मैनें नाम दिया है तुम्हें मलिका.
हालांकि लम्बी और भी हैं तुमसे ज्यादा
और पाकीजा भी
और तुमसे ज्यादा प्यारी भी.
लेकिन तुम्हीं हो मलिका.
जब चलती हो तुम सड़कों पर
कोई पहचानता नहीं तुम्हें
देख नहीं पाता तुम्हारा बिल्लौरी मुकुट,
नहीं देख पाता कोई उस लाल सोने के कालीन को
जिस पर कदम रखती हो तुम
वहां से गुजरते हुए,
उस बेवजूद कालीन को कोई देख नहीं पाता.
और जब दिखती हो तुम
गूंजने लगती हैं मेरे बदन में सारी नदियाँ,
आसमान हिला देती हैं घंटियाँ,
और एक स्तुति से भर उठती है दुनिया.
केवल तुम और मैं
मैं और तुम मेरी जान
सुनो तो सही इसे.
कुम्हार
पूर्णता और सुकुमारता तुम्हारी देह की
बदी हुई थी मेरे लिए.
जब फिराता हूँ अपने हाथ ऊपर
दोनों हाथों में आ जाते हैं एक-एक कपोत
जिन्हें तलाश थी मेरी ही,
मानो, मेरी प्यारी,
कच्ची मिट्टी से बनाया था उन्होंने तुम्हें
मुझ कुम्हार के हाथों के लिए.
तुम्हारे घुटने, तुम्हारे स्तन
कमर तुम्हारी
लापता अंग हैं मेरे
प्यासी धरती के बिलों की तरह
जिससे अलग कर दी थी उन्होंने एक आकृति,
और हम दोनों मिलकर
एक नदी की तरह होते हैं पूर्ण,
पूर्ण, रेत के एक कण की तरह.
(अनुवाद : Manoj Patel)
Pablo Neruda, Padhte Padhte
bahut khub BHAVAABHIVYAKTI, shukriya.
ReplyDeleteBeautiful Signature
ReplyDeletedear sir,i read your verson it is very cheerful i am very greatful as you are my all Ravi
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