(वेरा पावलोवा का परिचय और उनकी कविताएँ आप इस ब्लॉग पर पहले भी पढ़ चुके हैं. आज उनकी पांच और कविताएँ - Padhte Padhte)
1
लिखती हूँ कोने में घुसकर,
तुम तो कहोगे कि
एक दस्ताना बुनो
आने वाले बच्चे की खातिर.
* *
2
- गीतों का गीत सुनाओ मुझे.
- याद नहीं हैं बोल.
- तो धुन ही सुनाओ फिर.
- धुन भी नहीं पता.
- अच्छा गुनगुनाओ ही सिर्फ.
- क्या भूल चुके हो लय भी.
- तो मेरे कान से सटाओ
अपना कान
और गा दो वही जो सुनाई दे तुम्हें.
* *
3
सुबह के पहले चुम्बन का स्वाद
होता है पृथ्वी के पहले चुम्बन सा.
निष्पाप होता है मेरा चैतन्य होता मन,
जब लेटी होती हूँ
अपने सबसे सुन्दर ख़्वाबों के निवासी के साथ.
जब दुलारती होती हूँ उसे तो पता होता है
कि भाषा से पहले आता है चुम्बन
कि शब्द कनिष्ठ है चुम्बन से.
* *
4
कविताएँ लिखते हुए,
हथेली पर चीरा लग गया कागज़ से.
तकरीबन एक-चौथाई बढ़ा दी इस चीरे ने
मेरी जीवन रेखा.
* *
5
पत्थर की एक
दीवार हो तुम प्रिय :
चीखूँ या गाऊँ
इसके पीछे,
या सर टकराऊँ अपना.
* *
(अनुवाद : Manoj Patel)
Vera Pavlova
बहुत बढ़िया....
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविताएँ ! ऐसी जैसी सुबह की ओस, जैसी गुलाब की सुगंध और बिलकुल ताजातरीन!
ReplyDeleteहमेशा की तरह बढ़िया कवितायें......बधाई!!!!!
ReplyDeleteअनुवाद जीवंत है । मेरी शतशः बधाई ! आपका अनुवाद हमें सम्पन्न कर रहा है ।
ReplyDeleteसुन्दर हैं स्फुट किन्तु गंभीर जीवन-अर्थों से भरी
ReplyDeleteरचनाएं !
Jitna baar padha ek Naya arth paaya. Abhibhut hun main.
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