दून्या मिखाइल की कविताएँ आप पहले भी यहाँ पढ़ चुके हैं. आज उनकी एक और कविता.
पांच मिनट
(अनुवाद : मनोज पटेल)
पांच मिनट
पांच मिनट में, ख़त्म हो जाएगी दुनिया...
पड़ोस की दूकान के मालिक ने
अभी-अभी लगायी है "बंद" की तख्ती
और चला गया है
मानो जानता हो कि नहीं बचा है वक़्त, काम के लिए.
दूसरी दुकानें खुलीं है अब भी.
अब भी काम में तल्लीन हैं उनके मालिक,
लेकिन दुनिया ख़त्म हो जाएगी बस...
खुशदिल लड़कों की एक टोली
दौड़ रही है सड़क पर ;
उनके पीछे- पीछे, एक कुत्ता
अगुआई करता हुआ एक बुजुर्गवार की.
लाल हो गयी है चौराहे की बत्ती.
बस-ड्राइवर थोड़ा सा घुमाता है
पीछे देखने का शीशा.
अब भी कई दृश्य
हरकत कर रहे हैं शीशे में.
ड्राइवर अब चलाने लगा है बस को.
बत्ती हरी हो गयी है.
यह बदस्तूर बदलती रहेगी, पांच मिनट
के बाद भी !
एक नौजवान आदमी अपनी घड़ी देखता है
और अगली बस का इंतज़ार करता है...
एक सार्वजनिक पार्क में, बुतों के पास से गुजरता है एक जोड़ा
और मुस्कराता है धूप में.
बुत बेफिक्र खड़े हैं.
वे दृढ़ता से ताकते हैं शून्य में.
कौतूहल से भरा एक सैलानी सैर कर रहा है
और तस्वीरें ले रहा है उसकी, जो गैरहाजिर हो जाने वाला है बहुत जल्द.
वहां, सफ़ेद अस्पताल में,
वह स्त्री जन्म देती है बच्चों को
मगर कितनी देर से.
बच्चे शायद विदा हो जाएं दुनिया से
बिना नाम के ही.
किसी एक वार्ड में,
वे हमेशा के लिए छूट जाएंगे
परखनलियों में
जबकि प्रयोगशाला का कुलबुलाता हुआ चूहा
जिसपर कोई प्रयोग किया जा रहा है
आखिरकार आज़ाद हो जाएगा
हमेशा पहरा देती बड़ी-बड़ी आँखों से.
प्रयोग कोई बहुत मुश्किल नहीं है,
लेकिन वक़्त ही ख़त्म हो जाएगा
जवाब मिलने के पहले.
और यह कोई मुद्दा नहीं रह जाएगा
कि आप जानते थे या नहीं.
गुलाबों को सूंघिए और चलते रहिए.
गुलाब को हमेशा पता होता है
कि पांच मिनट में ख़त्म हो जाएगी दुनिया...
दूकान के शोकेस में, नीली कमीज
जँच रही है पुतले पर.
उसकी तरफ इशारा करते हुए एक युवती अपने दोस्त को दिखाती है उसे
और वे घूमने वाले दरवाजे का रुख करते हैं
गगनचुम्बी इमारतों द्वारा निगल लिए जाने के वास्ते...
दीवारों पर, चमकीले इश्तहार :
भारी सेल !
झुर्रियों का नया उपचार !
सिगरेट आपके स्वास्थ्य को नुक्सान नहीं पहुंचाती !
लेकिन दुनिया ख़त्म हो जाएगी बस...
दीवारों से घिरे अपने सुरक्षित कमरे में
दीवारों से घिरे अपने सुरक्षित महल में
दीवारों से घिरे सुरक्षित शहर में,
एक सेब खा रहा है अत्याचारी तानाशाह
और खुद को देख रहा है टेलीविजन पर.
कौन भरोसा करेगा कि पांच मिनट में
वह छोड़ देगा राजगद्दी ?
एक और प्रतिवादी को मिलती है उम्रकैद.
उसका वकील अपील करना चाहता है
लेकिन दुनिया ख़त्म हो जाएगी बस...
यात्री निकलते हैं निकासी के दरवाजे से
दूसरे लोग भीतर आते हैं प्रवेश द्वार से.
एक स्त्री अपना सूटकेस नीचे रखती है
और अपना हाथ हिलाती है
(यह मैं नहीं हूँ).
हवाईअड्डे के शीशे के पीछे से उसकी तरफ हाथ हिलाता है एक आदमी
(यह तुम नहीं हो).
मुझे नहीं मालूम कि क्या वे मिले सके
या फिर वक़्त...
विश्वविद्यालय का छात्र
ट्रेन से सफ़र को तरजीह देता है.
इससे कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता अब.
एक दोस्त के साथ वह
पिकनिक पर जाने के लिए तैयार है.
मुझे नहीं मालूम कि पिकनिक, दुनिया के पहले ख़त्म हुई
या फिर दुनिया, पिकनिक के पहले !
जहां तक मेरी बात है, मैं एक ख़त लिख रही हूँ.
मुझे नहीं लगता कि पूरा हो पाएगा यह
पांच मिनट के भीतर.
* *
(अनुवाद : मनोज पटेल)
Padhte Padhte, Manoj Patel
bahut badhiya kavita. bahut badhiya anuvaad!!
ReplyDeleteआदरणीय मनोज जी
ReplyDeleteनमस्कार
आपका ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत में अनोखा है , इस कविता में जीवन सन्दर्भों को बखूबी परिभाषित किया गया है .....पिकनिक और दुनिया ..क्या बात कही है कवि ने ...सार्थक प्रयास
Nice Poem......
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