मेरे भीतर घूमती एक स्त्री किसी ने नहीं पढ़ा मेरा काफी-कप
बिना जान लिए कि तुम्हीं हो मेरा प्यार,
न ही बांची मेरे हाथों की लकीरें
बिना पहचान लिए तुम्हारे नाम के चारो अक्षर,
नकारा जा सकता है सबकुछ
अपने प्रियतम की खुशबू के सिवाय,
और सबकुछ जा सकता है छिपाया
अपने भीतर घूमती स्त्री के क़दमों की आहट के सिवाय,
सबकुछ है बहसतलब
सिवाय तुम्हारे नारीत्व के.
क्या होना है हमारा
अपने आने और जाने से ?
जब सभी काफी-घरों को याद हो चुका है हमारा चेहरा
और सभी होटलों में दर्ज हो चुका है हमारा नाम
और फुटपाथ अभ्यस्त हो चुके हैं
हमारे क़दमों की लय-ताल के ?
समुद्रमुखी छज्जे की तरह हम जाहिर हैं सारी दुनिया पर
शीशे के एक कटोरे में
दो सुनहरी मछलियों की तरह प्रत्यक्ष.
पुरुष का स्वभाव
एक मिनट में हो जाता है पुरुष को
किसी स्त्री से प्यार
उसे भुलाने में लग जाती हैं सदियाँ.
(अनुवाद : Manoj Patel)
Nizar Qabbani, Padhte Padhte

bahut sundar!!
ReplyDeleteVery Beautiful............
ReplyDeleteसुंदर अनुवाद !!!
ReplyDeletedonon hi jazbaat prem mein doobe hue...zahir hai khoobsoorat.
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