डोरोथिया ग्रासमैन की एक कविता...
मैं समझ गई कुछ गड़बड़ है : डोरोथिया ग्रासमैन
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मैं समझ गई कुछ गड़बड़ है
जिस दिन मैंने कोशिश की
धूप का एक छोटा सा टुकड़ा उठाने की
और कोई आकार लेने का अनिच्छुक,
वह फिसल गया मेरी उँगलियों से.
बाकी सारी चीजें पूर्ववत ही रहीं --
कुर्सियाँ और कालीन
और सारे कोने-अंतरे
जहाँ जारी था इंतज़ार.
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