येहूदा आमिखाई की एक और कविता...
इस छोटे से देश में कितनी उलझन : येहूदा आमिखाई
(अनुवाद : मनोज पटेल)
इस छोटे से देश में कितनी उलझन,
कितना भ्रम! "पहले पति का दूसरा बेटा
जाता है अपने तीसरे युद्ध पर, पहले ईश्वर का
दूसरा मंदिर नष्ट हो जाता है हर साल."
मेरा डाक्टर इलाज करता है मोची की आँतों का
जो मरम्मत करता है उस आदमी के जूतों की
जिसने मेरा बचाव किया था मेरे चौथे मुक़दमे में.
पराए बाल मेरी कंघी में, मेरी रुमाल में पराया पसीना,
चिपक जाती हैं मुझसे दूसरों की स्मृतियाँ
जैसे गंध से चिपक जाते हैं कुत्ते,
और उन्हें भगाना ही होगा मुझे
डांटते हुए, एक छड़ी उठाकर.
सभी प्रदूषित हैं एक-दूसरे से,
एक-दूसरे को स्पर्श करते हैं सभी,
छोड़ जाते हैं उँगलियों के निशान,
और बहुत काबिल गुप्तचर होता होगा यमदूत
उनमें फर्क करने के लिए.
एक फ़ौजी को जानता था मैं, जो मर गया था एक युद्ध में,
तीन या चार स्त्रियों ने मातम मनाया था उसका:
वह मुझसे प्रेम करता था. मैं प्रेम करती थी उससे.
वह मेरा था. मैं थी उसकी.
बर्तन और मोर्टार दोनों ही बनाती है सोल्टाम कम्पनी
और मैं नहीं बनाता कुछ भी.
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"सभी प्रदूषित हैं एक-दूसरे से
ReplyDeleteएक-दूसरे को स्पर्श करते हैं सभी
छोड़ जाते हैं उंगलियों के निशान..."
बहुत अच्छी कविता. बढिया अनुवाद. बधाई.
बहुत शानदार कविता .......
ReplyDeleteबर्तन और मोर्टार दोनों ही बनाती है सोल्टाम कंपनी ...........
प्रस्तुति के लिए आभार !
मनोजभाई, बढ़िया कविता....!!
ReplyDeletevakai manoj bhai,bahut achcha anubad hai,ADABHUT...
ReplyDeleteबेहतरीन कविता। कितना सटीक वर्णन है। मनुष्यों के प्रदूषित होने का। सुंदर अनुवाद औऱ कविता के लिए मनोज जी को बहुत-बहुत धन्यवाद। शुक्रिया।
ReplyDeleteमनोजभाई, यह कविता दिल को छू गई. बढ़िया भावानुवाद के लिए धन्यवाद!
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