राबर्तो हुआरोज़ की 'वर्टिकल पोएट्री' से एक और कविता...
राबर्तो हुआरोज़ की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
चीजें नक़ल उतारती हैं हमारी.
हवा की गिरफ़्त में आया एक कागज़
पेश आता है किसी गिरते-पड़ते इंसान की तरह.
आवाजें सीख जाती हैं बतियाना हमारे समान.
हमारा आकार ग्रहण कर लेते हैं कपड़े.
चीजें नक़ल उतारती हैं हमारी
मगर हमारा अंत होगा
उनकी नक़ल उतारते हुए.
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राबर्तो ख़्वारोज़ राबर्तो ख्वारोज़
मगर हमारा अंत होगा उनकी नक़ल उतारते हुए .....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ,अर्थपूर्ण कविता ...सुन्दर अनुवाद ।
वाह....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
too good!!!
anu
वाह बहुत सुन्दर रचना | बेहतरीन अनुवाद |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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