आज शिक्षक दिवस पर रॉबर्ट ब्लाय की यह कविता...
पुराने गुरुजनों के प्रति आभार : रॉबर्ट ब्लाय
(अनुवाद : मनोज पटेल)
जब हम चहलकदमी करते हैं किसी जमी हुई झील पर,
हम वहां रखते हैं अपने कदम जहां वे पहले कभी नहीं पड़े थे.
अछूती सतह पर चहलकदमी करते हैं हम. मगर होते हैं बेचैन भी.
कौन होता है वहां नीचे, सिवाय हमारे पुराने गुरुजनों के ?
पानी जो कभी संभाल नहीं पाता था इंसान का वजन
--तब हम विद्यार्थी हुआ करते थे-- अब टिकाए रहता है हमारे पैरों को,
और कोई मील भर फैला होता है हमारे सामने.
हमारे नीचे होते हैं गुरुजन, और खामो शी होती है हमारे चारों ओर.
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"...हमारे नीचे होते हैं हमारे गुरुजन, और ख़ामोशी होती है हमारे चारों ओर." गुरुओं के कंधे पर चढ़े होते हैं हम लोग, और इसलिए हमें कई दफ़ा वहम होता है यह कि हम उनसे ज़्यादा जानते हैं. निरा भ्रम. अच्छी कविता के लिए आभार.
ReplyDeleteगुरुप्रदत्त ज्ञान से झील का पानी भी ठोस बर्फ सा होजाता है जिसपर हम इत्मीनान से चल सकते हैं ! बहुत अच्छी कविता पढ़ाई आज 'शिक्षक-दिवस पर ! आभार
ReplyDeleteशिक्षक दिवस पर विशेष - तीन ताकतों को समझने का सबक - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !
ReplyDeleteThanks for bringing this beautiful poem to us on this day...truly touching...
ReplyDeleteअनन्य भावांजली...!!
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