Wednesday, November 3, 2010

इटली की लोककथा : इतालो काल्विनो

( इटली के मशहूर लेखक इतालो काल्विनो (1923-1985) अपनी विलक्षण किस्सागोई के लिए जाने जाते हैं. इन्होनें इनविजिबल सिटीज और इफ आन अ विंटर्स नाईट अ ट्रेवलर जैसे उपन्यास लिखे हैं. इटली की 200 लोककथाओं का इनके द्वारा किया गया संकलन 1956 में प्रकाशित हुआ था. - Padhte Padhte )

पैसा सबकुछ कर सकता है 


एक बार एक बहुत रईस शहजादे ने राजा के महल के ठीक सामने उससे भी शानदार एक महल बनवाने का निश्चय किया. महल जब बनकर पूरा  हो गया तो उसने सामने की तरफ बड़े-बड़े अक्षरों में लिखवा दिया कि " पैसा सबकुछ कर सकता है." 


राजा ने बाहर आकर जब इसे देखा तो फ़ौरन शहजादे को बुला भेजा जो शहर में अभी नया ही था और अभी तक उसने दरबार में हाजिरी नहीं बजाई थी. 

"मुबारक हो," राजा ने कहा. "तुम्हारा महल तो सचमुच अजूबा है. उसके सामने मेरा गरीबखाना तो झोपड़ी जैसा लगता है. मुबारक ! लेकिन यह लिखाना क्या तुम्हें ही सूझा था कि : पैसा सबकुछ कर सकता है ?" 

शहजादे ने महसूस किया कि शायद वह हद पार कर गया था. 

"जी हाँ यह मेरा ही ख़याल था," उसने जवाब दिया, "लेकिन जहाँपनाह को यदि यह नागवार लग रहा हो तो मैं उसे मिटवा देता हूँ." 

"अरे नहीं, मुझे लगा कि यह तुम्हारा ख्याल नहीं रहा होगा. मैं बस तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता था कि इस बात से तुम्हारा क्या मतलब था. मिसाल के तौर पर क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि अपने पैसों से तुम मुझे क़त्ल भी करा सकते हो ?"    

शहजादे को लग गया कि वह कायदे से फंस चुका था. 

"मुझे माफ़ कीजिए हुजूर. मैं फ़ौरन उन लफ़्ज़ों को मिटवा देता हूँ. और अगर आपको मेरा महल नापसंद हो तो बस हुक्म कीजिए, मैं उसे भी जमींदोज करवा दूंगा." 

"नहीं, नहीं उसे वैसा ही बना रहने दो. लेकिन चूंकि तुम दावा करते हो कि एक पैसे वाला शख्स कुछ भी कर सकता है, मुझे यह साबित करके दिखाओ. अपनी बेटी से बात करने की कोशिश करने के लिए मैं तुम्हें तीन दिन का मौक़ा देता हूँ. अगर तुम उससे बात करने में कामयाब रहे तो ठीक है, तुम्हारी उससे शादी करवा दी जाएगी. अगर नहीं. तो मैं तुम्हारा सर कलम करवा दूंगा. समझ गए ?" 

शहजादा इतना परेशान हो उठा कि उसका खाना, पीना और सोना तक हराम हो गया. रात-दिन वह सोंचा करता कि वह कैसे अपनी गर्दन बचाए. दूसरे दिन तक तो उसे अपनी नाकामयाबी के प्रति इतना इत्मिनान हो चुका था कि वह अपनी वसीयत करने के बारे में सोचने लगा. उसके हालात भी नाउम्मीद करने वाले थे क्योंकि राजा की बेटी सौ पहरेदारों से घिरे किले में बंद रहती थी. किसी चिथड़े की तरह पीला और ढीला सा वह बिस्तर पर पड़े-पड़े अपनी मौत का इंतज़ार कर रहा था जब उसकी बूढ़ी दाई उससे मिलने आई. इस जर्जर बूढ़ी दाई ने उसे बचपन में खिलाया था और अब भी उसके यहाँ काम कर रही थी. उसका मरियल सा चेहरा देखकर इस बूढ़ी औरत ने पूछा कि क्या गड़बड़ थी. हकलाते हुए शहजादे ने उसको पूरी कहानी कह सुनाई. 

"तो क्या हुआ ?" दाई ने कहा, "तुम इस तरह उम्मीद छोड़े बैठे हो ? तुम पर तो मुझे हँसी आ रही है. देखो मैं क्या कर सकती हूँ !"   

वह डगमगाते क़दमों से शहर के सबसे काबिल सुनार के पास पहुंची और उससे ठोस चांदी का एक हंस बनाने के लिए कहा जो अपनी चोंच खोले-बंद करे. हंस को आदमकद और अन्दर से खोखला होना था. "और हाँ यह कल तक तैयार हो जाना चाहिए," उसने जोड़ा. 

"कल ? तुम होश में तो हो !" सुनार चिल्लाया. 

"मैनें कहा न कल !" उस बूढ़ी औरत ने सोने की अशर्फियों से भरा एक बटुआ निकाला और बोलती गई "ज़रा सोचो. यह पेशगी रकम है. बाक़ी तुम्हें कल मिल जाएगी जब तुम हंस तैयार करके मेरे सुपुर्द कर दोगे."   

सुनार हक्का-बक्का रह गया. "यही चीज तो है दुनिया में जिसकी बात ही और है," उसने कहा. "मैं कल तक हंस तैयार करने की भरसक कोशिश करूंगा."    

अगले दिन तक हंस तैयार हो गया और बहुत खूब तैयार हुआ. 

बूढ़ी औरत ने शहजादे से कहा, "अपनी वायलिन लेकर हंस के भीतर बैठ जाओ. जैसे ही हम सड़क पर पहुंचें तुम वायलिन बजाने लगना." 

हंस के भीतर बैठा शहजादा वायलिन बजाता रहा और बूढ़ी दाई चांदी के उस हंस को एक फीते के सहारे खींचती हुई शहर का चक्कर लगाने लगी. उसे देखने के लिए सड़कों पर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी : शहर में ऐसा कोई भी न बचा जो उस खूबसूरत हंस को देखने के लिए दौड़ा न आया हो. यह बात उस किले तक भी पहुंची जहाँ राजा की बेटी बंद थी, उसने अपने अब्बा हुजूर से बाहर निकलकर यह अनोखा दृश्य देखने की अनुमति मांगी. 

राजा ने कहा, "उस शेखीबाज शहजादे को मिला मौक़ा कल ख़त्म हो जाने दो. तब तुम बाहर निकलना और हंस देख लेना." 

लेकिन राजा की बेटी ने सुन रखा था कि कल तक हंस वाली बूढ़ी औरत चली जाएगी. इसलिए राजा ने हंस को किले के अन्दर ले जाने दिया ताकि उसकी बेटी हंस को देख सके. बूढ़ी दाई को इसी बात की उम्मीद थी. जैसे ही शहजादी ने चांदी के उस हंस के साथ अकेले में उसकी चोंच से निकल रहे संगीत का आनंद लेना शुरू किया, अचानक हंस खुल पड़ा और उसमें से एक नौजवान ने बाहर कदम रखा. 

"डरो मत," उस आदमी ने कहा, "मैं वही शहजादा हूँ जो अगर तुमसे बात न कर सका तो कल सुबह तुम्हारे अब्बा हुजूर मेरा सर कलम करवा देंगे. तुम उनसे यह बताकर मेरी जान बचा सकती हो कि तुम मुझसे बात कर चुकी हो."  

अगले दिन राजा ने शहजादे को बुला भेजा. "हाँ, तो क्या मेरी बेटी से बात करने में तुम्हारा पैसा तुम्हारे कोई काम आया ?"

"जी हाँ जहाँपनाह," शहजादे ने जवाब दिया. 

"क्या ! तुम्हारा मतलब तुमने उससे बात किया ?" 

"उसी से पूछ लीजिए." 

शहजादी आई और उसने बताया कि कैसे वह चांदी के हंस में छुपा हुआ था जिसे खुद राजा के हुक्म पर किले में घुसने दिया गया था. 

इसपर राजा ने अपना मुकुट उतारकर शहजादे के माथे पर रख दिया. "इसका मतलब तुम्हारे पास सिर्फ पैसा ही नहीं बल्कि एक अच्छा दिमाग भी है. जाओ खुश रहो ! मैं अपनी बेटी का हाथ तुम्हारे हाथों में सौंपता हूँ."  


(अनुवाद : Manoj Patel ) 

6 comments:

  1. मैंने अंग्रेजी में पढ़ी थी. आपके अनुवाद में पढकर और अच्छा लगा.

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  2. किताबो की सुंदर दुनिया... अच्छा लगा यहां आना।

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  3. लगा जैसे अपनी पड़ोस के किसी भाषा की कोई लोककथा पढ़ रहा हूँ. हिंदी को आपसे बहुत उम्मीद है भाई.

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  4. लोक कथाओं को पढ़ने का आनंद ही अलग है ; और फिर ये हिंदी में पढ़ने को मिल जाएँ तो मज़ा दुगुना हो जाता है . कथा में कुछ भी विदेशी नहीं लगता . आपने हिन्दुस्तानी रंग में रँग दिया है इसे .

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  5. sundar...anuvaad hi hame duniyaa ke saahitya se jodataa hai. aap badaa kaam kar rahe hain..

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  6. Manoj ji kahani pad kar laga jaise mai apni dadi ke muh say sun rahi hu. itna accha anuwad hai, aap ke lekhni ki umra lambi ho...

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