अमेरिका में रह रहे इराकी कवि सिनान अन्तून की एक और कविता...
न्यूयार्क में एक तितली : सिनान अन्तून
(अनुवाद : मनोज पटेल)
बग़दाद के अपने बगीचे में
मैं अक्सर भागा करता था उसके पीछे
मगर वह उड़ कर दूर चली जाती थी हमेशा
आज
तीन दशकों बाद
एक दूसरे महाद्वीप में
वह आकर बैठ गई मेरे कंधे पर
नीली
समंदर के ख़यालों
या आखिरी साँसें लेती किसी परी के आंसुओं की तरह
उसके पर
स्वर्ग से गिरती दो पत्तियाँ
आज क्यों?
क्या पता है उसे
कि अब मैं नहीं भागा करता
तितलियों के पीछे?
सिर्फ देखा करता हूँ उन्हें खामोशी से
कि बिता रहा हूँ ज़िंदगी
एक टूटी हुई डाली की तरह
:: :: ::
बहुत अच्छी कविता का उतना ही अच्छा अनुवाद.....
ReplyDeleteतताली का असमय आना और भी दुखदायी है ....सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteकुछ इस तरह से मन को छूकर गुज़रती हैं आपकी अनूदित कविताएँ मनोज जी ...कि कुछ कहना बेमानी सा लगता है ....सिर्फ महसूस करते रह जाते हैं ...अक्सर ....हर बार ...
ReplyDeleteकुछ इस तरह से मन को छूकर गुज़रती हैं आपकी अनूदित कविताएँ मनोज जी ...कि कुछ कहना बेमानी सा लगता है ....सिर्फ महसूस करते रह जाते हैं ...अक्सर ....हर बार ...
ReplyDelete