "अँधेरे में सुलगती वर्णमाला" के लिए 1993 में साहित्य अकादमी पुरस्कार. 2009 में "लफ़्ज़ों की दरगाह" के लिए सरस्वती सम्मान. शहीद ऊधम सिंह के जीवन पर बनी एक फिल्म के लिए संवाद लिखने के साथ-साथ विश्व साहित्य से लोर्का, ब्रेष्ट, और पाब्लो नेरुदा के पंजाबी में अनुवाद भी. अनुवादक मोनिका कुमार अंग्रेजी की प्राध्यापक हैं. कविता और दर्शन में गहरी दिलचस्पी. पातर की कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया है. किताब शीघ्र प्रकाश्य. - पढ़ते पढ़ते )  



कविता ने मनुष्य जीवन के संघर्षों की कहानी बहुत कलात्मक ढंग से प्रस्तुत की है, ऐसे हमारे पास बहुत नाम है हर भाषा में, हर देश में.
असल में उन्ही को इतिहास ने महान कहा है , माना है जिनके शब्दों में साधारण व्यक्ति के संघर्षों ने अभिव्यक्ति पाई है.
कवि ने उन सोये शब्दों को जगाया , न मिले तो पैदा किये , कभी तलिस्म से काबू किया होगा, कभी शब्द खुद भी खिंचे आये होंगे पंक्ति में सजने , कौन जाने !
पातर जी की आवाज़ में हमारे बहुत से संघर्षों, बहुत सी भावनाओं ने वाणी पायी है, उन्होंने हमारे उन अनकहे अहसासात को कविता का रूप दिया जिन्हें समझने कहने की हमारे भीतर तड़प थी, हम पंक्ति पे वाह वाह करते है लेकिन उस पंक्ति को ( उससे भी पहले अपने अनुभव एहसास को समझना ) लिखना स्वभावतः ही कठिन रहता होगा , कविता के पाठक इसको जरुर समझते होंगे.
पातर जी की यह पंक्तियाँ, कला, कलाकार और कला शास्त्र के रिश्ते को क्या खूब बयाँ करती हैं :

यह पंडित राग के तो सदियों बाद आते है
मेरी सिसकी ही पहले मेरी बांसुरी की सांस बनती. 

पेश हैं उनकी कवितायेँ - मोनिका  

1. 
मेडलिन शहर में कवि सम्मलेन के दिनों
उब्रेरू पार्क में
एक बच्चा आया मेरे पास साइकिल पर 
मेरी पगड़ी और दाढ़ी देख पूछने लगा
" क्या तुम जादूगर हो ? "
मैं हंसने लगा
कहने वाला था 'नहीं' पर अचानक कहा " हाँ, मैं जादूगर हूँ"
मैं आसमान से तारे तोड़ किशोरियों के लिए हार बना सकता हूँ
मैं ज़ख्मों को बदल सकता हूँ फूलों में 
दरख्तों को साज़ बना सकता हूँ
और हवा को साज़ नवाज़

सचमुच ! बच्चे ने कहा
तो फिर तुम मेरी साइकिल को घोड़ा बना दो
नहीं ! मैं बच्चों का नहीं बड़ों का जादूगर हूँ
तो फिर महल बना दो हमारे घर को 

नहीं ! सच बात तो यह है के मैं चीज़ों का जादूगर नहीं 
 जादूगर हूँ शब्दों का

ओह ! अब समझा , तुम कवि हो !

बच्चा साइकिल चलाता हाथ हिलाता
चला गया पार्क से बाहर 
और दाखिल हो गया मेरी कविता में 

2. 
वह मुझको राग से वैराग तक जानता है
मेरी आवाज़ का रंग भी पहचानता है
जरा सिसकी जो लूँ तो काँप जाता है
अभी वह सिर्फ मेरी हँसी को पहचानता है
मेरा मेहरम मेरे इतिहास की हर छाप जाने
मेरा मालिक सिर्फ जुगराफिया ही जानता है
उसको कह दो के किसी भी मिट्टी में उग के खिल जाये
वह यूँ ही खाक क्यूँ रस्तों की दिन भर छानता है

3. 
जब दो दिलों को जोडती वह तार टूटी
साजिन्दे पूछें साज़ से कि नगमा किधर गया
पलकें भी खूब लम्बी, काजल भी खूब है
वह सलोने नैनों का पर सपना किधर गया
पातर तेरे कलाम में अब पुख्तगी तो है
पंक्तियों में थिरकता पर वह पारा किधर गया 

4.
मिली अग्न में अग्न , जल में जल, हवा में हवा
कि बिछड़े सारे मिले , मैं अभी उड़ान में हूँ
छुपा के रखता हूँ मैं तुझसे ताज़ी नज्में
कहीं तुम जान के रो न दो मैं किस जहान में हूँ 

5. 
अल्पसंख्यक नहीं
मैं दुनिया के बहुमत से वास्ता रखता हूँ
बहुमत
जो उदास है
खामोश है
प्यासा है इतने चश्मो के बावजूद  

6.
गाँव में बैलगाड़ियाँ दौड़े चले हुकुम सरदारी
शहर में आ के बन जाते हैं बस की एक सवारी
मन मोया तो सोग न होया, न रोये रूह बारी
तन बिखरा तो यार मेरे ने कूक गज़ब की मारी

7. 
जिस तरह तुम गिर जाती हो मेरे आगोश में
सारी की सारी
पर्वतों से पिघलती नदी की तरह
जां बरसाती बारिश जैसे

ढलता है ज्यों तेरा आँचल किनारे पर 
तेरे गहने अलंकारों में
तेरा नाम रेत पर
तेरा चेहरा पत्थरों पर 

उस तरह मैं क्यूँ नहीं

बचाता रहता हूँ
अपना ताज
अपनी तलवार
अपना जाबख्तर, अपना नाम
अपना मुखौटा
अपने पुराने अहदनामे  

तुम्हारी लहरें छूती हैं मेरे चेहरे को
तो सँभालने लगता हूँ अपना ताज
तुम्हारी लहरें जब डुबोने लगती हैं मेरा चेहरा
तो मुझे याद आता है, किनारे पर रक्खा अपना नाम और मुखौटा

तुम्हारे भंवर घेरने लगते हैं मेरी काया को
तो सँभालने लगता हूँ अपनी तलवार

तुम पूछती हो यह क्या चुभता है
पत्थर जैसा तुम्हारे पानियों में ? 

8. 
मरुस्थल से भाग आया मैं अपनी जान बचा के
पर वहां रह गयीं थीं जो मेरी खातिर राहें
मैं सागर के तट पर बैठा कोरे कागज़ ले के
उधर मरुस्थल में खोजे मुझे मेरी कवितायेँ
क्या कवियों का आना जाना क्या मस्ती संग चलना
ठुमक ठुमक जब संग न आयें कोरी कंवारी कवितायेँ 

9. 
मैं सुनूं जो रात खामोश को 
मेरे दिल में कोई दुआ करे
यह ज़मीन हो सुरमई
यह दरख्त हों हरे भरे

सब परिंदे ही 
यहाँ से उड़ गए 
मेघ आते हुए मुड़ गए
यहाँ करते है दरख़्त भी आजकल
कहीं और जाने के मशवरे

न तो कुर्सियों को न तख़्त को
न सलीब सख्त कुरख्त को
यह मज़ाक करें दरख्त को
बड़े समझदार है मसखरे

अब चीर होते हुए चुप रहे
अब आरियों को भी छाया दे
कहता था जो कि दरख्त हूँ
अब वक़्त आया है सिद्ध करे

वह बना रहें है इमारतें
हम लिख रहे है इबारतें
ताकि पत्थरों के वजूद में
कोई आत्मा भी रहा करे

कौन साथ यहाँ है हमेशा तक
एक तापमान विशेष तक
जुड़े 
रहें तत्वों के साथ तत्व 
फिर टूट के हो जाए परे

कुछ लोग आये थे बेसुरे
मेरी तोड़ तन्द्रा चले गए
अब फिर से राग पिरो रहा
और चुन रहा सुर बिखरे

चलो सूरज चलो धरती
फिर सुन्न समाधि में लौट 
चलें   
कल रात हुए थे रात भर
यही तारों के बीच तज्करे

10. 
मेरी माँ को मेरी कविता समझ न आई
बेशक वोह मेरी माँ बोली में लिखी थी

वो तो केवल इतना समझी 
बेटे की रूह को दुःख है कोई

पर इसका दुःख मेरे होते आया कहाँ से

कुछ और गौर से देखी
मेरी अनपढ़ माँ ने मेरी कविता

देखो लोगों  
कोख के जाए
माँ को छोड़
दुःख कागज़ को बताते है

मेरी माँ ने कागज़ उठा सीने से लगाया
शायद ऐसे ही कुछ
करीब हो मेरा जाया

11.
इसका मतलब तुम यह  समझो
कि मिट्टी से मुझे प्यार नहीं
गर मैं कहूँ कि आज यह तपती है
गर कहूँ कि पैर जलते हैं
वह भी लेखक हैं तपती रेत पे जो
रोज़ लिखते हैं हर्फ़ चापों के
वह भी पाठक हैं सर्द रात में जो
तारों की किताब पढ़ते हैं


(अनुवाद : मोनिका कुमार)
संपर्क : turtle.walks@gmail.com 
Surjit Patar 

10 comments:

  1. अनुवाद के पूर्व मोनिका जी द्वारा लिखी गयी भूमिका सिर्फ पातर जी के कविता के अनुवाद की भूमिका नहीं है अपितु इस बात की सुन्दरतम अभिव्यक्ति है कि एक कविता का सृजन कैसे होता है.सृजन पूर्व कवि किन मानसिक दशाओं से गुजरता है.जैसे;

    "यह पंडित राग के तो सदियों बाद आते हैं
    मेरी सिसकी ही पहले मेरी बांसुरी की साँस बनती"

    मोनिका जी द्वारा अनुवाद पूर्व लिखी गयी भूमिका ; अनुवादक,अनुवाद और कवि के रिश्ते को बहुत गहराई से बयाँ करती है वैसे ही जैसे मोनिका जी ने लिखा है कि "पातर जी कि यह पंक्तियाँ ,कला,कलाकार और कलाशास्त्र के रिश्ते को क्या खूब बयाँ करती है."........... "जिनके शब्दों में साधारण व्यक्ति के संघर्षों ने अभिव्यक्ति पाई है" पातर जी के एहसास और संवेदनाओ को अनुवाद में भी सुन्दरतम रूप से अभिव्यक्त किया गया है.शुक्रिया मोनिका जी

    ReplyDelete
  2. mian tumhen kaafi arse se janta hun monika...aur ab lagta hai shayad patar ji ko bhi...chahe tumne hi mujhe unse parichit karvaya.. par fir bhi lagta hai... ki ek hi path ke pathik jaante hain ek dusre ko man se..kalam se. aaj unka zara sa bhi zikr khinchta hai mujhe har akhbaar har rasaale ke corner par likhe unke ek kalaam ek alfaaz tak... bhaasha se pare ek ehsaas jo har bhahsaa mein meetha lagta hai..

    ReplyDelete
  3. इन कविताओं को इतनी बार पढ़ा... और हर बार आनंदित हुए... आँखें नम हुई... शब्दों ने नए अर्थ में अवतार लिया...
    वस्तुतः चमत्कृत करती कवितायेँ है!
    इन्हें हम तक पहुँचाने के लिए पढ़ते पढ़ते का हार्दिक आभार!

    ReplyDelete
  4. apne desh me bhi bahut dam hai...

    sheshnath

    ReplyDelete
  5. Dear Friend Monika, now i will call u "shabdon ki jadugar"...from very begining i know u have spark..something different from others...after reading you hindi transfirmation of patar ji's poetry..."it is confirmed that you are a person who can give life to other, your art of living is always appealing"...love you ur poetry and your every thought..rani

    ReplyDelete
  6. "ओह तो तुम कवि हो". भूमिका, कविताओं के चयन, और श्रेष्ठ अनुवाद के लिए मोनिका को बधाई, और आभार मनोज के प्रति, इन्हें पढवाने के लिए.

    ReplyDelete
  7. Amazing poems..thanks a lot Manoj ji for bringing such great poems to us.

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...