अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...
मेरा दिल चाहता है : अफ़ज़ाल अहमद सैयद
(लिप्यन्तरण : मनोज पटेल)
मौत फ़रोख्त नहीं होती
यह खुद को सिपुर्द कर देती है
ज़हर की एक बूँद
और स्याह सीढ़ियों के नीचे
मौत की तलाश में
हम उनके साथ भटक जाते हैं
जिनके फांसीघरों में
हमारे लिए कोई गिरह नहीं
हम मौत को उन शहरों में ढूँढ़ते हैं
जहाँ लोहे को ज़ंग नहीं लगता
चीते के उन पंजों में तलाश करते हैं
जो उतार दिए गए
हम मरने के लिए जगह खरीदते हैं
दरख़्त के साए में
सुतून के पास
या
किसी बिकने वाले दिल में
मगर हम किसी पुल पर दफ़्न नहीं हो सकते
मौत किसी का रास्ता नहीं रोकती
मुझे नहीं मालूम
क़त्लगाह के दरवाजे पर मुझे
क्यों रोक दिया गया
मुझे नहीं मालूम
खंजर नीलाम करने वाला
मुझसे किस तरह पेश आएगा
मैंने आखिरी बोली क्यों लगाई
जबकि मेरे पास
कोई रक़म नहीं
शायद मैं मौत से उधार कर सकता हूँ
सोने की एक सौ ईंटें
या
आधी दुनिया
शायद मैं मौत से कह सकता हूँ
मेरा बच्चा
जो एक लड़की अपने बदन में ज़ाया कर रही है
किसी और लड़की में
मुंतक़िल कर दे
मगर
उतनी देर में
गुज़रगाह की दूसरी तरफ़
कैद किए हुए जानवरों पर शाम आ जाती है
मेरा दिल चाहता है
मैं मौत से बेवफ़ाई करूँ
मेरा दिल चाहता है
तुम्हें बता दूँ
मेरी मौत तुम्हारे उस ख़्वाब में है
जो तुमने मुझसे बयान नहीं किया
मेरा दिल चाहता है
तुम्हारा देखा हुआ ख़्वाब
तुम्हारे सामने दुहराऊँ
और
मर जाऊँ
:: :: ::
फ़रोख्त : बिक्री
सुतून : खम्भा
फांसीघर : फांसी देने का स्थान
गिरह : गाँठ, फंदा
क़त्लगाह : वधस्थल
मुंतक़िल : स्थानांतरित
गुज़रगाह : रास्ता
''हम मौत को उन शहरों में ढूढते हैं, जहां लोहे को जंग नहीं लगता ...''
ReplyDeleteमौत हर जगह है मगर जब वह निश्चित हो जाती है तो उसे टालने के लिए हम हरसंभव कोशिश करते हैं.सबसे ख़राब मौत प्रेम और उम्मीदों की है जो जीते जी हमारी भावनाओं को ख़त्म कर देती है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना आभार यहॉ भी पधारें
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आह ,मैं मर जाना चाहता हूँ ताकि तुम उस सपने से आज़ाद हो सको जिसमें तुम मेरा मरना देखती हो ,लेकिन मौत बाज़ारों में नहीं बिकती .....
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता ,सुन्दर अनुवाद ,बधाई मनोज जी ।
"हम मौत को उन शहरों में ढूंढते हैं ,
ReplyDeleteजहाँ लोहे को जंग नहीं लगता ."
मैंने बहुत कम कविताएँ इससे अधिक भावपूर्ण सच बोलती देखी हैं . इसे जरूर पढ़ें मित्रो !