इजरायली कवि डान पगिस (१६ अक्टूबर १९३० -- २९ जुलाई १९८६) ने अपने किशोर जीवन के तीन साल यूक्रेन के एक नाजी यातना शिविर में बिताए थे. १९४४ में वे बच निकले और १९४६ में इजराइल पहुँच कर एक स्कूल में टीचर हो गए. येरुशलम यूनिवर्सिटी से पी एच डी की डिग्री हासिल करने के बाद वे वहीं पर मध्यकालीन हिब्रू साहित्य पढ़ाने लगे. उन्हें कई भाषाएँ आती थीं और उन्होंने कई साहित्यिक कृतियों का अनुवाद भी किया. १९८६ में कैंसर से जूझते हुए उनकी मृत्यु हो गई. यहाँ उनकी एक चर्चित कविता प्रस्तुत है जिसमें नाजियों के अत्याचार से बचने के लिए ट्रेन द्वारा एक नकली पहचान के साथ बार्डर क्रास करने जा रहे व्यक्ति को 'निर्देश' दिए जा रहे हैं. उसे कुछ याद रखने की अनुमति नहीं है, और कुछ भूलने की भी नहीं...
सरहद पार करने के लिए निर्देश : डान पगिस
(अनुवाद : मनोज पटेल)
काल्पनिक मनुष्य, जाओ. यह रहा तुम्हारा पासपोर्ट.
याद रखने की इजाजत नहीं है तुम्हें.
तुम्हें बने रहना है दिए गए विवरण जैसा ही:
पहले से ही नीली हैं तुम्हारी आँखें.
चिमनी के भीतर की चिंगारियों के साथ
बच निकलने का जतन मत करो तुम.
तुम एक मनुष्य हो. ट्रेन में बैठो.
बैठो आराम से.
अब एक अच्छा सा कोट है तुम्हारे पास,
एक दुरुस्त किया हुआ बदन, एक नया नाम
तैयार तुम्हारे गले में.
जाओ, भूलने की इजाजत नहीं है तुम्हें.
:: :: ::
यह भी एक किस्म की यातना ही है कि "तुम्हे बने रहना है दिए गए विवरण जैसा ही..." याद रखने का अधिकार भी प्रकटतः छीन लिया जाता हो जब, वे बातें भुला पाना बहुत मुश्किल होता है जिन्हें याद रखने की मुमानियत हो. "याद रखने की इजाज़त नहीं है तुम्हें" के बाद "जाओ, भूलने की इजाज़त नहीं है तुम्हें" का जो नाटकीय विपर्यय है, वह चमत्कारिक है!
ReplyDeleteन कुछ याद रखने की इजाजत...न कुछ भूलने की...!! बेबसी का कैसा चित्र...!!
ReplyDeleteसुन्दर कविता .
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ति ......मनुष्य को मात्र एक विवरण बना देना जिसे कुछ भूलने और याद रखने की इज़ाज़त न हो किसी विडम्बना से कम नहीं !बहुत बहुत बधाई इस अनूठी कविता के लिए !
ReplyDeleteसरहद पार करने वाले धीरे धीरे इतने दूर हो जाते हैं कि काल्पनिक लगने लगते हैं.
ReplyDeleteयाद रखने और भूलने के विरोधाभाष को समेटता निर्देश जो किसी के लिए जिंदगी और मौत का सबब है। कविता और अनुवाद दोनों बेहतरीन लगे।
ReplyDeleteadbhut...
ReplyDeleteadbhut kavita...
ReplyDeleteजाओ भूलने की इजाजत नहीं है तुम्हें... इस कविता क्प पढ़ने के बाद कौन भूल सकता है...
ReplyDelete