Monday, January 10, 2011

नाओमी शिहाब न्ये की दो कविताएँ

जो नहीं बदलता उसे नाम देने की कोशिश 
रोजेल्वा के मुताबिक़ सिर्फ रेल की पटरी ही है 
ऎसी इकलौती चीज जो नहीं बदलती. 
पक्का यकीन है उसे.
बदल जाती है रेलगाड़ी 
या अगल-बगल उग आई बेतरतीब खर-पतवार 
नहीं बदलती तो पटरी.
मैनें तीन साल तक गौर किया एक पटरी पर,
बताती है वह,
और यह मुड़ी नहीं, टूटी नहीं, बढ़ी नहीं.

पीटर को शक है कुछ. देखी थी उसने मेक्सिको में सबीना के पास 
एक निष्प्रयोज्य पटरी, उसका कहना है कि 
बदली हुई होती है  
बिना रेलगाड़ी के कोई पटरी.
चमक नहीं बची थी धातु में.
लकड़ी में दरारें पड़ गई थीं और 
खुल गए थे कुछ जोड़. 

मोराल्स स्ट्रीट पर हर मंगलवार 
सैकड़ों मुर्गों की गर्दनें तोड़ते हैं कसाई.
तम्बू में रह रही विधवा 
दालचीनी से चटपटा करती है अपना सूप.
उससे पूछो क्या नहीं बदलता.

विस्फोट होता है सितारों में.
यूं मुड़े होते हैं गुलाब मानो आग हो पंखुड़ियों में. 
झाड़ी के नीचे दफ़न है वह बिल्ली जो पहचानती थी मुझे. 

रेल की सीटी अभी भी बजाती है अपना चिरंतन बाजा 
लेकिन जब चली जाती है दूर 
सिकुड़ते हुए दिमाग की चहारदीवारी से ओझल 
कुछ अलग लिए जाती है अपने साथ हमेशा. 
                         * *

आपको सतर्क रहना होता है 
सतर्क रहना होता है आपको बातें करते समय.
सुरंग होते हैं कुछ कान.
भीतर जाएंगे आपके शब्द और खो जाएंगे अँधेरे में.
सोने की खोज में लगे खनिकों के पास पाए जाने वाले  
चपटे पैन की तरह होते हैं कुछ कान.
पत्थरों से धोया जाएगा जो कुछ भी कहेंगे आप. 

लम्बे समय तक तलाश रहती है आपको 
जब तक कि मिल नहीं जाते सही कान.  
तब तक परिंदे और लैम्प होते हैं बातें करने के लिए, 
गोल-गोल घिसता चमकाता एक धैर्यवान कपड़ा,
और धीरे-धीरे बढ़ती जाती है संभावना 
कि आखिरकार जब मिल जाएंगे आपको ऐसे कान,
उन्हें पता होगा पहले से ही. 
                          * *
(अनुवाद : Manoj Patel) 
Naomi Shihaab Nye 

4 comments:

  1. ....और अखिरकार जब मिल जायेंगे आपको ऐसे कान
    उन्हें पता होगा पहले से ही
    बहुत सुंदर ! धन्यवाद अच्छे अनुवाद के लिये.

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  2. मनोज जी ,बहुत अच्छी कविता ,उतना ही अच्छा अनुवाद..
    बधाई....शुभकामनाओं सहित !

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  3. कविताओं में धुऍं और शोले, ठंड से सिकुडती आग भी है। अनुवाद में हहराती नदी का बहाव है। दिमाग के पेंच को खोलते हुए रेंच अदृष्‍य है। बधाई।

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