डेनमार्क के कवि हेनरिक डोपट (Henrik Nordbrandt) की एक कविता...
ढलते मार्च के दिन : हेनरिक डोपट
(अनुवाद : मनोज पटेल)
दिन एक दिशा में चलते हैं
और चेहरे उल्टी दिशा में.
बराबर वे उधार लिया करते हैं एक-दूसरे की रोशनी.
कई सालों बाद मुश्किल हो जाता है पहचानना
कि दिन कौन से थे
और कौन से चेहरे...
और दोनों चीजों के बीच की दूरी
और भी दुर्गम लगती जाती है
दिन ब दिन और चेहरा दर चेहरा
यही मैं देखता हूँ तुम्हारे चेहरे में
ढलते मार्च के इन चमकीले दिनों को.
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(Nordbrandt का उच्चारण यहाँ से)
वाह…. दिन ऊपर चढते हैं और चेहरे ढलान पर उतरते हैं ...क्या बात है । बढ़िया अनुवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteअंतर्विरोध का अनन्य चित्र.
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