उसे क्या हासिल होगा फोन पर बात करके
नाम के पीछे भागने से क्या मिलेगा उसे, बताओ मुझे
क्या मिल जाता है एक बूढ़े को आईना देखकर
कुछ नहीं
बस हर बार वह कुछ और धंस जाता है कीचड़ में
बज चुके हैं सुबह के चार या पांच
वह कोशिश क्यों नहीं करता जाकर सो जाने की
लेकिन नहीं - बंद नहीं करेगा वह कसरत करना
नहीं बंद करेगा अपनी लम्बी दूरी की टेलीफोन की बतकही
उसकी बातें नहीं ख़त्म होंगी बाख, बीथोवन और चायकोवस्की की
नहीं बंद होगा एकटक देखना आईने में
सांस लेते चले जाने की सनक नहीं ख़त्म होगी उसकी
बेचारा - बेहतर होता कि वह बुझा देता बत्ती
उसकी माँ कहती है उसे बुद्धू बुड्ढा
एक ही जैसे हो तुम बाप-बेटे
मरना नहीं चाहता वह भी
ईश्वर तुम्हें कार चलाने की ताकत बख्शे
ईश्वर तुम्हें फोन पर बात करने की ताकत बख्शे
ईश्वर तुम्हें सांस लेने की ताकत बख्शे
ईश्वर तुम्हें अपनी माँ को दफनाने की ताकत बख्शे
सो गए तुम, बुद्धू बूढ़े !
लेकिन अभागे बुड्ढे का सोने का कोई इरादा नहीं
रोने को सोना समझने की गलती न किया जाए.
(अनुवाद : Manoj Patel)
Nicanor Parra
उस बूढ़े की माँ कितनी बूढी होगी ? सुंदर अनुवाद !
ReplyDelete.एक सुन्दर कविता के' अच्छे लगने में' अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है ..और कविता बहुत अच्छी लगी !चित्र, कविता की संवेदनशीलता को द्रश्य्गत /सजीव कर रहा है ...
ReplyDeleteधन्यवाद