बगल कर दीं हमने
बेकार हड्डियां,
रेंगने वाले जंतुओं की पसलियाँ,
बिल्लियों के जबड़े,
तूफ़ान के कूल्हे की हड्डी,
और कांटेदार हड्डी किस्मत की.
आदमी के ऊंचे उठे सर को
सहारा देने की खातिर
हमें तलाश है
एक रीढ़ की हड्डी की
जो रह सके
सीधी.
दरवाजा
जाओ, जाकर खोलो दरवाज़ा
क्या पता कि बाहर हो एक पेड़
या एक जंगल, एक बगीचा,
या फिर शहर एक जादुई.
जाओ जाकर खोल दो दरवाज़ा
क्या पता उलट-पुलट रहा हो कुछ कुत्ता कोई.
क्या पता दिखे तुम्हें कोई चेहरा,
या आँख एक,
या तस्वीर की कोई तस्वीर.
जाओ जाकर खोलो तो दरवाज़ा
छंट जाएगा
अगर कुहासा होगा कोई.
जाओ जाकर खोलो दरवाज़ा
भले ही वहाँ केवल
अन्धेरा छाया हो घुप्प,
भले ही खाली हवा हो वहाँ,
या न हो वहां
कुछ भी.
जाओ और जाकर दरवाज़ा खोलो
कम से कम
एक हवा का झोंका
तो होगा वहां.
सूक्ष्मदर्शी यंत्र में
यहाँ भी हैं स्वप्नदर्शी नज़ारे
चन्द्रमा के और उजाड़ पड़े एक जहाज के.
यहाँ भी हैं लोग तमाम
खेत जोतने वाले किसान,
और कोठरियां
और योद्धा
एक गाने की खातिर
जो दे देते हैं अपनी जान.
कब्रिस्तान यहाँ भी हैं
और प्रसिद्धि और बर्फ.
और यहाँ भी सुनाई दे रही खुसुर-पुसुर,
बगावत अकूत संपत्ति की.
(अनुवाद : Manoj Patel)
Miroslav Holub
enchanted translation!
ReplyDeleteमिरोस्लाव होलुब से परिचय कराने के लिए धन्यवाद... अच्छी कविताएँ है... मुहावारा और कविताई को जितना बेहतरीन तरीका से साधा गया है उतने ही सहजता से भावों को खोला गया है... दिल खुश हो गया...
ReplyDeleteBAHUT ACHCHA MANOJ JI
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