विमल चन्द्र पाण्डेय की एक कहानी 'खून भरी मांग' आप इस ब्लॉग पर पहले भी पढ़ चुके हैं. आज प्रस्तुत है उनकी एक और कहानी जो हाल ही में 'कथन' में प्रकाशित हुई है...
लोकल : विमल चन्द्र पाण्डेय
वे दोनों जब गोदौलिया चैराहे पहुंचे तो सूरज निकलने में कुछ मिनटों का समय शेष था। सड़क के किनारे बैरीकेडिंग लगी थी और उसके भीतर लोटा लिये श्रद्धालुओं की जो लाइन थी वह कई बार कई जगहों पर मुड़ कर बाबा विश्वनाथ के दर्शन और उन पर जल चढ़ाने के लिये व्याकुल थी।
‘‘कितना किलोमीटर होगा ?’’ मोटे लड़के ने पिछली सीट से उचक कर कतार का सिरा देखने की कोशिश करते हुये पूछा।
‘‘नापे हैं क्या हम ?’’ चश्मे वाले ने झल्लाहट में जवाब दिया।
भीड़ इतनी थी कि पैदल लोग भी चलने की बजाय सरक रहे थे। उन दोनों ने अपनी मोटरसायकिल घाट वाली सड़क की ओर बढ़ायी जहां पुलिस का अस्थायी चेक पोस्ट बना था और कई वर्दी वाले खड़े देश की बढ़ती जा रही जनसंख्या पर चिंता व्यक्त कर रहे थे। मोटरसायकिल की हेडलाइट कवर पर प्रेस लिखा था। पीछे बैठे मोटे लड़के ने गले में एक हैण्डीकैम लटका रखा था और उसके हाथ में एक पन्नी थी जिसमें कुछ अपाहिज़ हो चुके ईश्वर थे जिन्हें गंगा में प्रवाहित करना था। मोटरसायकिल आगे बढ़ी तो खाकी वर्दी वालों ने डंडा खड़काया।
‘‘आगे नहीं जायेगा गाड़ी।’’
‘‘प्रेस हैं।’’ मोटरसायकिल चला रहे चश्मे वाले लड़के ने कहा। कहने में टोन थी कि वह प्रेस से है या फिर खुद प्रेस है।
‘‘प्रेस हो, मिक्सर हो चाहे गीजर, आज गाड़ी आगे नहीं जायेगी।’’ खाकी वर्दी ने बेतुकी तुक जोड़ते हुये आदेश फरमाया।
चश्मे वाले लड़के ने थोड़ी देर पुलिस वाले को घूरने के बाद मोटरसायकिल मारवाड़ी अस्पताल की तरफ मोड़ दी। खाकी वर्दी वाला निर्लिप्त भाव से देख रहा था। लड़के ने मोटरसायकिल सड़के के किनारे खड़ी कर दी फिर नाराज़गी भरे भाव से पुलिस वाले से बोला, ‘‘अगर गाड़ी चोरी हुआ तो आपका जि़म्मेदारी होगा।’’
पुलिस वाला उदासीन भाव से बोला, ‘‘आज क्या, कभी भी चोरी हुयी तो मेरी ही जि़म्मेदारी होगी।’’
दोनों लड़के पैदल ही राजेंद्र प्रसाद घाट की ओर चलने लगे।
‘‘उसको फोन करो, कितनी देर में आ रहा है। पार्टी आज देगा या कल ?’’ मोटे ने उम्र में बड़े होने का फायदा उठाना चाहा।
‘‘बनारस छोड़ के कोई बम्बई जायेगा नौकरी करने तो पार्टी तो उसका बाप भी देगा।’’ चश्मे वाले ने महानगर की श्रेष्ठता सिद्ध करने वाला वक्तव्य दिया और फोन मिलाने लगा।
मोटा लड़का उसी चैनल में कैमरामैन था जिसमें अब वह चश्मे वाला लड़का समाचार वाचक, पत्रकार और वीडियो एडीटर की बहुआयामी भूमिकाएं निभा रहा था। वह अभी हाल ही में शहर के एक विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई करके आया था और तकनीकी रूप से अपेक्षाकृत जानकार था। इस चैनल में आते ही उसने अपने लिये अच्छा नाम और सम्मान दोनों अर्जित कर लिया था। मोटे लड़के को सिर्फ कैमरा चलाना आता था और उसका अनुभव इस लड़के से कम से कम पांच साल अधिक था लेकिन अब विडम्बना यह थी कि उसे इस लड़के की जानकारियों के आगे एक तरह से इसके अघोषित सहायक की भूमिका निभानी पड़ रही थी। चैनल के मालिक ने उसे कई बार चश्मे वाले लड़के के सामने डांटा था और कहा था कि उसे अपने इस जूनियर सहकर्मी से कुछ सीखना चाहिये। दोनों साथ काम करते थे और शहर में यहां वहां घूम कर खबरें इकट्ठी करते थे। उनके अन्य साथी जो सेटेलाइट चैनलों के संवाददाता थे, उन्हें कभी गंभीरता से नहीं लेते थे।
वे दोनों शहर के ही नाम पर चल रहे एक स्थानीय चैनल के पत्रकार थे।
आज माघी पूर्णिमा यानि गंगा स्नान कर सभी पापों से एक झटके में छुटकारा पाने का धार्मिक ऑफर था और लोगों में काफी उत्साह था। चश्मे वाले ने मोटे लड़के को इशारा किया कि वह बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिये लगी अत्यधिक लम्बी लाइन की एक फुटेज रिकॉर्ड कर ले और अपने मोबाइल पर कोई नंबर डायल करने लगा।
‘‘इसमें का है ? हर सोमवार लाइन लगती है एतने लम्बी।’’ मोटे ने उसकी बात को भाव नहीं दिया।
‘‘हर सोमवार की बात अलग है। यहीं से स्टोरी उठाएंगे तो सही रहेगा। माघी पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का तांता....।’’ चश्मे वाले लड़के ने चैनलों के अख़बारों से आतंकित होने की पुष्टि करते हुये कहा मगर मोटे ने इसे भाव नहीं दिया।
‘‘शिवरात्रि पर देखना भीड़ देखनी हो तो....।’’ कह कर मोटा आगे बढ़ गया।
दोनों राजेंद्र प्रसाद घाट की सीढ़ीयां उतरने लगे। घाट पर भीड़ थी और श्रद्धालु गंगा में नहा कर अपने पाप कम करने की कोशिश में थे। दोनों सीढ़ीयां उतर कर सिंधिया घाट की तरफ जाने लगे।
‘‘बोट पर चलेंगे ? बोट पर चलेंगे सर ?’’ मल्लाहों के झुण्ड से एक लड़का उन दोनों के पीछे लग गया। मोटे ने पीछे पलट कर देखा। लड़के से उसकी नज़रें मिलीं।
‘‘बोट माने ?’’ उसने लड़के से पूछा।
‘‘नाव।’’ लड़के ने इत्मीनान से उत्तर दिया।
‘‘तऽ पूरा हिंदी बोल, नाव पर चलेंगे ? या तऽ फिर पूरा अंग्रेजी बोल....।’’ इतना कह कर मोटे ने चश्मे वाले लड़के की ओर देखा। बाकी बात उसने पूरी की, ‘‘विल यू कम ऑन माई बोट सर ?’’
मल्लाह लड़का समझ गया कि दोनों लोकल हैं। वह उछलता हुआ दूसरी तरफ निकल गया।
वे दोनों भीड़ में जगह बनाते आगे बढ़े तो एक सपेरा अपनी पिटारी खोल कर सांप दिखा रहा था। मोटा वहां से गुज़रा तो सपेरे ने पिटारी उसके आगे बढ़ाते हुये उसका अभिवादन किया जिसका अर्थ था कि उसकी पिटारी में कुछ पैसे डाल दिये जाएं।
‘‘महादेव।‘‘
‘‘असली हौ ?’’ मोटे ने पूछा। सवाल ने सपेरे को दुखी कर दिया और वह सांप को पिटारी से निकाल कर मोटे की ओर बढ़ाने लगा।
‘‘कटवा के बतइबा का ?’’ मोटे ने मुस्कराते हुये कहा और आगे बढ़ गया। चश्मे वाले ने उसे आवाज़ दी।
‘‘सांप को नचवा के रिकॉर्डिंग कर लिया जाये क्या ?’’ उसने सलाह मांगी। मोटे को अच्छा लगा कि उसने सलाह मांगी है, आदेश नहीं दिया। उसने एक पल को सोचा फिर प्रस्ताव को नकार दिया।
‘‘सांप वाले तो बहुत मिल जाएंगे, एम्मे कोई बड़ी बात थोड़े है।’’
दोनों फिर चलने लगे। चश्मे वाला काफ़ी देर से बार-बार फोन लगा रहा था और दूसरी तरफ से उसका फोन नहीं उठाया जा रहा था।
‘‘हद्द है साला।’’ वह फिर झल्लाया।
‘‘अरे जाने दो, सो रही होगी।’’ मोटे ने कहा।
‘‘नहीं यार, उसके मामा के यहां सब सुबेरहीं उठ जाते हैं। उठ गयी होगी।’’
उसने फिर से नंबर लगाया। इस बार फोन उठा लिया गया। मोटा थोड़ा आगे हो गया लेकिन उसके कान फोन की बातों पर ही लगे थे।
‘‘आधा घंटा से परसान हैं।’’
‘‘तो ? रोमिंग में होगी तो फोने नहीं उठाओगी ? कोई मर जाये और तुम बिल बचाती रहो।’’
‘‘अरे यार गजब बात करती हो। अच्छा गुस्साओ मत, हम आये हैं स्नान पर स्टोरी बनाने।’’
‘‘ठीक है, हम करा देंगे रिचार्ज। हमको एक घण्टे बाद करो मिसकाल, ठीक है ? भूलना मत।’’
फ़ोन काटने के बाद वह मोटे के पास पहुंचा। मोटे ने चाल धीमी कर दी थी।
‘‘ई साला रोमिंग का बहुत लफड़ा है।’’ चश्मे वाले ने निराश आवाज़ में कहा।
‘‘वो कहां पहुंचा, पूछो।’’ मोटे ने अचानक पलट कर कहा तो चश्मे वाला लड़का फोन मिलाने लगा।
‘‘पहुंच जायेगा पांच मिनट में, सुलभ शौचालय के पास है अभी।’’ चश्मे वाले ने फोन काट कर कहा।
‘‘निपट कर नहीं आया था का घरे से ?’’ मोटे ने कहा और सामने से आ रही दो विदेशी युवतियों को देखने लगा। उसकी नज़र युवती के स्तनों पर थी।
‘‘लटक गया है कम उमर में ही।’’ उसने चिंताग्रस्त होकर चश्मे वाले से कहा। चश्मे वाले ने भी मुआयना किया।
‘‘इतनी कम उमर भी नहीं है। हमारे यहां तो तीसे साल में......।’’
वे दोनों शीतला मंदिर से थोड़ा आगे निकले और सीढ़ीयों पर बैठ गये। मोटे ने अपना हैण्डीकैम निकाला और दूर नहा रही युवतियों पर फोकस करने लगा।
तीसरा विश्वनाथ गली में रहता था और एक सांध्यकालीन अख़बार में पत्रकार था। उसका घर घाट के किनारे था। घाट के निवासी यानि ‘घटियारे’लोग घाट के सब राज़ जानते थे और इस सहारे वह धर्म के भी सभी राज़ जानने का दावा करते थे। वह काफ़ी लम्बा था और दूर से ही नज़र आ जाता था। थोड़ी देर में वह दोनों के बताये स्थान पर पहुंचा और पहुंच कर उनके पास बैठ गया।
‘‘माल है ?’’ उसे देखते ही मोटे ने जिज्ञासा व्यक्त की।
‘‘हां।’’ उसने संक्षिप्त जवाब दिया और हाफ जैकेट की भीतरी जेब से एक पीली पन्नी निकाली जो बारात में नमकीन खिलाने के काम में आती थी और जिसे दबा कर बंद किया जाता था। उसने पन्नी में से कुछ सूखे निचुड़े पौधों के टुकड़े निकाले और उनकी सफ़ाई करने लगा।
‘‘देखें महकें जरा।’’ चश्मे वाले ने चेहरा आगे किया और तीसरे ने हथेली में रखी चीज़ एक बार चश्मे वाले की नाक के सामने से घुमा दी।
‘‘तगड़ा है।’’ चश्मे वाले ने महक न पाने के बावजूद खुद के अनुभवी गंजेड़ी होने का दावा पेश करने हेतु कहा।
मोटे ने उसे एक बार देखा और फिर रिकॉर्डिंग में लग गया।
‘‘सूरज उग रहा है, उससे जूम करके फिर नीचे आते हैं जहां सब लोग नहा रहे हैं।’’ मोटे ने कैमरे के व्यूफाइंडर में देखते हुये कहा। ‘‘पता चलेगा कि सुबह से ही लोगों की भीड़ इकट्ठा हो रही थी।’’ मोटे ने अपना पत्रकारिता ज्ञान दिखाना चाहा।
‘‘अरे सूरज फूरज से क्या मतलब है ? भीड़ तो रहबे करेगी नहान का दिन है तो। कोई दमदार स्टोरी चाहिये। दिमाग काम नहीं कर रहा है। कुछ बताओ बे अलग सी स्टोरी आज के लिये नहान में से....।’’ चश्मे वाले ने लम्बू की ओर देखा।
‘‘खाली करो इसको।’’ लम्बू ने चश्मे वाले को एक सिगरेट निकाल कर देते हुये कहा। चश्मे वाला सिगरेट को हल्के हल्के मसल कर उसके अंदर का तम्बाकू निकालने लगा।
लम्बू ने जेब से एक पतला पारदर्शी कागज़ निकाला और मसले हुये पौधों में से छोटे गोल आकार के बीज निकाल कर फेंकने लगा। फिर इसमें थोड़ा सा सिगरेट का निकला हुआ तम्बाकू मिलाया और इस मसाले को और साफ और महीन करने में जुट गया।
‘‘हम लोग त बढि़या स्टोरी बना ही लेंगे लेकिन ई साले सेटेलाइट वाले तो किसी काम के नहीं हैं। अभिजीतवा वहीं दसास्वमेधे घाट से दस मिनट का फुटेज लेकर निकल गया। कहा इतने में काम हो जायेगा।’’ मोटे ने संतुष्टि की भावना ज़ाहिर करते हुये कहा।
‘‘उन सालों को पूछता कौन है ? हम लोग लोकल चैनल के हैं तो यहां का स्नान कैसा रहा, ये देखने के लिये लोग हमारी खबर देखेंगे न कि कोई सेटेलाइट चैनल जिसपर सरवा दिल्ली में लूट दिल्ली में बलात्कार चल रहा होगा।’’ चश्मे वाले ने अधिक जानकारी और समझ होने का सबूत दिया। थोड़ी देर के लिये फिर खामोशी छा गयी। घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़ थी और बीच-बीच में कुछ विदेशी भी घाटों की शोभा अपने कैमरे में कैद करते आगे बढ़ रहे थे। चश्मे वाले के फोन पर एक मिस्ड कॉल आयी और उसने फोन मिलाया। यह अपडेट देने के बाद कि मौसम में कोई खास ठंड नहीं है और नाश्ता वह सही समय पर कर लेगा, उसने फोन काट दिया। उसके फोन काटने पर मोटे को कुछ याद आया और उसने कैमरा बंद कर दिया।
‘‘एयरसेल रोमिंग फ्री करने वाली है पूरे इंडिया में।’’ उसने कह कर बाकी दोनों के चेहरे देखे। चश्मे वाले के चेहरे पर उत्साह दिखा।
‘‘सही में ? कौन बताया ?’’
‘‘अखबार में निकला था एक दिन। एकाध महीने में हो जाये शायद।’’ उसने विश्वास के साथ कहा। लम्बू ने बात बीच में लपक ली।
‘‘अपने ही देश में साला रोमिंग का क्या मतलब ? पूरे देश में लोकल लगना चाहिये। ये क्या कि यूपी में हैं तो लोकल और जबलपुर गये तो रोमिंग ?’’
‘‘हां, और क्या। एक कंपनी कर देगी तो सब कर देंगी धीरे-धीरे।’’ मोटे ने सहमति दी।
‘‘सही बात है।’’ चश्मे वाले ने चश्मा उतार कर टीशर्ट की किनारी से साफ़ किया और बोला।
‘‘तब.... ? बंबई कब जा रहे हो माल चीरने ?’’ मोटे ने लम्बे से मुंह उठा कर पूछा। मुंबई के नाम पर तीसरे के मुंह से एक हल्की कराह निकली जिसे किसी ने सुना नहीं।
‘‘कितना देंगे सब सेलरी वेलरी ?’’ अबकी चश्मे वाले ने पूछा। लम्बू ने सिगरेट की डिबिया का ढक्कन फाड़कर थोड़े हिस्से से उस सिगरेट का फिल्टर बनाया जो उसने उस पारदर्शी कागज़ को मोड़ कर बनाया था। इसके बाद उसने स्वनिर्मित सिगरेट को अपने होंठों से लगाया और जला कर एक लम्बा कश खींचा।
‘‘मुंबई में हमको काम करना ही नहीं है।’’ उसने इत्मीनान से धुंआ उगलते हुये कहा। दोनों उसके चेहरे को ध्यान से देखने लगे।
‘‘काहे बे ? का हो गया ?’’ मोटे ने सुहानूभूति भरे शब्दों में पूछा।
‘‘गुरू मुंबई में लोग सही नहीं हैं।’’ लम्बू ने फैसला सुनाया और सिगरेट चश्मे वाले की तरफ बढ़ा दी।
मोटा लड़का और चश्मे वाला लड़का थोड़ा और पास खिसक आये ताकि लम्बू के दुख में शामिल हो सकें। लम्बू का दुख उसके आसपास बिखरा था और उसने सुल्फे के साथ अपना दुख तंबाकू में मिला कर यह सिगरेट बनायी थी। सिगरेट के साथ दुख धीरे-धीरे धुंएं में समा कर नष्ट हो रहा था। दोनों मित्रों की मदद से इस दुख को समाप्त करने का काम तेज़ी से हो रहा था और थोड़ी ही देर में काफी हद तक कम नज़र आने लगा।
दुख के कम होने के बाद लम्बू ने, जो मुंबई में किसी अख़बार में नौकरी खोजने गया था और बेरंग लौटा था, अपने मुंबई प्रवास की कहानी सुनायी। उसने बताया कि वह नौकरी के सिलसिले में जिस बनारसी दोस्त के कमरे पर ठहरा था, वह एक पुराने यूपी वाले भइया का मकान था। दोस्त एक हिंदी अख़बार में मुलाजि़म था और उसके लिये भी कोशिशें कर रहा था। एक अख़बार में उसके लिये बात कर उसने साक्षात्कार की व्यवस्था की थी लेकिन वह वर्तमान राष्ट्रीय राजनीति से जुड़े सवालों के जवाब नहीं दे पाया था।
‘‘साला हम लोग लोकल के राजा हैं, यहां आओ तो बताएं लोकल पॉलिटिक्स में क्या दम है। हमसे पूछो कि अजय राय इस बार किस पार्टी से लड़ेंगे तो बताएं। पूछो तो चिरईगांव में कितने प्रतिशत ओट पड़ेगा वहू बता दें। चले हैं साले यूपीए फूपिये कॉमनवेल्थ के बारे में पूछने।’’
एक दिन लम्बू नौकरी खोज कर बहुत दुखी हो गया तो उसने किसी सस्ते बार में बैठ कर कुछ पेग मार लिये। दोस्त ने कहा था कि आज वह थोड़ा देर में कमरे पर पहुंचेगा इसलिये वह थोड़ी देर चाहे तो इधर उधर घूम सकता है। उसने समय काटने की गरज़ से दो तीन अतिरिक्त पेग मारे और जब देर रात दोस्त के बताये समय पर पहुंचा तो गड़बड़ हो गयी। उसे हालांकि याद था कि दोस्त का कमरा गली नं छह में है लेकिन वह गलती से गली नं सात में घुस गया। काफी मशक्कत के बाद भी जब उसे दोस्त वाला मकान समझ में नहीं आया तो उसने दोस्त को फोन लगाने की कोशिश की। दोस्त का फोन स्विच ऑफ था। उसे उस इलाके की सारी गलियां एक जैसी लग रही थीं और नशे की हालत में फोन स्विच ऑफ पाने पर वह इस कदर दबाव में आया कि भूल गया कि गली का नंबर क्या था। उसने फिर से गली के बाहर निकल कर उस चाय की दुकान से अंदाज़ा लगाना चाहा जहां वह पिछले चार पांच दिनों से रोज़ सुबह चाय पी रहा था। लेकिन उसकी बदकिस्मती देर रात दबे पांव आयी थी क्योंकि चाय की दुकान क्या एक लाइन से सारी दुकानें बंद हो चुकी थीं। उसने सिर को झटका और आंखें फाड़ कर एक बार फिर से गली को पहचानने की कोशिश की। उसने अपने मन पर भरोसा किया और उस झूठे आत्मविश्वास पर भी जो एक बार हां कहने के बाद एक गली की ओर इशारा करने लगा।
इस गली के म़कानों को देखकर उसे लग रहा था कि यह वही गली हो सकती है। वह मकानों को देखकर अंदाज़ा लगाने लगा कि दोस्त किसमें रहता है। उसे दोस्त पर गुस्सा आया कि उसने फोन स्विच ऑफ कर लिया और उसकी कोई खोज खबर नहीं ले रहा। आखि़रकार दसेक कदम चलने के बाद एक काले गेट ने उसे अपनी ओर बुलाया और उसके कानों में कहा कि वह वही गेट है जिसकी वह तलाश कर रहा है। उसने अपने भीतर के झूठे आत्मविश्वास की पीठ थपथपायी और गेट खोलकर भीतर प्रवेश कर गया।
‘‘हम्में इधर-उधर कहीं नहीं जाना। बनारस में जीना है और इहें मरना है, पूछो काहे ?’’ लम्बू ने आपबीती का अध्याय रोक कर पूछा जो दरअसल मुख्य बात पर आने से पहले की भूमिका बनाने की कोशिश थी।
‘‘क्यों ?’’ सवाल आया।
‘‘काहे कि यहां आजादी है, कहीं बैठो, कहीं उठो, जो मन में आये करो। मुंबई साला दूसरे देस जइसा है हम लोगों के लिये।’’ उसकी बात से सहमत होने लायक अनुभव दोनों में से किसी के पास नहीं था क्योंकि एक ने मुंबई की शक्ल ही नहीं देखी थी और एक ने मुंबई में सिर्फ़ गेटवे ऑफ इंडिया और एलिफेण्टा की गुफाएं देखी थीं।
आज़ादी वाली बात करने के बाद उसे प्रायोगिक तौर पर समझाने के लिये लम्बू ने एक लम्बा कश खींचा और अपने दोनों लम्बे पांव घाट की सीढ़ी से नीचे लटका कर सीधा फैला दिये। उसके पांव फैलाने से वहां से गुज़र रहे श्रद्धालुओं को परेशानी हुयी लेकिन उसने अपना पांव नहीं हटाया। एकाध गुज़रने वालों ने भृकुटि टेढ़ी कर उसकी ओर देखा तो उसने बत्तीसी खोल दी। वे समझ गये कि यह लड़का लोकल है और चुपचाप गुज़र गये। इसके बाद उसने दोनों लड़कों की ओर इस उम्मीद भरी नज़र से देखा कि वे अब समझ गये होंगे कि आज़ादी से उसका क्या मतलब था। अचानक एक अंग्रेज उधर से गुज़रा और कैमरे के ज़रिये किसी दृश्य पर ध्यान केंद्रित होने के कारण लड़के के फैले पैर को देख नहीं पाया और टकरा गया।
‘‘हे यू....।’’ वह कैमरे से आंखें हटाकर चिल्लाया। उसकी आवाज़ में गुस्सा था लेकिन कैमरे के बाहर जो दुनिया दिखी उसने उसे बताया कि वह अपने देश से कई समुंदर पार एक अजनबी शहर में है। उसकी आवाज़ की तपिश गायब हो गयी और उसने संयत होकर मुस्कराते हुये कहा, ‘‘प्लीज, लेट पीपल गो।’’
‘‘जा जा आगे बढ़ा, अंग्रेजी मत छांटा इहां।’’ लम्बू ने अपने फैले पैर बटोरने की कोई कोशिश नहीं की। अंग्रेज़ थोड़ी देर उन तीनों को देखता रहा फिर तिरछा होकर निकल गया।
‘‘फिर का हुआ जब तुम अंदर घुसे ?’’ मोटा उत्सुक था।
जब वह भीतर घुसा तो उसके मन ने एक बार कहा कि दोस्त वाले मकान में सीढ़ीयां दांयी तरफ से थीं लेकिन इस मकान में तो बांयी तरफ से हैं लेकिन उसे मन को एक चपत लगायी और उसे समझाया कि इतनी मेहनत के बाद उस मकान से मिलता जुलता मकान उसने खोजा है,अब इसे भीतर से चेक किये बिना जाना बेवकूफी है।
उसने उस कमरे का दरवाज़ा खटखटाया जो उसके हिसाब से उसके दोस्त का था। कमरे में से एक महिला निकली और उसने उससे मराठी में कुछ पूछा जिसका जवाब उसने लड़खड़ाती हिंदी में दिया। फिर उसका पति निकला, उसने उससे एकाध सवाल पूछे और उसके किसी भी उत्तर से संतुष्ट न होने पर उसे धकेलता हुआ नीचे ले आया। शोर से अगल बगल के भी लोग जाग गये थे और उस मकान का मालिक उसे गली में थप्पड़ों और लातों से मार रहा था। एकाध पड़ोसियों ने उससे मराठी में कुछ पूछा और जब उसने जवाब हिंदी में दिया तो क्रोधित होकर बिना पूरा मामला जाने एकाध झापड़ रख दिये। लेकिन कुछ मराठी पड़ोसियों ने ही बीच-बचाव किया और मारने वाले को समझाया कि वह आदमी चोर नहीं हो सकता क्योंकि चोर आजकल दिन में आते हैं। वह सिर्फ़ शराबी है और काफी चांस है कि जो वह बोल रहा हो उसमें सच्चाई हो। उसने लोगों को बनारस के एक लोकल चैनल का अपना प्रेस कार्ड दिखाया था तब लोगों ने उसकी सच्चाई पर विश्वास किया था और जाने दिया था।
उसकी अब दोस्त का कमरा खोजने की इच्छा मर गयी थी और वह बाहर निकल कर वहां की सड़कों पर घूमने लगा। घूमता-घूमता वह थोड़ा आगे निकल गया। जब थक गया तो सड़क के किनारे बैठ गया। अभी वह अपनी थकान मिटा कर आगे के कदम के बारे में सोच पाता तब तक एक गश्त लगाते पुलिस वाले ने उसे पकड़ लिया और थोड़ी दूर पर खड़ी पुलिस जीप के पास ले गया।
वहां उसने कुछ कहने की कोशिश की थी लेकिन उसके हुलिये और चेहरे पर मार के निशानों ने पुलिस का मन भी चंचल कर दिया था। उसे दो चार झापड़ और मारे गये और पूछा गया कि वह वहां क्यों बैठा है।
‘‘बताओ सरवा, कोई कहीं बैठे तो भला इस बात का क्या जवाब दे सकता है कि वहां क्यों बैठा है।’’ उसने दुखी मन से दोनों की ओर देखते हुये कहा फिर थोड़ी दूरी पर बैठे एक अधेड़ की ओर मुंह कर पूछा जहां एक देहाती औरतों का एक झुण्ड नहा कर गुज़र रहा था, ‘‘का हो चच्चा, इहां काहें बदे बइठल हउवा ?’’
अधेड़ ने उसकी ओर हिकारत से देखा और बोला, ‘‘गांड़ मरावे बदे बइठल हई।’’
वे तीनों समझ गये कि वह लोकल है और हंसने लगे। लम्बू ने आगे कहानी को समाप्त करते हुये बताया कि उस पूरी रात वह उस क्षेत्र में घूमता रहा और सुबह होते ही दोस्त के कमरे पर जाकर अपना बैग लेकर निकल आया।
‘‘वहां के लोग अपने आप को साला दुनिया का राजा समझते हैं। बाहरी आदमी की कोई इज्जत ही नहीं। हमारे सामने ही एक और आदमी को पकड़ा जो दारू पीये था और बाइक से जा रहा था। वो मराठी में कुछ बोला तो उसको साले सब आराम से जाने दिये। बाहरी लोगों के लिये वहां के लोगों के मन में कोई भावना नहीं। बेकार है। च्चच, मसीन हैं सब उहां, साला कोई आदमी नहीं।’’ लम्बू कहानी के उपसंहार के बाद चुप हो गया और इंतज़ार करने लगा कि सिगरेट का आखि़री कश उसके दिया जाये। मोटे ने उसकी दृष्टि भांप पर हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया।
लम्बू ने धीरे से सिगरेट का आखि़री कश खींचा और बचा हुआ फिल्टर दूर फेंक दिया जो नहा कर निकले एक आदमी के कंधे के बगल से होता हुआ गिरा। कंधे पर गमछा रखे उस आदमी ने क्रोध से तीनों की ओर देखा और आगे बढ़ गया।
‘‘मज़ा आ रहा है गुरू।’’ चश्मे वाले ने किलकारी मारी और खड़ा होकर अंगड़ाई लेने लगा। उसके भीतर पिनक जाग गयी थी।
‘‘हां, माल वाकई तगड़ा था।’’ मोटा भी उठ खड़ा हुआ।
‘‘क्या हुआ ? बइठो थोड़ी देर।’’ लम्बू ने कहा।
‘‘चलोगे तो नसा भिनेगा, भिनेगा तो मजा आयेगा।’’ मोटे ने सलाह दी तो लम्बू भी उठ खड़ा हुआ। ‘‘कर्नाटक से लौट आएंगे।’’ उसने कहा।
‘‘ठीक है गुरू, चलो तो।’’ दोनों ने रज़ामंदी दे दी।
वे दोनों घाट के ही रास्ते कर्नाटक स्टेट भवन की तरफ चलने लगे। मोटे ने काफ़ी देर से हाथ में ली पन्नी ज़ोर से घुमा कर गंगा जी में फेंक दी।
‘‘क्या था बे ?’’
‘‘मूर्ति था कई ठो भगवान का, टूट गया था।’’
जल पुलिस वालों की उद्घोषणा सुनायी दे रही थी, ‘‘जो घाट के स्थायी भिखारी हैं, वे ही कृपया घाट पर रहें। बाहरी भिखारी घाट पर प्रवेश न करें। ध्यान से सुनें, बाहरी भिखारी घाट पर प्रवेश न करें।’’ दोनों ने ध्यान से सुना और लम्बू की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा गोया घाट की सारी बातें उसे पता हैं।
‘‘अरे नहान वाले दिन बहुत बाहरी भिखारी आ जाते हैं।’’ लम्बू ने उनकी उम्मीदों पर खरे उतरने की कोशिश की।
‘‘तो ?’’
‘‘अरे तो क्या, ऊ सब पइसा थोड़े देंगे। पुरनकन सब पइसा देते हैं जब बइठने देती है जल पुलिस इनको सीढ़ी पे भीख मांगने।’’
इस जवाब से दोनों संतुष्ट हो गये और आगे की ओर बढ़ चले। सामने से दक्षिण भारतीय श्रद्धालुओं का एक दल आ रहा था जिसमें कुछ महिलाओं ने सिर मुंड़ा रखा था।
‘‘औरतन काहे सब कपार छिलवा लेती हैं वहां की ?’’ मोटे ने झल्लाहट में पूछा। चश्मे वाला कुछ कहना चाहता था लेकिन तब तक उसके मोबाइल पर फिर से मिस्ड कॉल आ गयी। लम्बे वाले लड़के ने मोटे की ओर देखा, ‘‘ई सब बहुत बिजंड भक्त होते हैं। साले पूरा इंडिया घूमते हैं नंगे पैर भक्ति के चक्कर में। यहां घाट पर सबसे ज्यादा गंदगी साउथ इंडियनवे फइलाते हैं।’’ तीसरे ने समूह को घूरते हुये कहा।
चश्मे वाला थोड़ा पीछे रह गया था और अपनी बात खत्म कर रहा था, ‘‘एयरसेल आल इंडिया रोमिंग फ्री करने वाला है, तुम एयरसेल ले लेना और हम तुम कहीं रहें, चउचक बात कर सकेंगे।’’ उसने फोन की दूसरी तरफ़ वाले को ख़ुशखबरी दी और तेज़ कदमों से दोनों के पास आ गया। तभी दक्षिण भारतीयों के समूह में से एक आदमी ने अपने हाथ में पकड़ा फ्रूटी का पैकट खाली होने पर बगल में फेंक दिया जहां पहले से काफ़ी कूड़ा-करकट बिखरा हुआ था। चश्मे वाला कुछ कहने ही वाला था कि लम्बू फुर्ती से श्रद्धालुओं के उस समूह के पास पहुंच गया।
‘‘इधर क्यों फेंका कचरा ?’’
‘‘व्हाट ?’’ उस आदमी ने समझ न पाने की स्थिति में पूछा।
‘‘व्हाई इम्पटी पैकेट थ्रो हियर ? दिस नॉट डस्टबीन। दिस गंगा मइया।’’
‘‘ओके।’’ उस आदमी ने कहा और आगे बढ़ने लगा। लम्बू को बुरा लगा। तब तक बाकी दोनों भी पास आ गये थे।
‘‘देख रहे हो साले का ? एक तो साले गंदगी फइलाते हैं और ऊपर से बोल रहे हैं तो सुन भी नहीं रहा।’’ लम्बू ने आगे बढ़ते उस आदमी का हाथ पकड़ लिया था। वह आदमी शरीर से तगड़ा था, उसने अपना हाथ झटका तो लम्बू नीचे गिर पड़ा। इसके बाद का सब काफ़ी तेज़ी से हुआ। लम्बू उठा और उसने उस आदमी को पीछे से एक लात मारी। आदमी अचानक हुये हमले से संभल नहीं पाया और गिर गया। उसके गिरते ही लम्बू उसके ऊपर चढ़ गया और उसे पीटने लगा। मोटा भी आकर उसका साथ देने लगा। चश्मे वाले ने चश्मा जेब में रख लिया और उन दोनों के साथ उस आदमी पर पिल पड़ा।
उस आदमी के परिवार के लोग डर गये थे और शोर मचा रहे थे। जब तक घाट पर इधर-उधर से लोग दौड़ कर आते, तब तक आदमी को वे तीनों मिल कर काफ़ी मार चुके थे। घाट के लोगों ने आदमी को तीनों की पकड़ से छुड़ाया और झगड़े की वजह पूछी। लम्बू ने अपने कोण से घटना बयान की और बाकी दोनों ने उसके पक्ष में गवाही दी। कुछ बुजु़र्ग लोगों ने श्रद्धालुओं को आगे जाने को कहा और लड़कों को डांटा। लगभग सभी लोगों का कहा कि लोकल लड़के आजकल बहुत बदमाश हो गये हैं लेकिन कुछेक लोगों का कहना था कि लड़कों ने ठीक किया है,बाहरी लोग आकर गंगा जी को बहुत दूषित कर रहे हैं।
वे तीनों सामान्य होकर फिर से कर्नाटक स्टेट भवन की ओर बढ़ चले थे। अचानक लम्बू ने पीछे पलट कर पूछा, ‘‘कौन बता रहा था कि एयरसेल आल इंडिया रोमिंग फ्री कर रहा है ?’’
‘‘अख़बार में निकला था,’’ मोटे ने जवाब दिया।
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संपर्क : प्लॉट नं. १३०-१३१, मिसिरपुरा, लहराता रा, वाराणसी-२२१००२ (उ.प्र) मोबाइल : 9451887246, ई-मेल : vimalpandey1981@gmail.com
विमल छोटी छोटी बातों से सुंदर कहानी निकलने का हुनर बखूबी जानते हैं .अच्छा लगा इसे पढ़कर !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कहानी ...मजा आ गया । धन्यवाद ।
ReplyDeletebadhai itni achhi kahani k liye
ReplyDeletebadhai itni achhi kahani k liye
ReplyDeleteसुंदर कहानी... हिंदी की कई कालजयी कहानियाँ एक साथ याद आईं... कफन... हत्यारे... अकहानी। मैं हमेशा से सोचता हूँ कि युवाओं के मामले में विमल का कोई जवाब नहीं हैं। ये कहानी भी इस बात को दमदार तरीके से साबित करती है। विमल को बधाई। और मनोज भाई आपको भी बधाई... (इसके बावजूद कि जो काम आप कर रहे हैं उसके लिए बधाई और आभार बहुत छोटे शब्द हैं)
ReplyDeleteShukriya Deepak ji, Pankaj ji, Arun ji aur Manoj babu
ReplyDeletehunarmand kahanikaar ki ek aur achchhi kahani.
ReplyDeleteHaha mastt hai mastt. Ise padh k kuch din pehle in k daale gaye tasveeron ki yaad aa gayi.
ReplyDeleteमैं यात्राओं की वजह से एकदम ही नदारद रहा. इस कहानी को पढ़ना एक बढ़िया अनुभव था. जो कहानियाँ क्षेत्रीयता के बरअक्स लिखी जाती हैं, उनमें क्षेत्र का ही मिला अकसर दुर्लभ होता है. 'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' के साथ ऐसी ही समस्या थी, लेकिन ये कहानी अपने लोकेल और क्षेत्र को बेह्तारीनी से जीती है, और आशा है कि विमल भईया की कहानियाँ क्षेत्रीयता में हिन्दी-बॉलीवुड का अतिक्रमण नहीं होने देंगी. एक और बेहतरीन कहानी के लिए शुक्रिया और आगे के लिए शुभकामनाएँ. :)
ReplyDeleteअच्छी कहानी | जो लोग बनारस को थोडा बहुत भी जानते हैं , उनके लिए तो यह फिल्म जैसी है | ठीक सामने चलती हुयी | कहानी की भाषा ऐसी ही होनी चाहिए , जिससे दृश्य बनता हो | मस्त ....विमल भाई
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