Friday, November 16, 2012

एथलबर्ट मिलर : रेबेका

एथलबर्ट मिलर की एक और कविता...    


रेबेका : एथलबर्ट मिलर 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

क्या मैं नफरत करने लगूंगी आईनों से? 
नफरत करने लगूंगी अक्सों से?
क्या मैं नफरत करने लगूंगी कपड़े पहनने से? 
कपड़े उतारने से नफरत करने लगूंगी क्या? 

मेरा पति जिम कहता है मुझसे 
कि कोई फर्क नहीं पड़ता इससे 
चाहे एक रहे मेरे पास या दो 
दो या एक कोई फर्क नहीं 
वह कहता है 

मगर पड़ता है फर्क 
मुझे पता है कि पड़ता है 

मेरी देह है यह  
दक्षिण अफ्रीका या निकारागुआ नहीं 
मेरी देह 
एक जंग हारती हुई कैंसर के खिलाफ 
और अस्पताल के बाहर कोई प्रदर्शनकारी भी नहीं 
बंद करो का नारा लगाने के लिए 

केवल जिम है वहां 
बैठा हुआ बरामदे में 
सोचता हुआ कि क्या कहेगा वह 
अगली बार प्यार करते समय 
जब बढ़ेंगे उसके हाथ 
बचे हुए मेरे एक स्तन की ओर 

कैसे समझाएंगे हम खुद को 
कि कोई फर्क नहीं पड़ता इससे? 
कैसे स्वीकार करूंगी अपनी नग्नता को 
जो अब नहीं रही सम्पूर्ण? 
               :: :: ::  

18 comments:

  1. 'मगर पड़ता है फर्क / मुझे पता है कि पड़ता है "....!!!

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  2. behad niji vichaar aur anubhav se bani kavita..adbhut!

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  3. मगर पड़ता है फर्क
    मुझे पता है कि पड़ता है ...

    सही बात फर्क पड़ता है ...एक सुन्दर शरीर की अपूर्णता ही कुरूपता है ,इसे कैसे भूला जा सकता है !
    अच्छी कविता ! बधाई मनोज जी !

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  4. हिन्दी की जिन दो कविताओं पर आलोचनात्मक खूनखराबा जारी है ,उन में स्तन कैंसर का संदर्भ भले हो , वे स्तनकैंसर के बारे में नहीं हैं . ( बहुत कर के वे स्तनव्यामोह की सभ्यतागत व्याधि के बारे में हैं.) मिलर की यह अनमोल कविता स्तन कैंसर की 'सच्ची' और 'सम्पूर्ण ' कविता है , इन पदों के जो भी अर्थ संभव हों ! लेकिन मनोज पटेल के इस सच्चे सम्पूर्ण अनुवाद के बिना हमें इस फर्क के तमीज कैसे होती !

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  5. बहुत मार्मिक . स्त्री का यह दर्द समझने के लिए हमे निरंतर स्त्रैण होते चले जाना होता है . जो बहुत कठिन है . दुरूह!!
    किंतु देखो हम सब जिम हैं . छलिया . पाखण्डी .

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  6. behtareen kavita aur behtareen anuvaad. Ashutosh sir ki baat se sahmat

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  7. antar-kalah
    the great poem, ek alag nazaria hai, chhoti c kavita me bahut badi baat keh di hai

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  8. antar-kalah
    chhoti c kavita me bahut badi baat keh di hai,i like it

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  9. zabardast kavita aur anuwaad....

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  10. फ़र्क तो पडे्गा ही

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  11. कविता के बारे में क्या कहूँ सिवाय इसके कि यह एक विशिष्ट पीड़ा की सही और बहुत संतुलित अभिव्यक्ति है.

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  12. बहुत सही और सच्ची कविता और उससे भी बेहतर आपका चुनाव.. बधाई..

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  13. आशुतोष भाई से सहमत. यहाँ पीड़ा और अवसाद का वह शुद्धतम रूप मौजूद है, जिसके साथ पहले की कविताओं में बौद्धिक क्रीडा भर की गयी थी. मनोज भाई को बहुत धन्यवाद!

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  14. आशुतोष भाई से सहमत. यहाँ पीड़ा और अवसाद का वह शुद्धतम रूप मौजूद है, जिसके साथ पहले की कविताओं में बौद्धिक क्रीडा भर की गयी थी. मनोज भाई को बहुत धन्यवाद!

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  15. यह बहुत ही असहनीय वास्तववादी रचना है-

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