देर से शादी कुछ दूल्हों के साथ बैठा हूँ मैं एक वोटिंग रूम में मुझसे बहुत छोटे हैं वे. पुराना ज़माना रहा होता तो पैगम्बर करार दे दिया गया होता मुझे अब तक. लेकिन अभी इंतज़ार कर रहा हूँ चुपचाप अपनी महबूबा के नाम के साथ दर्ज कराने के लिए अपना नाम शादियों वाले मोटे से रजिस्टर में, और उन सवालों का देने के लिए जवाब अब भी दे सकता हूँ जवाब जिनका. शब्दों से भर लिया है मैंने अपनी ज़िंदगी को, और कई मुल्कों की खुफिया सेवाओं का पेट भरने भर को आंकड़े जुटा लिए हैं अपनी देह में.
भारी क़दमों से लिए चलता हूँ मैं हलके ख्याल जैसे अपनी जवानी में ढोया करता था नियति से भारी हुए ख्यालों को इतने हलके क़दमों से कि वे नाचने को हो आते थे, इतने उम्मीद से भरे भविष्य के चलते.
मेरी ज़िंदगी के दबाव ने मेरी जन्मतिथि को नजदीक ला खड़ा किया है मेरी मौत की तारीख के, जैसे कि होता है इतिहास की किताबों में जहां कि इतिहास का दबाव साथ-साथ ले आता है किसी मृत बादशाह के नाम के आगे लिखी दो संख्याओं को बीच में महज एक हाइफन के साथ.
अपनी पूरी ताकत से मैं पकड़े हुए हूँ उस हाइफन को एक जीवनरेखा को जैसे, ज़िंदा हूँ इसी पर, और मेरे होंठों पर वादा है अकेले न होने का, दूल्हे की आवाज़ है और दुल्हन की आवाज़, हँसते-चिल्लाते बच्चों की आवाज़ येरुशलम की गलियों और येहूदा के शहरों में. * *
जैसा कि यह था जैसा कि यह था. जब रात को हमारा पिया हुआ पानी, बाद में बदल जाता था दुनिया भर की शराब में.
और दरवाजे, जिनके बारे में कभी नहीं याद आएगा मुझे ठीक-ठीक कि वे अन्दर को खुलते थे या बाहर को, और तुम्हारे घर के प्रवेश द्वार पर लगी कौन सी बटन बत्ती की थी, घंटी की या फिर खामोशी की.
ऐसा ही चाहते थे हम. चाहते थे क्या ? हमारे तीन कमरों में, खुली हुई खिडकी पर, तुमने भरोसा दिलाया था कि नहीं भड़केगी जंग.
शादी की अंगूठी की बजाए, मैंने एक घड़ी दी थी तुम्हें : गोल, ठीक समय बताने वाली, सबसे पका हुआ फल अनिद्रा और अनंत काल का. * *
मेरी मेज पर एक पत्थर है, कई पीढ़ीयों पहले नष्ट कर दिए गए एक यहूदी कब्रिस्तान से निकले पत्थर का एक तिकोना टुकड़ा, जिस पर "आमीन" लिखा हुआ है. एक बेहिसाब चाहत, एक अंतहीन लालसा से लबरेज, सैकड़ों की संख्या में दूसरे टुकड़े, इधर-उधर बेतरतीब बिखरे पड़े थे : अपने कुलनाम की तलाश में कोई नाम, मृत शख्स के जन्मस्थल की तलाश में मौत की तारीख, पिता के नाम का ठिकाना ढूंढता बेटे का नाम, शान्ति की चाह रखने वाली मृतात्मा से पुनर्मिलन की बाट जोहती पैदाइश की तारीख. और जब तक वे एक-दूसरे को पा नहीं जाते, उन्हें पूरी तरह से आराम नहीं मिलेगा. केवल यही एक पत्थर मेरी मेज पर शांतिपूर्वक पड़ा हुआ है, जो कहता है "आमीन". लेकिन अब बड़ी प्रेममय दयालुता से इन टुकड़ों को एक उदास, शरीफ आदमी बटोर रहा है. वह उनपर से हर तरह के दाग-धब्बों को साफ़ करता है, एक एक कर उनकी तस्वीरें लेता है, बड़े हाल के फर्श पर उन्हें तरतीबवार रखता है, हर कब्र के पत्थर को फिर से सम्पूर्ण करता है, फिर से एक करता है : टुकड़ा दर टुकड़ा, जैसे किसी मृत व्यक्ति का पुनरुत्थान, कोई पच्चीकारी, कोई जिग-सा पहेली. जैसे कोई बच्चों का खेल. * *
खुदा आते-जाते रहते हैं, दुआएं रहती हैं हमेशा गर्मियों की एक शाम, रास्ते में देखा मैनें एक ताला जड़े लकड़ी के दरवाजे पर कागज़ फैलाकर कुछ शब्द लिखते हुए एक स्त्री को, उसने मोड़कर उसे भीतर सरका दिया, दरवाजे और चौखट के बीच से और चली गई.
न तो उसका चेहरा देख पाया मैं, और न ही उस आदमी का जो शब्दों को नहीं, लिखावट को पढ़ेगा.
एक पत्थर पड़ा रहता है मेरी मेज पर "आमीन" लिखा हुआ, किसी कब्र के पत्थर का एक टुकड़ा, अवशेष एक यहूदी कब्रिस्तान का जो हजारों साल पहले नष्ट हो गया था, मेरी पैदाइश के शहर में.
एक शब्द, "आमीन" गहरा खुदा हुआ पत्थर में, सख्त और आखिरी आमीन, उस सबको जो था, और नहीं आएगा वापस, एक मुलायम आमीन : गाते हुए किसी भजन की तरह, आमीन, आमीन, इंशाल्लाह.
टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं कब्र के पत्थर, शब्द आते हैं-जाते हैं, शब्द भुला दिए जाते हैं, उन्हें उचारने वाले होंठ, मिल जाते हैं मिट्टी में, जुबानें भी ख़त्म हो जाती हैं लोगों की तरह, दूसरी जुबानें लेती हैं जन्म, बदल जाते हैं आसमान के देवता, आते-जाते रहते हैं खुदा, दुआएं रहती हैं हमेशा. * * देहवजह है प्रेम की
देह, वजह है प्रेम की उसके बाद, इसे सुरक्षित रखने वाला एक किला ; उसके बाद, प्रेम की कैद है यह. मगर जब ख़त्म हो जाती है देह, आज़ाद हो जाता है प्रेम बेहिसाब और बे-रोकटोक, जैसे खराब हो जाए, सिक्के डालने वाली जुए की कोई मशीन और तेज खनखनाहट के साथ उगल दे बाहर सारे सिक्कों को एक साथ किस्मत की सारी पीढ़ियों को. * *
न्यू. वि. वि. विश्विद्यालय फाटक के सामने वाले चौड़े फुटपाथ पर व्हीलचेयर पर बैठी रहती है एक बूढ़ी महिला. डाक्टर की सलाह पर बैठती है वह यहाँ ताकि बहा ले जाए उसे नौजवानों की धारा हर रोज, जैसे स्पा का आरोग्यकर पानी. * *
एक व्यक्ति की आत्मा
एक व्यक्ति की आत्मा किसी रेलगाड़ी की समयसारिणी की तरह होती है एक सुस्पष्ट और ब्योरेवार समयसारिणी ऎसी रेलगाड़ियों की जो अब कभी नहीं चलेंगी. * *
अगर अब अपनी ज़िंदगी के बीचोबीच अगर अब, अपनी ज़िंदगी के बीचोबीच, मैं मौत के बारे में सोचूँ, तो मैं ऐसा इस आत्मविश्वास के तहत करूंगा कि मौत के बीचोबीच मैं अचानक ज़िंदगी के बारे में सोचने लगूंगा, उसी तसल्लीबख्श अतीत की ललक के साथ और उन लोगों की दूर ताकती निगाहों के साए में जिन्हें मालूम है कि उनकी भविष्यवाणियाँ सच साबित होंगी. * *
अपनी प्रेमिका का इंतज़ार कर रहा था मैं
और नदारद थी उसके क़दमों की आहट अपनी प्रेमिका का इंतज़ार कर रहा था मैं, और नदारद थी उसके क़दमों की आहट. मगर एक गोली की आवाज़ सुनी मैनें. -- फ़ौजी कवायद कर रहे थे जंग की. फ़ौजी हमेशा कवायद कर रहे होते हैं किसी न किसी जंग के लिए.
फिर मैंने खोल दिए अपनी कमीज के कालर और मेरे कालरों के दोनों सिरे तन गए दो अलग-अलग दिशाओं में, और मेरी गर्दन उठी हुई उनके दरमियान -- और इस पर मेरे निश्चल सर का शिखर फल के जैसी, मेरी आँखों समेत.
और नीचे, मेरी गर्म जेब में, मेरी चाभियों की खनखनाहट ने कुछ सुरक्षा का एहसास कराया मुझे उन सभी चीजों का जिसे आप, अभी भी रख सकते हैं ताले में सुरक्षित.
और अभी भी गलियों में टहलती है मेरी प्रेमिका, जेवरात पहने हुए मौत के और भयानक खतरों की माला लपेटे हुए अपने गले में. * *
मेरी माँ पूरी दुनिया पकाती थीं मेरे लिए
मेरी माँ पूरी दुनिया पकाती थीं मेरे लिए मीठे-मीठे केकों के भीतर. मेरी प्रेमिका भर देती थी मेरी खिड़की सितारों की किसमिस से. और मेरी चाहतें बंद हुआ करती थीं मेरे भीतर जैसे बुलबुले बंद रहते हैं किसी पावरोटी में. मैं शांत, चिकना और भूरा हूँ बाहर से. पूरी दुनिया करती है मुझसे प्रेम. लेकिन उदास हैं मेरे बाल, जैसे नरकट उदास होती है किसी सूखते हुए दलदल की -- सुन्दर पंखों वाले सभी निराले पक्षी दूर रहते हैं मुझसे. * *
(अनुवाद : मनोज पटेल) Yehuda Amichai Hindi Anuvad Padhte Padhte Manoj Patel |
bahut achchha anuvad hai ..
ReplyDeleteसुन्दर अनुवाद मनोज जी.. सादर ..
ReplyDeleteab taareef bhi karta hoon to lagta hai jaise puraane shabd dohra diye hon... bahut khoobsoorat
ReplyDeleteसारी कविताएं कवि की रेंज को बताती है ...सब ने जीवन के अलग अलग हिस्से को अलग तरीके से छूया है .कही देर तक स्पर्श है ओर कही छूकर निकली है पर हड़बड़ी नहीं है ......कहते है कवि अपने अनुभव को सार्वजनिक करते वक़्त दरअसल समाज के अनुभव को विस्तार देता है ......
ReplyDeleteयेहूदा आमिखाई - बात कहने का एक ख़ास मुहावरा है !
ReplyDeleteसुन्दर अनुवाद और प्रस्तुतीकरण !
aapka kam jabardast hai..
ReplyDeleteकविताएं सहज और बोधगम्य हैं ऐसा अच्छे अनुवाद से ही संभव है.
ReplyDeletebahut sundar manoj ji
ReplyDeletebahut achchee kavitayen utana hi sundar anuvad
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